हम करें सच्ची क्षमायाचना
संवत्सरी के इस महापर्व पर भले ही हम कई सालों से एक दूसरे के क्षमायाचक बने हैं, एक-दूसरे से क्षमा मांगी है, किन्तु सच्चे अर्थों में हमें प्रकृति के श्रृंगार, राष्ट्र की अमूल्य निधि मूक-मासूम, जीवों से जिनकी रक्षा-सुरक्षा का दायित्व सौंपा था हमें हमारे पूर्वजों गुरूओं, विद्वानों, मुनीषियों से क्षमा मांगनी चाहिए, सही मायनों में आज मूक-मासूम जीवों की रक्षा-सुरक्षा के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों को कैसे पूरा करें? संवत्सरी के पुनीत पावन पर्व पर आज आवश्यकता है इस सम्बन्ध में आत्म चिन्तन की, क्योंकि दया, करुणा और अनुकम्पा का स्वामी मानव मूक व असहाय जीवों के साथ क्रूर, बर्बर, राक्षसी आचरण करने में, अपने शौक, सौन्दर्य, मान-प्रतिष्ठा व धनार्जन के लिए उन्हें मौत के घाट उतारने में लगा है।
यदि आप सचमुच चौरासी लाख जीव योनियों से क्षमायाचना करते हैं,तो मूक-मासूम,असहाय जीवों से आपकी सच्ची क्षमायाचना तभी सम्भव है,जब आप निम्न बातों पर ध्यान देगें:
१. कभी भी पॉलिथीन की थैलियों का प्रयोग नहीं करें
२. कभी भी हिंसक सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग नहीं करें
३. कभी भी कीटनाशक पदार्थों का उपयोग नहीं करें
४. सदैव बिजली, पानी के दुरुपयोग से अपने को बचावें
५. बिजली का व्यर्थ प्रयोग न करें, बिजली का अपव्यय रोके
६. पत्र, अखबार आदि रद्दी को व्यर्थ कचरे में ना फेके
७. पेड़-पौधे,फूल-पत्तियों को नहीं तोड़ें.
८. पेट्रोल का कम से कम उपयोग करें, पेट्रोल का अपव्यय बचावें
९. कभी भी पटाखे ना फोड़ें, न ही दूसरों को ऐसी प्रेरणा दें
१०. सदैव खाद्य पदार्थों के उपयोग से पहले उसकी निर्माण विधि व मिश्रित स्थिति की अवश्य जांच कर लें
११. हमेशा कत्लखानों का विरोध करें व मूक पशुओं की मदद करें
१२. प्रतिदिन कम से कम एक रोटी मूक जीव को दान अवश्य करें
१३. जर्दा, गुटखा, धूम्रपान एवं मादक पदार्थों से सदैव परहेज रखें
१४. सदैव अच्छी भावना रखें व अच्छे कार्यों में जुटे रहें
१५. कभी भी जूठा भोजन नहीं छोड़ें
१६. अपने प्रत्येक कार्य में पूर्ण विवेक बरतें और मूक जीवों से सच्ची क्षमायाचना करते हुए हिंसा-विरोध हेतु तत्पर रहेगें व अहिंसा का प्रचार-प्रसार एवं जीवात्म रक्षण कार्यों की सफलता हेतु तन-मन-धन से सहयोग-समर्थन देकर हिंसा के प्रचण्ड विरोध का मार्ग प्रशस्त करेंगे। आपके सुझावों, विचारों, मार्गदर्शन एवं सहयोग की अपेक्षा के साथ अहिंसा मार्ग का एक सतत् सक्रिय समर्पित राही……
– महेश नाहटा जैन,नगरी
मो. ०९४०६२०१३५१
क्षमा-सुख का सागर है
जब सामने वाला आग बने, तुम बन जाना पानी
क्षमा सुख का सागर है, यह है महावीर की वाणी
निकल जाते हैं आँसू,कभी-कभी रोने से पहले
टूट जाते हैं ख्वाब, कभी-कभी सोने से पहले
क्षमा अनमोल तोहफा है, भूल सुधारने का
काश! कोई पा ले इसे, मृत्यु होने से पहले
‘क्षमा वीरों का भूषण है’ कथन महावीर का
क्षमा के बिन अहिंसा-पथ अपना नहीं सकते
कागज की कश्ती में डुबकी लगा नहीं सकते
सूरज पर जाकर, घर अपना बना नहीं सकते
कितना कारगर है, कथन यह प्रभु महावीर का
कि क्षमा के बिन खुशी के फूल खिला नहीं सकते
क्षमा के बिन आध्यात्मज्योति जला नहीं सकते
क्षमा के बिन प्रेमामृत, हम पिला नहीं सकते
क्षमा के बिन हम कभी, मोक्ष पा नहीं सकते
क्षमा के बिन मानवता को जिला नहीं सकते
रत्नों के बिना गलहार बेकार होता है
मानवता के बिना मानव बेकार होता है
सदा संघर्षों के बिना जुझने वाले मानव
क्षमा-दान के बिना तो जीवन भार होता है
बिना क्षमा के धर्म पताका फहरा नहीं सकते
बिना क्षमा के नेह का नाता, निभा नहीं सकते
क्षमा है वरदान समूचे जन समाज का
बिन क्षमा के किसी को अपना बना नहीं सकते