महावीर प्रभु का जीवन और कथन

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महावीर प्रभु का जीवन मनुष्य स्वभाव में हो रही हिंसा, असत्य, राग इत्यादि आसुरी तत्वों पर विजय प्राप्त कर मनुष्य जीवन को सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि देवी गुणों से भरकर समाज का उत्थान करने वाला था। भगवान महावीर ने चरित्र निर्माण, सदाचरण और अहिंसा पर बल दिया था, उनके अमृत उपदेशों से भारत के ही नहीं अपितु सारे संसार के कोटि-कोटि लोगों को नया मार्ग तथा नया ज्ञान मिला। आज के वैज्ञानिक युग में जबकि मानवता संघर्ष और तनाव के बीच में से गुजर रही है उनके उपदेशों द्वारा ही राहत मिल सकती है। समाज में आज जो अशांति है, उसे दूर करने का एक मात्र उपाय महावीर प्रभु के जीवन और कथन के प्रचार करने का है|२४ तीर्थंकरों की परम्परा में पीछे लौटने पर हमारे सबसे अधिक निकट भगवान महावीर हैं। जैन संस्कृति का विश्वास है कि देव समूह भी देवलोक को छोड़कर उनके दर्शनों के लिए इस भूमि पर आये थे।

भगवान महावीर ने कहा :- प्राणीयों पर तो क्या किसी जड़ पदार्थ पर भी क्रोध न करो, तृष्णा को सीमित रखो, अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह मत करो, सब प्राणीयों को अभयदान दो, दूसरों की वस्तुओं की ओर ललचाई दृष्टि से मत देखो, सत्य स्वयं भगवान हैं, उसकी आज्ञा में रहना ही मानवता है, क्रोध को क्षमा और शान्ति से जीतो, अभिमान को विनम्रता से जीतो, माया को निष्कपटता से जीतो, लोभ को संतोष से, अविद्या को विद्या से, अन्धेरे को प्रकाश से, काम को निष्काम भाव से, दुर्वचनों को सहनशीलता और समता से जीतो, उन्होंने यह भी कहा, मानव तेरा उत्थान और पतन तेरे अपने हाथ में है, किसी अज्ञात शक्ति के हाथ में नहीं, ये तेरे चुनाव पर निर्भर करता है कि तू कौन सा मार्ग चुनता है।

समता का आचरण : उन्होंने यह भी कहा कि अपनी आजीविका अन्याय और अनीति द्वारा मत करो, सब प्राणी जीना चाहते हैं फिर भले ही वह कीटाणु क्यों न हों, मरना कोई नहीं चाहता, अत: स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो, सब प्राणीओं को अपने समान समझो, यदि तेरे साथ कोई छल कपट करे, तेरे पूछने पर झूठ बोले, तेरे साथ बेईमानी करे, तुझे मारे-पीटे, क्रोध करे, र्दुव्यवहार करे, जैसे तुझे उस व्यक्ति का व्यवहार अच्छा नहीं लगेगा वैसे ही यदि उन प्राणीओं के साथ तू ऐसा व्यवहार करेगा तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा। भगवान इन्सान कभी नहीं बनता बल्कि इन्सान ही भगवान बनता है, जब वह उच्चतम साधना के द्वारा कर्मों पर विजय पा लेता है तो वह जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता है, तभी वह आत्मा से परमात्मा बन जाता है।

अनुशासन :- महावीर मनुष्य को पहली शिक्षा देते हैं अनुशासन में रहना, अनुशासन का अर्थ है- आज्ञा का पालना करना- अनुशासन शब्द में केवल ५ अक्षर है, किन्तु ये अपने आप में बड़ा महत्व छिपाए हुए है, संसारनीति, राजनीति और धर्मनीति सब में इसकी बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना कहीं भी काम नहीं चल सकता, जिस प्रकार सड़े हुए कानों वाली कुतिया हर स्थान से खदेड़ कर निकाल दी जाती है वैसे ही अविनीत एवं अनुशासन में न रहने वाले व्यक्ति भी हर स्थान से निकाल दिये जाते हैं, अत: अनुशासन में वही व्यक्ति रह सकता है जिसके ह्रदय ने श्रद्धा और विनय हो।

श्रद्धा या विश्वास :- श्रद्धा ही जीवन की रीढ़ है, रीढ़ के बिना जिस तरह शरीर गति नहीं करता उसी प्रकार श्रद्धा के अभाव में जीवन भी गति नहीं कर सकता। श्रद्धा ही मनुष्य का सृजन करती है और वही उसे कल्याण के पथ पर अग्रसर करती है, कहने का अभिप्राय यही है कि यदि मनुष्य अपने जीवन में किसी भी प्रकार की सिद्धि प्राप्त करना चाहता है तो उसे सर्वप्रथम श्रद्धावान बनना चाहिए।

विनय की महिमा :- महावीर ने विनय की महिमा अद्वितीय बताई है, धर्म ही मूल विनय है, जिस प्रकार मूल के कमजोर हो जाने या उखड़ जाने पर वृक्ष नहीं टिक सकता, उसी प्रकार विनय के दूषित होने पर धर्म नहीं रहता, विनय ही धर्म का प्राण है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विनय की अनिवार्य आवश्यकता होती है, विनय स्वयं एक तप है और श्रेष्ठ धर्म है।

नारी जाति का उत्थान :- नारी समाज का एक प्रमुख अंग है। समाज निर्माण में उसका योगदान सर्वस्वीकार्य है, नारी जाति अर्थात मातृशक्ति के उत्थान के बिना समाज निर्माण का काम अपूर्ण ही रहेगा। समाज निर्माण की आधारशिला परिवार है एवं पारिवारिक जीवन की आधारशिला नारी है। भगवान महावीर ने नारी जाति के लिए मोक्ष के द्वार खोल दिए थे, सन्यास देकर उन्हें संघ में उच्च स्थान दिया। स्त्री पुरुष का भेद भगवान महावीर की दृष्टि में तनिक भी न था इसीलिए महावीर के संघ में श्रमणों की संख्या यदि १४००० थी तो श्रमणियों की संख्या ३६००० थी। श्रमणोपासकों की संख्या १ लाख ६९ हजार थी तो श्रमणोपासिकाओं की संख्या ३ लाख १८ हजार थी। आज आवश्यकता है श्रमणी वर्ग को प्रेरित करने वालों की और युगदर्शनी बनकर स्वयं आगे बढ़ने वाली साध्वीयों की, भगवान महावीर के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। हम सब जागृत हों यही ‘जिनागम’ परिवार की मनोभावना है।

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