मन की रफ्तार

हमने अपने घर के वरिष्ठ सदस्यों के मुंह से सुना था, ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। मन की गति को न पकड़ सका, राजा संत रईस।’’ जब भी रफ्तार का नाम लिया जाता है, कुछ बातें दिमाग में चली आती हैं। हवा की गति तेज होती है, सूर्य के प्रकाश की गति तेज होती है, ध्वनि की गति तेज होती है, इन सभी गतियों की तुलना मन के रफ्तार से नहीं की जा सकती। मन की गति को मापना संभव नहीं है। साथ-साथ भूखंड की ऊर्जाओं को मापने का प्रयास किया जाता है। ऊर्जा मापने के लिए वैज्ञानिकों ने कई यंत्रों का अविष्कार किया, सभी यंत्र प्रकृति, भूखंड के बारे में संभावना ही बता सकते हैं। परिणाम के करीब जा सकते हैं, मगर शतप्रतिशत परिणाम नहीं देते, आपने टीवी और प्रिंट मीडिया में सुना और पढ़ा होगा, ‘‘तूफान आने की संभावना है, बरसात आने की संभावना है, तेल के कुएं निकलने की संभावना है, भूकंप आने की संभावना है, सूखा-बाढ़ आने की संभावना है, अधिक ठंड या अधिक गर्मी पड़ने की संभावना है। ज्योतिष शास्त्र कहता है, ‘‘गणना के हिसाब से आपकी जिंदगी में ऐसा होने की संभावना है।’’ वास्तुशास्री कहता है, ‘‘भूखंड में संशोधन के बाद अच्छे परिणाम आने की संभावना है’’ हर विषय संभावना ही बताती है, सच में क्या होगा, केवली भगवान और नारायण कृष्ण ही बता पायेगें। सभी विद्याएं, विद्वान संभावनाओं की बात करते हैं। मन की गति, समय की गति दोनों का समावेश अगर आपस में कर दिया जाए तो असंभव कुछ भी नहीं, हमें संभावनाओं का ज्ञान हो जाए, पुरूषार्थ की गति को, मन की गति को आपस में संयोग कह दें, तब असंभव कुछ नजर नहीं आएगा और भी बन जाएगा। गीता में कृष्ण ने अपने उद्बोधन में अर्जुन से कहा था, ‘‘हे अर्जुन, समय गतिवान है, समय की गति पकड़ने का प्रयास मत करना। समय के साथ अपनी गति को जोड़ देना।’’
आज हम पूरे हिन्दुस्तान में भ्रमण करते हैं, समय की गति को पकड़ने का प्रयास करने वाले कौन-कौन से प्रांत हैं? प्रथम नाम आपको महाराष्ट्र का मिलेगा, उसका उदाहरण आप अपनी आंखों से प्रत्यक्ष देख सकते हैं। अमीर हो या गरीब हो, नौकर हो या मलिक हो, कम से कम १२ घंटा एवं १६ घंटों तक कार्य करते हैं। यही कारण है, मुम्बई को ‘‘आर्थिक राजधानी’’ कहा जाता है, यह बात क्या सिर्फ मराठियों पर लागू होती है, बिलकुल नहीं। प्रांत में रहने वाले सभी भारतीयों पर लागू होती है, समय की गति को पकड़ने का पूरा प्रयास, समय पर कार्य पूरा करने का प्रयास, समय पर पहुंचने का प्रयास देखने लायक है, केवल देखने लायक ही नहीं सराहने लायक भी है। क्या सभी मुम्बईवासी ऐसा प्रयास करते हैं? जो करते हैं, वह सफलता को प्राप्त करते हैं, मैंने आचार्यों के लेख पढ़े, उनके कुछ अंश अपनी भाषा में आपके साथ बांटने का या आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। मेरा यह प्रयास सार्थक होता है, तो मैं अपने आपको धन्य समझूंगा। आचार्य कहते हैं, ‘‘चौबीस घंटे का दिन-रात होता है, प्रकृति अपनी नियति नहीं बदलती, चौबीस की छब्बीस या तेईस घंटे नहीं करती।’’ आचार्यों ने चार तरह के मनुष्यों का वर्णन किया है। पहला-चार घंटे काम करता है और चौदह घंटे सोता है, छह घंटे आलस्य और प्रमाद में बीता देता है, ऐसा क्यों होता है? दुश्चिंताएं, ख्याली पुलाव, अज्ञात भय, दूसरा क्या करेगा, दूसरा क्या कहेगा, डर के मारे जी-हुजुरी, अपने आपको समझदार दिखाने के प्रयास में असफल हो जाता है, उसका एक साल का लक्ष्य तीन साल में पूरा होता है। दूसरा-आठ घंटा काम करता है, दस घंटा सोता है और छह घंटे आलस्य करता है, वह अपना लक्ष्य दो साल में पूरा करता है। तीसरा-बारह घंटा काम करता है, आठ घंटा सोता है और चार घंटा नित्य क्रियाएं एवं प्रमाद में निकाल देता है, वह अपना एक साल का लक्ष्य एक साल में पूरा करता है। चौथा-संत, महंत, विश्व के विशिष्ट, सफल, व्यापारी हो, अध्यात्मिक हों, समाजसेवी हो या परमार्थ के काम में जुड़े हुए हो, इनकी दिनचर्या सबसे अलग होती है। अगर आप विश्व के टॉप टेन (प्रथम दस) हस्तियों के बारे में इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने का समझने का प्रयास करेंगे एवं दिनचर्या को अपने आप में उतारने का प्रयास करें तो संभव है कि टॉप टेन में आपका नाम भी आ जाए, निश्चित ही आपका नाम आएगा। भाग्यलक्ष्मी, कर्मलक्ष्मी, यशलक्ष्मी, कुल लक्ष्मी, मां भगवती आपका स्वागत करने के लिए तत्पर खड़ी हैं। आप प्रयास करके तो देखें। बिल गेट्स, फोर्ड, अंबानी और टाटा, बिड़ला की पंक्तियों में आपका नाम निश्चित लिखा जाएगा, इसके लिए आपको समय का सदुपयोग करना होगा, जिंदगी का एक-एक सेकेंड करोड़ों रूपए से अधिक कीमती होता है, अनमोल होता है, अनमोल समय को बेमोल बर्बाद मत करो, समय को आप साथ दें, समय आपका सम्मान करेगा। प्रकृति, परमात्मा आपके सम्मान की व्यवस्था, सम्मान के कारण आपके समक्ष उपस्थित कर देंगे, सोलह घंटे काम करने वाले और छह घंटा प्रकृति एवं शरीर विज्ञान के आदेशानुसार शरीर को आराम देना या सोने का प्रयास करना है तो उनका एक साल का लक्ष्य चार से छह माह में पूर्ण हो जाता है क्योंकि वो आज का काम कल पर नहीं छोड़ते। परिस्थिति एवं कठिनाइयों का सामना करते हुए आज का काम आज ही पूरा करते हैं। अपनी पूरी शक्ति परेशानियां और कठिनाइयों को अपने से अलग करने में लगा देते हैं जो पुरूषार्थ के साथ तन कर खड़ा हो जाता है, कठिनाई एवं परेशानियां अपने आप पलायन करने लगती है, इतना ही नहीं परेशानियां पैदा करने वाले स्वयं आपके आत्मविश्वास से परेशान हो जायेंगे।

जब टूटने लगे होंसले तो बस ये याद रखना
ढूंढ़ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते
जुगनू किसी रोशनी के मोहताज नहीं होते

-डॉ.सम्पत सेठी जैन

(वास्तु एवं निर्माेलॉजिस्ट)

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