भगवान पार्श्वनाथ जी का अतिशय क्षेत्र कमठाण
भगवान पर्श्वनाथ जी का अतिशय क्षेत्र कमठाण जैन धर्म भारत वर्ष का अत्यन्त प्राचीन धर्म माना जाता है, क्रिस्त के जन्म से चार सौ साल पहले मौर्य चक्रवर्ती
चंद्रगुप्त को कर्नाटक प्रांत का श्रवणबेलगोला में मानसिक शुद्धि के लिए आश्रय देकर जीवन रक्षण किया था, जैन
धर्म बाहर के ठाट-बाट से उपर उठकर भीतरी शुद्धि को महत्व देने वाला धर्म है, जैन धर्म ने उत्तर भारत में जन्म
लेकर सारे संसार को अहिंसा का संदेश दिया, दक्षिण भारत के कर्नाटक में जैन धर्म का डंका बजा, कर्नाटक का
इतिहास इसका गवाह है, जैन धर्म का मूल तत्व अहिंसा का पालन तथा आत्म दर्शन है।कर्नाटक का मुकुट स्थान बीदर जिल्हा धर्म समन्वय का संगम स्थान है, यहाँ अलग-अलग धर्म के मंदिर, गुरुद्वारे,
मसजिद, बुद्धस्तूप तथा जैनों के चैत्यालय भी हैं, बीदर जिल्हे के बहुत से गावों में आज भी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां
पाई जाती है। बीदर केन्द्र स्थान से ग्यारह किलोमीटर दूरी पर कमठाण ग्राम के पश्चिम दिशा की ओर भगवान
पार्श्वनाथ जी का अति प्राचीन मंदिर हैं, बसवकल्याण तालुके के मिरखल, हुमनाबाद तालुका के केन्द्र स्थान पर
पुरातन जैन मंदिर आज भी मौजूद हैं। भाल्की, औराद नगर में भी जैनों के जीर्ण-शीर्ण मंदिर और मूर्तियाँ पाई जाती हैं,
बीदर से १८ किलोमीटर की दूर पर स्थित काडवाद ग्राम में सिद्धेश्वर मंदिर के बाहरी प्रांगण में आज भी भगवान
महावीर की मूर्ति हमें देखने को मिलती है।कमठाण बीदर जिल्हे का एक बड़ा गाँव है, इस गाँव का इतिहास कर्नाटक के प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। रट्ट वंश
के राज्यभार के समय में यह एक बहुत बड़ा खेड़ा गाँव था। कमठाण आज बीदर जिल्हे का एक बड़े गाँव के रूप में
जाना जाता है, इस ग्राम के रास्ते में कर्नाटक का बहुत बड़ा पशु वैदिक महाविद्यालय बसा हुआ है, पुरातन काल से
इस ऐतिहासिक गाँव में पुरातन विठल मंदिर, वीरशैवों का पुरातन मठ तथा ग्यारहवी शताब्दी के भगवान पार्श्वनाथ
जी का मंदिर देखने को मिलता है।११सौ साल पुराना यह पट्टा राज वंश के राज द्वारा निर्मित जैनों के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथजी के ध्यान
मग्न पदमासन की ४१ फीट ऊंची काले पाषाण की नयन मनोहर सुंदर मूर्ति आज भी दर्शनार्थियों को जैन धर्म का
अहिंसा संदेश मौन वृत्त से दे रहा है, देखनेवालों को ऐसा प्रतीत होता है कि साक्षात तीर्थंकर मौनव्रत धारण कर तपस्या
में जीवंत बैठे हुए हैं। करीब डेढ़ एकर की विशाल पटस्थल पर स्थित यह अतिशय क्षेत्र यात्रियों का यात्रा स्थल बन
गया है, इस पुण्य परिसर में ३५ आम के वृक्ष यात्रार्थियों को ठंडी हवा प्रदान कर छांव देने को तत्पर हैं। वास्तु शास्त्र के
अनुसार उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार बड़ा ही शुभकारी होता हैं, यह जानकर उत्तर दिशा के सड़क और महाद्वार का काम
होना बाकी है, पूर्व में भी एक महाद्वार है, मंदिर के सामने ३५ फीट उâंची मानस्तंभ बहुत ही मनमोहक एवं सुंदर है।भगवान पार्श्वनाथजी के गर्भ गृह के नीचे गुफा को अच्छी ढंग से मरम्मत करके वहां पर कांच का सुंदर काम करवाया
गया है, यहाँ पर बैठ कर ध्यान करने से मन को शांति मिलती है, ऐसा कहा जाता है। भगवान पार्श्वनाथ जी के गर्भ
गृह तथा शिखर में भी बड़े ही सुंदर ढंग से कांच का काम करवाया गया है, यहां पर भगवान पार्श्वनाथजी का प्रतिदिन
पंचामृत अभिषेक कराया जाता है, इसके लिए एक शाश्वत पूजा निधि का आयोजन करते हैं, जिसमें करीब ४००
सदस्य हैं, सदस्यता अभियान जारी है, सदस्यता शुल्क ५०१ रु. है, यहां पर पहले जैनों की पाठशाला और छात्रावास
था, ऐसा लोग कहते हैं, गुरुकुल में विद्या प्राप्त बहुत से लोग अभी भी बीदर जिल्हे में मिलते हैं, अत: वैसा ही
छात्रावास कमठाण अतिशय क्षेत्र परिसर में पुन: स्थापित कर नि:सहाय जैन छात्रों को विद्यादान करने हेतु पंच
कमेटी ने निर्णय लेकर ‘श्रुतज्ञान छात्रावास’ नाम से एक छात्रावास निर्माण करने का संकल्प लेकर, उसके लिए स्केच
तैयार कराकर इस्टीमेट भी बनवाया है, यहां पर २०० लोगों को बैठने की व्यवस्था वाला एक सुन्दर प्रवचन मंदिर और
५०० व्यक्तियों की क्षमतावाली सभा गृह का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया है, अगर दानियों से उदार हस्त से दान
मिलता रहा तो यहाँ की पंच कमेटी कुछ ही समय में आधे अधुरे सभी कार्य पूर्ण कर इसे एक प्रेक्षणीय स्थान तथा जैनों
का पवित्र यात्रा स्थान बनाने में देर नहीं लगेगी।भगवान पार्श्वनाथजी की मूर्ति १९८९ फरवरी तक जमीन में बनी गुफा में थी, जिसे प. पू. आ. श्री १०८ श्रुतसागर
मुनिमहाराज जी ने गुफा के उपरी भाग में एक सुंदर संगमरमरी के वेदी बनवा कर उस पर माघ शुक्ल ५, १९८७ को
प्रतिस्थापित करवाया, तबसे इस मूर्ति की प्रभावना और बढ़ गई है, हमेशा यात्रार्थी आकर दर्शन लाभ लेकर जाते हैं,
हर साल यहाँ पर माघ शुक्ला ५ से ७ तक तीन दिन बड़े हर्षोल्लास से वार्षिक रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है। आंध्र,
महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों से हजारों की संख्या में यात्रार्थी इस अवसर पर आकर पुण्य प्राप्ति के भागीदार बनते हैं,
बीदर नगर के तथा पूरे जिल्हे के जैन समुदाय एकजुट होकर इस क्षेत्र की उन्नति के लिए रात दिन मेहनत कर रहा है,
यहां पर यात्रार्थी और दर्शनार्थियों के सुविधा के लिए विश्रांतिगृह, भोजनगृह, पकवानगृह, शौचालय और पानी की
सुविधा की गई है, इस गाँव में जैनों के सिर्फ दो ही परिवार बसे हुए हैं, जो मंदिर वâो यथा संभव स्वच्छ तथा
सुव्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और पधारे दर्शनार्थियों को यथा योग्य सेवा और जरुरी सहुलियत
उपलब्ध कराते हैं।