मर्यादा, अनुशासन का बेजोड़ संगम तेरापंथ

मर्यादा और अनुशासन

जब भी मर्यादा और अनुशासन का जिक्र होता है तो एक प्रबुद्धजीवियों के बीच एक अंतहीन चर्चा शुरू हो जाती है, सभी के नजरों में इसके मायने अलग-अलग हैं, यदि यही चर्चा धर्म संघ को लेकर हो तो चर्चा और भी ज्यादा संवेदनशील और गंभीर हो जाती है, किसी भी धर्म संघ में मर्यादा और अनुशासन का पालन सर्वोपरि माना गया है|जब बात इसकी चली है तो बताना चाहते हैं कि जैन श्वेताम्बर में तेरापंथ ऐसा धर्मसंघ है जिसमें मर्यादा और अनुशासन को सर्वोच्च मान्यता प्राप्त है और इसके साथ-साथ यह अपने आप में ऐसा पहला धर्मसंघ है जो मर्यादा महोत्सव मनाता है। विदित हो कि मर्यादा महोत्सव विश्व का विलक्षण पर्व है। संभवत किसी भी धर्मसंघ में मर्यादा का उत्सव मनाने की परम्परा नहीं है, तेरापंथ धर्म संघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु ने मौलिक मर्यादा बनाई उसी पर आज यह संघ टिका हुआ है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य के द्वारा बालोतरा की पावन धरा पर इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ था। मर्यादा श्रद्धा,समर्पण और अनुशासन का गुलदस्ता है, जीवन के विकास में मर्यादा का सर्वोपरि स्थान है। संगठन का मूल आचार मर्यादा है। एक आचार, एक विचार एवं एक आचार्य की त्रिवेणी का संगम है मर्यादा। मर्यादा से संघ परिवार संगठित रहता है, जिस संघ में, जिस घर में मर्यादा हो वहां सुख, शान्ति होती है, एक घर में विनय की नींव हो, अनुशासन की खिड़की हो, प्रेम की छत हो, संगठन का दरवाजा हो, उस घर में शांति ही शांति होती है। मैं मानता हूं कि संविधान, संघ, संस्था या राष्ट्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्राण तत्व होता है विधान। विधान या मर्यादा का अर्थ होता है अनुशासन। अनुशासित मर्यादित जीवन विकास के शिखरों को छूता है। तेरापंथ के सर्वोन्मुखी विकास की वजह अनुशासन और मर्यादा है। संघीय मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा की तरह संयमित जीवन की रक्षा करती है, तेरापंथ धर्म को जितना हमने समझा उसका मुख्य आधार यह है कि तेरापंथ शासन में आज्ञा का सर्वोच्च स्थान है। जैन धर्म भगवान महावीर से जुड़ा है, इनका एक संप्रदाय तेरापंथ धर्म भी है जो कि सबसे ज्यादा मर्यादित संगठन है। एक गुरु, एक विधान, इस विचार के आधार पर तेरापंथ कार्य करता है। देश में बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो नियमों के उल्लंघन से उपजी हैं। नियमों का पालन डंडे के जोर पर नहीं, हृदय परिवर्तन व समर्पण से हो सकता है। तेरापंथ समाज मर्यादाओं का निर्वाह करता है इसलिए हर साल मर्यादा महोत्सव मनाया जाता है। मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ का महत्वपूर्ण पर्व है। मर्यादा महोत्सव सारणा-वारणा का प्रतीक है। मर्यादा और अनुशासन की जो व्यवस्था आचार्य भिक्षु ने दी, आज वह तेरापंथ का प्राण है, उनके विराट, भव्य विशाल व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, साधु-साध्वियों एवं सभी श्रावकों का यह स्पष्ट विचार है कि आचार्य भिक्षु का श्रद्धाबल, आगम ज्ञान बल एवं समता सहिष्णुता बल बेजोड़ था, संघ कभी नहीं बदलता, संघपति बदलते रहते हैं, निष्ठा संघ के प्रति होनी चाहिए, उसके बाद संघपति के प्रति निष्ठा रखें। मर्यादा महोत्सव क्यों मनाया जाता है, इसका जवाब है यदि मर्यादा नहीं होगी तो साधु-श्रावक भटक जाएगा, मर्यादा महोत्सव से मर्यादाओं का निरंतर स्मरण होता रहेगा और उसकी अच्छी तरह पालना हो सकेगी, जिस तरह ओजोन परत के कारण पर्यावरण सुरक्षित है, ठीक उसी तरह मर्यादा के कारण ही जीवन सुरक्षित है। आचार्य की आज्ञा के अनुरूप साधु-साध्वियां व श्रावक-श्राविकाएं चलते हैं, गुटबाजी, दलबंदी से दूर रहते हैं, इतने बरसों बाद भी संघ अखण्ड इसीलिए है कि मर्यादाएं हैं, श्रद्धा, समर्पण, विवेक, संघ और संघपति के प्रति अटूट भावना रखने वाला ही असल मायने में तेरापंथी होता है, आज तेरापंथ जितना आगे है, उसके अतीत में कई संत-साध्वियों की मेहनत है। आचार्य भिक्षु की लकीरों पर चलते हुए आज तेरापंथ धर्मसंघ यहां तक पहुंचा है, अगर जीवन में मर्यादा नहीं हो तो सब बेकार है। मर्यादा सिर्फ शक्ति संपन्नता के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए होती है। मर्यादा पत्र सभी मनुष्यों का प्राण है, सर्वविदित है कि कोई भी काम होता है तो उसमें मर्यादा अपेक्षित होती है। तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक मौलिक मर्यादाएं बनाई गई, जिनमें अभी तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि मर्यादा के कारण ही तेरापंथ धर्मसंघ ने सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि देश-विदेशों तक अपनी पहचान बनाई है। तेरापंथ धर्म संघ का अनुशासन बेजोड़ है। एक गुरु के आदेशानुसार साधक सधे कदमों में लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। व्यवस्था से सुसज्जित इस धर्म संघ में आत्मा की पूजा प्रतिपल की जाती है। गलतियों का प्रायश्चित कर शुद्ध चेतना में निवास करना इस धर्म संघ की नीति है। तेरापंथ धर्म संघ के प्रथम प्रणेता आचार्य भिक्षु ने ऐसी मर्यादाओं का सूत्रपात किया, जो तेरापंथ धर्म संघ के कणकण को आलोकित कर रही है। आत्म साधकों का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, इस धर्म संघ की विचारधारा मानव मात्र के हित में प्रवाहित होती है, पूरे विश्व का पथ प्रदर्शक तेरापंथ धर्म संघ एक गुरु के इंगित पर वर्तमान समस्या को समाहित करने के लिए संकल्पबद्ध है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान जैसे सामाजिक अभियान समाज की दिशा और दशा को बदलने के लिए कटिबद्ध हैं, ज्ञान शालाओं एवं व्रत चेतना की संयोजना अच्छे राष्ट्र के निर्माण के ही उपक्रम हैं, अत: कहा जा सकता है कि तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादा और अनुशासन का बेजोड़ संगम है। तेरापंथ को और जानने तथ समझने का प्रयास करें तो मर्यादा महोत्सव पिछले १५१ वर्षों से उतरोत्तर बढ़ते उत्साह से मनाया जा रहा है, इसका शताब्दी समारोह बालोतरा में ही स. २०२१ (८ फरवरी १९६५) को आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में मनाया गया था। पिछला १५१वां महोत्सव किशनगढ़ (बिहार) में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ, १५२वां मर्यादा महोत्सव ३ फरवरी २०१७ को सिलीगुड़ी (बंगाल) में आयोजित हुआ। तेरांपथ धर्मसंघ के करीब ७५० साधु-साध्वियां व समणियां आदि भारत व विदेश के विभिन्न निर्धारित स्थानों पर चातुर्मास करते हैं जो कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है, जिन-जिन सिंघाड़ों को आचार्य प्रवर निर्देश देते हैं, वो सभी सिंघाड़े, चातुर्मास के बाद पैदल विहार करते हुये, आचार्य द्वारा पूर्व निर्धारित स्थान पर मर्यादा महोत्सव में शामिल होने हेतु पहुंच जाते हैं। चातुर्मास समाप्ति के करीब ८० दिन बाद यह समारोह होता है एवं सम्प्रदाय के नये-पुराने सभी साधु-साध्वियों की इसमें शामिल होने की गहरी तमन्ना रहती है। महोत्सव स्थान से दूरी यदि हजार कि.मी. या उससे भी कुछ अधिक होती है तो कुछ तेजी से पैदल चलते हुये, इसमें शामिल होने हेतु पहुंच ही जाते हैं, पिछले कुछ वर्षों से शामिल होने के वाले संत-सतियों की यह संख्या चार-पांच सौ से भी अधिक हुई है। श्रावक महिला-पुरूष सभी की इस धार्मिक उत्सव में शामिल होना अपना भाग्य मानते हैं, अत: अधिसंख्या में पहुंचने का प्रयास करते हैं किसी-किसी प्रमुख स्थानों पर तो श्रावकों की संख्या भी बीस-तीस हजार से ऊपर पहुंच जाती है, दस-पंद्रह हजार होना तो साधारण सी बात है। तेरापंथ सम्प्रदाय का यह सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख पर्व है। पिछले २५-३० वर्षों से एक दिन की बजाय तीन दिन का होता है। विभिन्न अन्य कार्यक्रमों के जुड़ने से कभी-कभी यह चार-पांच दिनों का हो जाता है, जिन विभिन्न पांच-सात स्थानों में धर्मसंघ के बुजुर्ग व रोगी साधु-साध्वियां स्थाई रूप से रहते हैं, उनकी सेवाओं हेतु सिघाड़ों की नियुक्ति बसंत पंचमी को ही कर दी जाती है, इस अवसर पर धर्मसंघ की प्रमुख संस्थाओं के मुख्य पदाधिकारी प्राय: अवश्य ही शामिल होते हैं एवं उनकी संस्थाओं की विचार विनियम हेतु बैठवेंâ भी आयोजित होती हैं, किन्हीं-किन्हीं संस्थाओं के द्विवार्षिक चुनाव भी इस अवसर पर सम्पन्न करवाये जाते हैं, सामूहिक रूप से सैकड़ों साधु-साध्वियों के एकसाथ-एकस्थान पर दर्शन सेवा करने का लाभ लेकर श्रावकगण काफी रोमांचित होते हैं। मुख्य कार्यक्रम सप्तमी को होता है, जिसमें आचार्य प्रवर स्वयं ही २-३ घण्टे प्रवचन करते हैं, उस दिन संतों व विशेषत: श्रावकों आदि सभी को नये दिशा-निर्देश व कार्यक्रम देने के साथ करणीय/अकरणीय कार्यों का विवेचन करते हुये उन्हें सामयिक बोध देते हैं, आदेश भी देते हैं, सभी लोग अपने गुरू के इन आदेशों पर विशेष ध्यान देते हैं एवं पालना करने का भरसक प्रयास भी करते हैं। मर्यादा महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, साधु-साधियों के अगले वर्ष चातुर्मास करने के स्थानों की घोषणा, इसे सुनने को सभी खूब लालयित रहते हैं एवं अपने अनुवूâल घोषणा होने पर, उस क्षेत्र के लोग जोर-जोर से जय कारा भी करते रहते हैं। मर्यादा महोत्सव के अवसर पर गायन हेतु आचार्य प्रवर स्वयं ही एक नई ढाल (गीत, कविता) की रचना करते हैं एवं गायक संतों के साथ लयबद्ध गायन कर, प्रवचन के मध्य ही सुनाते हैं, यह गीत काफी भावपूर्ण या कोई न कोई विशेष संदेश देने वाला होता है, अत: बीच-बीच में उसका विवेचन भी करते जाते हैं। स्थानीय संस्था उसे पहले ही छपवा लेती है, जो श्रोताओं के बीच वितरित किया जाता है। मर्यादा महोत्सव पर अधिक संख्या में साधु-साध्वियां एकत्रित होते हैं, अत: इसका लाभ उठाकर, आचार्य प्रवर अनेक आवश्यक विषयों पर गोष्ठियां करते हैं, उस पर साधु-साध्वी अपने-अपने विचार भी रखते हैं, बहस होती है, चिंतन मनन के बाद उस पर निर्णय लिया जाता है। साधु-साध्वियां भी इसमें शामिल होने को काफी लालयित होते हैं, क्योंकि उनको भी अपने साथी संत-सतियों से मिलने का भी दुर्लभ अवसर मिलता है। कभी-कभी तो वो ५-७ साल व उससे अधिक वर्षों के बाद ही मिल पाते हैं, इसके अतिरिक्त यह अधिक महत्वपूर्ण है कि सभी आने वाले संत-सतियों से आचार्य प्रवर स्वयं या साध्वी प्रमुखा उनके पिछले वर्षों के कार्यकलापों, गतिविधियों की जानकारी लेते हैं, किसी ने कोई गलती, नियमों की या अन्य किसी प्रकार की अवहेलना की होती है, तो उसका आवश्यक दण्ड परिमार्जन किया जाता है, अच्छे किये गये कार्यों की प्रशंसा व बधाई भी दी जाती है।

तेरापंथ का यह महोत्सव काफी उद्देश्यों की पूर्ति वाला ध्येयपूर्ण होता है, यह काफी पहले निर्धारित स्थान पर सप्तमी को ही आयोजित होता है, जिस शहर में यह आयोजन होने वाला होता है, उसके स्थानीय निवासी काफी पहले से ही श्रमपूर्वक व्यवस्था करते हैं एवं होने वाले खर्च को भी स्थानीय समाज ही वहन करता है, आने वाले यात्रियों को कोई बोझ नहीं होता, सिवाय निवास व भोजन का शुल्क देना होता है, जो प्राय: रियायती दरों पर होता है, ज्यादातर ऐसे विशाल समारोह बड़े शहरों/ कस्बोें में ही आयोजित होते हैं, परंतु भावनाएं देखकर पड़िहारा (राजस्थान) व टोहाना (हरियाणा) जैसे छोटे स्थानों में भी आयोजित हुये है और सफल भी हुये हैं। इस तरह के आयोजन की हम अपने देश के गणतंत्र दिवस से तुलना कर तो सकते हैं, परंतु यह भारत में गणतंत्र की स्थापना का अतिभव्य कार्यक्रम होता है जबकि मर्यादा महोत्सव अनेकों प्रवृति मूलक व दिशा-निर्देश देने वाला कार्यक्रम होता है, इस तरह की विशाल व शोभाजनक कार्यक्रम, जैन धर्मसंघ तो क्या विश्व के किसी भी अन्य सम्प्रदाय में नहीं होता, जैसा तेरापंथ में आयोजित होता है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा होती है, सराहना मिलती है एवं तेरापंथी समाज गौरवान्वित होता है।

- विजयराज सुराणा जैन
करोड़ों की संपत्ति त्याग कर सन्यासी बनने जा रही हैं दो सगी बहनें

विदेशी जीवन और चकाचौंध से ज्यादा दृष्टि और पूजा को सन्यासी जीवन अच्छा लगा, १३ मार्च के दिन दीक्षा लेकर पिता की करोड़ों की संपत्ति का त्याग कर दोनों बहनें जैन सन्यासी बन जाएगी।
सूरत के टेक्सटाइल उद्योगपति की दो बेटी दृष्टि और पूजा दोनों सगी बहने हैं। दोनों ने स्वेच्छा से यह फैसला लिया है कि १३ मार्च के दिन दीक्षा लेकर पिता की करोड़ों की संपत्ति का त्याग कर संन्यासी बन जाएगी, उनके इस कदम को रोकने के लिए उनके परिवार वालों ने तमाम कोशिशें की लेकिन सब नाकाम रही। दोनों बहनों को ९ देशों का भ्रमण करवाया गया, सबसे महंगे क्रूज की सवारी भी करवाई गई, लेकिन बेटियों को वह सब भी अच्छा नहीं लगा।
सूरत के एक मालवाडा परिवार की दोनों बेटियों को अब तक परिवार ने सारे सुख और सुविधा दिए हैं, लेकिन फिर भी परिवार द्वारा दिए गए सुख-साधन आकर्षित नहीं कर पाए, मार्च महीने में दो सगी बहनें एक साथ दीक्षा लेने जा रही हैं। दोनों बेटियों ने जब अपने मन की बात परिवार के सामने रखी और कहा कि वे लोग दीक्षा लेना चाहते हैं तब परिवार काफी आश्चर्यचकित हो गया था, जिसके बाद इतनी छोटी उम्र में दिक्षा लेने का फैसला करने वाली दोनोें बेटियों की परिक्षा लेने के लिए उन्हें ९ देशों का सफर करवाया गया, सबसे महंगे क्रूज में ट्रिप भी करवाई गई, लेकिन उनका फैसला अडिग रहा।
विदेशी जीवन और चकाचौंध से ज्यादा दृष्टि और पूजा को सन्यासी जीवन अच्छा लगा, जिन दोनों बेटियों को परिवार के लोगों ने राजकुमारी की तरह बड़ा किया है वे बहुत कम वक्त में जैन भिक्षुक जीवन बिताएंगी, इस बारे में दोनों बेटियों की मां ने कहा कि दोनोें बेटियों को यह बताना जरुरी था कि जैन दीक्षा जीवन काफी कठिन है, भौतिक जीवन में सुख होता है, जिससे आने वाले वक्त में उन्हें यह न लगे कि उन्होेंने भौतिक जीवन देखा ही नहीं, इसलिए हमने उनको विदेश का सफर भी करवाया।
हमें खुशी है कि हमारी बेटियां अपने फैसले पर टिकी रहीं, एक मां के लिए यह काफी मुश्किल वक्त होता है लेकिन बेटियां दिक्षा ले रही है उस बात का हमें गर्व है, आपको बता दें कि सूरत के इस परिवार को समाज के लोग काफी प्रतिष्ठित परिवार के तौर पर पहचानते हैं, सालों से टेक्सटाइल उद्योग के साथ जुड़े इस परिवार में किसी भी चीज की कमी नहीं है, परिवार ने १७ साल की बेटी दृष्टि और १४ साल की बेटी पूजा की एक भी इच्छा ऐसी नहीं होगी जो पूरी नहीं की होगी, फिलहाल वो एक साथ जैन दिक्षा लेने जा रही हैं।

दिशा पर हमारे जीवन की दशा निर्भर करती है

मुंबई : दिशा पर हमारे जीवन की दशा निर्भर करती है। चाहे घर हो, ऑफिस हो, कंपनी-कारखाना हो, बैठने की जगह हो या सोने की जगह या खाने-पीने की जगह, दिशा वास्तुशास्त्र के अनुकूल हो तो परिणाम सकारात्मक श्रीवद्र्धक होता है, इस वास्तुशिल्प को देश-विदेश के सारे शीर्ष लोग बखूबी मानते और हर तरह से उसका सम्मान करते हैं यह मानते हुए कि उनकी सफलता, समृद्धि व लोकप्रियता का आधारसत्य अधिकांशतया यही है।
सृष्टिसृजक अदिब्रह्मा ने यों ही तो वास्तुशास्त्र एवं अंकशास्त्र की रचना नहीं की होगी। छोटे-बड़े सारे लोग सम्भवत: इस सत्य से थोड़े-बहुत वाकिफ हैं, इसकी आस्था का अनुपातिक लाभ अवश्य प्राप्त होता है, प्रकृति व परमेश्वर के पक्षधर वास्तुशास्त्र एवं अंकशास्त्र के एक विशेषज्ञ कोलकाता निवासी डॉ. सम्पत सेठी तकरीबन ३९ वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी अलहदा अहमियत साथ सक्रिय है। मूलतया वे राजस्थानी हैं। देश-दुनिया के बड़े हिमायती हैं। राष्ट्रसमर्पित उनका वास्तुदर्शन व अंकदर्शन, दोनों अब तक हजारों आमो-खास लोगों का लाभान्वित कर चुका है, गत ५ वर्षों से मुंबई महानगरों में उनका वास्तुशास्त्र गतिमान है, इन दिनों मुंबई उनका निवास स्थल बन गया है। काबिले गौर है  कि ६८ वसंतदर्शी सम्पत सेठी चिकित्सा पेशे से जुड़े डाक्टर नहीं हैं, उनके वास्तुशास्त्रीय योगदान हेतु उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि २०१४ में उड़ीसा सरकार के राज्यपाल मुरलीधर चंद्रकांत भंडारे ने प्रदान की थी, आपको दोहरी गुणवत्ता (अंकशास्त्रीय भी) के लिए सौ से अधिक बार पुरस्कृत किया जा चुका है और ८० से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हो चुके हैं।

डॉ. संपत सेठी
गुरू सप्तमी १३ जनवरी को

बेंगलुरू: श्री राजेन्द्रसूरी जैन ज्ञान मंदिर ट्रस्ट मामुलपेट के तत्वावधान में श्री सीमन्धर स्वामी राजेन्द्र सूरी जैन श्वेताम्बर मंदिर में श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की १९२वीं जन्म जयन्ति एवं ११२वीं स्वर्गारोहण तिथि दिनांक १३ जनवरी रविवार को मनाई जायेगी।
श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर अक्कीपेट में विराजित पन्यास प्रवरश्री कल्परक्षित विजयजी म.सा. की निश्रा हेतु संघ के सचिव नेमीचन्द वेदमुथा, कोषाध्यक्ष पारसमल कांकरिया, ट्रस्टी देवकुमार के. जैन आदि ने विनती की, पन्यास प्रवर ने अनुकुलता अनुसार पधारने की स्वीकृति दी। २०वीं शताब्दी के महान ज्योतिधर, अभिधान राजेन्द्र कोष के रचयिता, क्रियोद्धारक, प्रकांड मनीषी युग पुरूष इस धरती पर यदा-कदा ही अवरित होते हैं, ऐसे युग पुरूष दादा गुरूदेव की जन्मतिथि और देहलोक लीला दोनों एक ही दिन है, इसे एक देवी संयोग कहा जाता है जो अपने आप में विशिष्ट है, आचार्यश्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. दादा गुरूदेव के नाम से जाने जाते हैं व श्रद्धालु इस पावन दिन को बड़ी धूमधाम से गुरू सप्तमी के रूप में मनाते हैं। संघ अध्यक्ष मांगीलाल दुर्गाणी के अनुसार बेंगलुरू में भव्य कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर चल रही है।
१३ जनवरी को सीमन्धरस्वामी राजेन्द्रसूरी मंदिरजी से भव्य वरघोड़ा निकलेगा, जो राजमार्गो से गुजरता हुआ किल्लारी रोड गुरू राजेन्द्र भवन पहुंचेगा, वहां गुणानुवाद सभा, स्वामी वात्सल्य, आयंबिल तप, दोपहर में पूजन, शाम को महाआरती आदि कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।

मूर्तिपूजक संघ गांवगुडा का सम्मेलन सम्पन्न

मुम्बई : श्वेताम्बर जैन ताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ गांवगुडा का २१वां स्नेह सम्मेलन मानस मंदिर शहापुर जैन तीर्थ में आयोजित हुआ। संघ अध्यक्ष अर्जुन नानावटी, संरक्षक हस्तीमल पामेचा, चौथमल सिंघवी, उपाध्यक्ष मांगीलाल पामेचा, मंत्री अशोक पामेचा, कोषाध्यक्ष भेरूलाल सिंघवी, संगठन मंत्री प्रकाश पामेचा, शांतिलाल पामेचा, हस्ती पामेचा, फूलचन्द लोढ़ा, सुरेन्द्र सिंघवी, प्रकाश सिंघवी आदि के प्रयास से आयोजित सम्मेलन में आचार्य अभय शेखर सूरीश्वर महाराज ने कहा कि सम्मेलन के माध्यम से धर्म, साधना, आराधना को आगे बढ़ाना चाहिए। गाँव से आए उदयलाल पामेचा, कालूलाल सिंघवी, रूपलाल पामेचा, पूनमचन्द पामेचा का सम्मान किया गया। आरती पामेचा ने मंगलाचरण किया। पार्श्व मण्डल, नागेश्वर मण्डल, वर्धमान मंडल, रत्नाकर मंडल आदि का सहयोग रहा। सम्मेलन में ग्राम विकास पर चर्चा हुयी। होली सम्मेलन पर भी सहमति बनी। शांतिनाथ बहू मण्डल ने नाटिका प्रस्तुत की। तपस्वियों, विद्यार्थियों, सहयोगियोंने प्रकाश चम्पालाल सिंघवी, फूलचन्द किशनलाल लोढ़ा, प्रकाश पामेचा का सम्मान किया। सम्मेलन में ताराचन्द सिंघवी, अर्जुन पामेचा, कन्हैयालाल पामेचा, कीर्ति पामेचा, जीवन धोका, नरेंद्र सिंघवी, दलपत पामेचा, भरत पामेचा, भरत सिंघवी, सुंदर सिंघवी, चौथमल नानावटी, प्रकाश नानावटी, सुभाष सिंघवी, सुंदर सिंयाल, दिनेश पामेचा, महेंन्द्र मुकेश पामेचा, भेरू सोहन लाल पामेचा, लोकेश सिंयाल, मांगीलाल सिंयाल, रमेश सिंघवी, किशन सिंघवी, हस्ती सुरेश सिंघवी, सुरेश पामेचा, विनोद पामेचा, अर्जुन पामेचा, गणेश पामेचा, मनसुख पामेचा, अशोक पामेचा, लालचन्द सिंघवी, जेठमल पामेचा, अर्जुन लाल सिंघवी, खेमराज सिंघवी, मांगीलाल पामेचा, गेहरीलाल पामेचा, प्रवीण पामेचा, भीमराज लोढ़ा आदि की उपस्थिति रही।

मानव सेवा ही परम कर्तव्य है जिनका

जिनका सम्पूर्ण जीवन सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, ऐसे व्यक्तित्व के धनी है पदमचंद जैन। आपका जन्म ८ मार्च १९५१ में आपके पैतृक निवास स्थान हापुड़ में माँ पदमाबाई के कुक्षी से हुआ। स्वभाव में शांति, गंभीरता और सेवा भाव आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है, आप जब ७ वर्ष के थे तभी आपके पिताजी का देहांत हो गया पर अपनी व्यवहार कुशलता व वाकपटुता के चलते आपने शिक्षा भी प्राप्त की और पिताजी का कारोबार भी संभाला। आपने समाजसेवा व लोकसेवा में हमेशा अग्रणी भूमिका निभायी है। अनगिनत लोगों की तन-मन-धन सेवा की है, आपके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों को देश-विदेश में भी सराहा गया है।
समाजसेवा के साथ आपका अपना भवन निर्माण व ज्वेलरी शोरूम का कारोबार है, आप राजनीति में केंद्रिय ग्रामीण विकास मंत्रालय के कपार्ट विभाग के सदस्य रहे, जहां एनजीओ (राजस्थान) की मॉनिटरिंग का कार्य करते हैं, आपकी संस्था इंटरनेशनल जैन एंड वैश्य फाउंडेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वैवाहिक रिश्ते बनाना, रोजगार, गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति, औषधालय, विधवा पेंशन आदि सेवाएं उपलब्ध कराना, जिसमें आपका योगदान अतुलनीय है, साथ ही महावीर इंटरनेशनल, जैन सोशल ग्रुप एवं भारतीय जैन मिलन के सदस्य हैं। आप ‘जीतो’ के एफ सी पी भी है। आप अपनी सेवाओं में राजनैतिक प्रशासनिक न्याय विभाग से संबंधित समस्याओं का निराकरण करते है। आपके द्वारा लगभग ८ हजार वैवाहिक रिश्ते करवाये जा चुके है आपको रिश्तो का बेताज बादशाह के रूप में बैंकांक, हॉगकांग, सिंगापुर दुबई एवं भारत में बहुत से स्थानों पर सम्मानित किया गया है आप केवल जैन समाज के ही रिश्ते करवाते है आपके पास लगभग ५० हजार से अधिक जैन लड़के- लड़कियों का डेटाबेस है।
आप १९७६ से १९९६ तक आप कांग्रेस पार्टी से जुड़े इस दौरान आप कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे, आप अखिल भारतीय श्वेताम्बर खरतरगच्छ के महासंघ के उत्तर भारत के मंत्री रहे। आपके परिवार में पत्नी-नीरा जैन व २ पुत्री व तीन पुत्र हैं, आपकी सफलता के पीछे नीरा जी का बहुत बड़ा योगदान रहा, आप एक नहीं कई प्रतिभाओं के धनी है, आपने कई लेख व कविताएं ‘जैन एकता’ पर लिखी हैं। आपको उर्दू शायरी का भी बहुत ज्ञान है।
‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि मैं ‘जैन एकता’ का परम समर्थक हूँ, जब हमारा एक णमोकार मंत्र है, हमारे प्रमुख आराधक भगवान महावीर हैं, जैन समाज सबसे शिक्षित व समृद्ध समाज है, सभी पंथों के आचार-विचार व पुजा आराधना विधि भिन्न-भिन्न जरूर है, पर सभी की मंजिल भगवान महावीर की आराधना ही है अत: हम सभी जैनों को एक ही मंच पर आना होगा जिससे जैन समाज का सम्पूर्ण विकास संभव हो सके।
आप ‘जिनागम’ पत्रिका के प्रमुख पाठक हैं जिसके संदर्भ में आपका कहना है कि ‘जिनागम’ पत्रिका जैन समाज की सम्पूर्ण धाराओं को जोड़ती है, जिसमें जैन समाज के सम्पूर्ण समाचार रहते हैं। आज बिजय जी की मेहनत रंग ला रही है।
आपका यह मानना है कि भले ही आज का युग अंग्रेजी का है जहां सारे कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं पर हमारी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा भी किसी से कम नहीं, अंग्रेजी के बदले ‘हिंदी’ का ही उपयोग करना चाहिए, तभी देश का सम्पूर्ण विकास संभव है।

- पदमचंद जैन, जैसलमेर निवासी-जयपुर प्रवासी
व्यावहारिक जीवन में कट्टरता अनुचित है

अभी हाल ही में हमने ३१ दिसम्बर को रात्री बारह बजे नये वर्ष का स्वागत किया। वास्तव में समुचे विश्व में खिश्चन समाज फैला होने से ३१ दिसम्बर समारोह मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में ३१ दिसम्बर का कोई महत्व नहीं है, किंतू विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ हिंदू, मुस्लीम, जैन, सिख, इसाई, बौद्ध आदि अनेक धर्म संप्रदाय, पंथ एक साथ रहते हैं और एक दूसरे के सुख और दु:ख में एक साथ भी खड़े मिलते है।
हम यह कहेंगे की हमें नाताळ, गणेशोत्सव, इद से क्या लेना देना तो आप जिस गांव में रहते हो या जिस परिसर में रहते हैं वहाँ आपका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। रात्री में बारह बजे के बाद आपको हार्ट आदि शिकायत होती है, तो पड़ोसी ही कार लेकर दौडते हैं, कई मुसलमान भाई समय पर दौड़ कर आते हैं, गांव में यह संबंध देवता जैसे होते हैं।
जैन समाज में चौबीस तिर्थंकर के अलावा अन्य भगवान की मान्यता नहीं है। गणपती-हनुमानजी को भी जैन शास्त्रो में स्थान नहीं हैं, किन्तु व्यावहारिक जीवन में जहाँ हम रहते हैं उस अनुसार चलना पड़ता है और जैन समाज के लोग इसे अच्छी तरह निभाते हैं। १९९१ में गणेशोत्सव के समय चिकलठाणा में जो सजावट तथा डेकोरेशन हुआ था, उसकी समिक्षा के लिये पत्रकार के नाते मेरी नियुक्ति की गई थी, मैंने अभ्यासपूर्ण तरीके से
समिक्षा की थी और महाराष्ट्र पुलिस विभाग द्वारा मुझे प्रशंसा पत्र दिया गया था, गांव में रहते हुए यह सब करना पसंद है। छोटे गांव में सबसे मिल कर रहना पड़ता है, सबसे स्नेह रखना पड़ता है और गांव में तीन चार परिवार रहने के बावजूद भी आपका प्रभाव रहता है, यह जैन समाज की विशेषता है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता है: ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपनाये त्यौहार नहीं, है अपनी ये तो रीत नही, है अपना व्यवहार नहीं राष्ट्रकवि के ये अपने विचार हैं, किन्तु प्रतिदिन जीवन में कट्टरता को ढीला करके गांव में समाज में सबके साथ मिलकर चलना, इस पर गंभिरता से विचार करने की आवश्यकता है। गांव में पौला त्यौहार (बैलों का त्यौहार) बड़े धूम धाम से मनाया जाता है, गांव में जैन भाईयों के पास भी खेती होती है। खेती पर जीवन जीते हैं। पौला त्यौहार के दिन बैलों की पुजा करनी पड़ती है, मीट्टी के बैलों की भी पुजा करनी पड़ती है, यह गांव के जीवन का हिस्सा है।

- अ‍ेम.सी. जैन
एक बार फिर उम्मीदों पर खरा उतरा नाइस इंश्योरेंस

अशोक डागलिया, सुरेश डागलिया, मेघराज पालरेचा, मांगीलाल डागलिया एवं
कुश डागलिया, चिराग डागलिया व गणपत डागलिया को धन्यवाद का पत्र देते हुए

  • धनलक्ष्मी ज्वेलर्स को मिला चोरी क्लेम का भुगतान
  • नाइस इंश्योरेंस ने करवाया ४,१६,६१२ रुपये का क्लेम पास

मुंबई: एक बार फिर से नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया, लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे हैं। मुंबई के धनलक्ष्मी ज्वेलर्स के कर्मचारी ईश्वरलाल पांडिया १४३.८७० ग्राम सोने के आभूषण एवं नकदी से भरा बैग लेकर धनजी स्ट्रीट से गोरेगांव, अंधेरी और मालाड में अन्य ज्वेलरों को अपना सैंपल माल दिखाने के लिए गए थे।
शाम को ७.१५ बजे ऑफिस लौटते समय मालाड ब्रिज पर किसी ने उनका ज्वेलरी और नगदी से भरा बैग काट दिया और उसमें रखा सारा आभूषण और नगदी चोरी हो गया, ईश्वरलाल पांडिया इस वारदात से काफी सहम और डर गए, आनन-फानन में उन्होंने तुरंत अपने मालिक कुश मांगीलाल जैन को फोनकर पर पूरी घटना बताई और एफ आईआर दर्ज करवाई। एफ आईआर की कॉपी उन्होंने नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया को देकर क्लेम दर्ज करवाया। सौभाग्यवश उन्होंने नाइस इंश्योरेंस द्वारा न्यू इंडिया एश्योरेंस की ज्वेलर्स ब्लॉक पॉलिसी ली थी। नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क ने क्लेम संबंधी सभी कागजात जमाकर महज दो महीनों में क्लेम रुपये ४,१६,६१२/- रुपये की ७५ प्रतिशत राशि ३,१२,४५९/- रुपये तुरंत दिलवाई और बाकी २५ प्रतिशत १,०४,१५३/- रुपये पुलिस अंतिम रिपोर्ट आने पर दी जाएगी। कुश जैन के पिता मांगीलाल जैन ने ‘जिनागम’ को बताया कि हमे पूरा भरोसा था कि नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क हमें क्लेम दिलवाएगा, हम ३५ साल से इनसे जुड़े हुए हैं और हमारे मेडीक्लेम, एलआईसी एवं अन्य इंश्योरेंस के पहले भी दर्ज किये गए क्लेम को गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया ने संतुष्ट पूर्वक पास करवाया है। ऐसे प्रोफेशनल कंपनी से बीमा करवाकर हम हमेशा से चैन की नींद सो सकते हैं, इसलिए इनके द्वारा दी गई एक्सपर्ट सलाह को हमने हमेशा अमल किया और उसका हमें फायदा हुआ। ज्वेलरी के बढ़ते भाव के कारण कुछ सालों से ज्वेलरी चोरियां काफी बढ़ रही हैं और इसका एक मात्र इलाज बीमा करवाएं ताकि आप किसी अनहोनी से मुकाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहें, ‘जिनागम’ परिवार नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के कार्यों की ह्रदय से सराहना करता है।

जिंदगी का मिजाज बदलने वाले मेवाड़ पुत्र
गुणवंत खिरोदिया
व्यवसायी व समाजसेवी राजसमंद निवासी-मुंबई प्रवासी

कुछ लोग जिंदगी के हिसाब से चलते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जिंदगी को अपने हिसाब से चलाते हैं, दुनिया उन्हीं को सलाम करती है। अपनी हिम्मत, मेहनत व व्यक्तित्व के बल पर समाज में विशेष पहचान बनाने वाले युवा समाजसेवी गुणवंत खिरोदिया किसी पहचान के मोहताज नहीं है, जिनका जीवन दुसरों के लिए मिसाल है वे आज सफल हैं, सबल हैं और सक्षम भी…
राजस्थान के राजसमंद जिले स्थित गिलूंड कस्बे में गुणवंत जी का जन्म हुआ, नाथद्वारा से स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात बड़े भाई सुरेश खिरोदिया का हाथ बंटाने के लिए कपड़े के व्यवसाय से जुड़ गए। गुणवंत खिरोदिया अपने पिता सोहनलालजी खिरोदिया की मृत्यु से विचलित तो थे, लेकिन उनके दिए संस्कारों को सहेजकर उन्होंने खुद के भीतर झांका, तो मन ही मन उन्हें अपने भीतर जिंदगी को जीत लेने का ख्वाब आकार लेता दिखने लगा, दरअसल जिंदगी उन्हें अपने गांव में कपड़ा व्यापारी बनाना चाहती थी, लेकिन गुणवंत खिरोदिया ने जिंदगी से कहा कि चलो कहीं और चलते हैं, कुछ और करते हैं, तो जिंदगी भी उनके साथ चलने को तैयार हो ली, तो बस यहीं से गुणवंत खिरोदिया ने अपने मन को मजबूत किया और पिता के शुरू किए व्यवसाय को भाई सुरेश खिरोदिया को सौंप कर अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए वे सपनों के शहर मुंबई पहुंच गए और अपना बाजार की फ्रेंचाइजी लेने के साथ ही सफलता के रास्ते पर उन्होंने जो तेजी पकड़ी, वह कईयों के लिए सफलता की मिसाल बन गई। कल्याण, पनवेल और ऐरोली में उन्होंने अपने स्टोर शुरू किए, लेकिन गुणवंत खिरोदिया उन इंसानों में नहीं जो सफलता से संतुष्ट हो जाएं, वे दूसरों के सपनों को पूरा करना चाहते थे, अपने काम को सालों साल जिंदा रखकर कईयों के लिए मिसाल बनना चाहते थे और आकाश छूना चाहते थे, सो कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में आ गए, जहां अब वे आसमान छूती ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएं खड़ी कर रहे हैं, लोगों का घर का सपना पूरा कर रहे हैं और जिंदगी को नए रंग दे रहे हैं। सन २००७ में अपने साथी सुनील चौधरी के साथ शुरू की गई उनकी कंस्ट्रक्शन फर्म एससीजीके बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड एक सफल कंपनी के रूप में हमारे सामने स्थापित है, वे मुंबई के पास अंबरनाथ में जिंदगी की सारी सुविधाओं से सुसज्ज अफोर्डेबल हाउसिंग के शानदार प्रोजेक्ट चला रहे हैं। तीन सफल प्रोजेक्ट पूरे करने के बाद अब दो नए विशाल प्रोजेक्ट लॉच किए गए हैं, जिनमें क्लब हाउस, जॉगिंग ट्रैक, मंदिर और स्वीमिंग पूल जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से भरपूर रॉयल फ्लोरा में १२०० फ्लैट और रॉयल कैसल में २००० मॉर्डन युनिट्स बना रहे हैं, वे अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी माता मोहिनी देवी द्वारा दिए गए संस्कारों और पिता सोहनलालजी से मिली हिम्मत को देते हैं। खिरोदिया बताते हैं कि ‘घर’ हर किसी की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है, उसे शानदार बनाना भी हर किसी का सपने में शामिल होता है, एक निर्माता के रूप में यह काम करने का मौका ईश्वर ने मुझे दिया है, तो मैं उसे बेहतर ढंग से पूरा करने में लगा हूँ, उनकी सफलता में धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला खिरोदिया का महत्वपूर्ण योगदान है, वे हर कार्य में अपना पूरा सहयोग देती हैं। श्री खिरोदिया क्रिकेट के साथ पढ़ने, विदेश भ्रमण का शौक भी रखते हैं, वे अब तक कई देशों का भ्रमण कर चुके हैं, ‘तेरा तुझको अर्पण’ सिद्धान्त को मानते हुए कहते हैं कि समाज ने जो कुछ दिया हैं उसे समाज के लिए देने में अपार खुशी होती हैं।

सपने देखना और देखे हुए सपनों को साकार करने के साथ उस सपने में हजारों लोगों को शामिल करना, खिरोदिया जी की जिंदगी का हिस्सा है। मेवाड़ महोत्सव की शुरूआत की, जहां हजारों लोग हर साल आपस में मिल-जुल कर अपने जीवन को नए रंग देते दिखते हैं। सामाजिक रूप से अत्यंत सक्रिय खिरोदिया जी ने अपनी माता मोहिनी देवी की पावन स्मृति में उदयपुर में पेसिफिक डेंटल कॉलेज, जयदृष्टि हॉस्पिटल, जिला अंधता निवारण समिति एवं महावीर इंटरनेशनल के सहयोग से अप्रैल २०१७ में एक विशाल चिकित्सा शिविर का आयोजन किया, जिसमें हजारों लोगों को इलाज का परामर्श एवं चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की गई। देखा जाए तो असल खुशी उन्हें समाज के बीच ही मिलती है। गुणवंत खिरोदिया मेवाड़ प्रवासी संघ और गिलूंड जैन मित्र मंडल के अध्यक्ष हैं तथा मेवाड़ नवयुवक मंडल मुंबई के प्रमुख हैं। जैन युवा संघ दिल्ली के संरक्षक तथा डोंबिवली उपसंघ के ट्रस्टी के रूप में भी सेवाएं दे रहे हैं।
अंबरनाथ ईस्ट रोटरी क्लब के पूर्व अध्यक्ष, खिरोदिया जी के नेतृत्व में जैन युवा संघ दिल्ली, देश भर में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को घर-घर तक पहुंचाने के प्रयास में हैं, उस सपने को उन्होंने अपने घर से शुरू करते हुए सफल बनाने में मदद की है, इस सफलता का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण उनकी दोनों बेटियां हैं- जिनमें से निकिता डॉक्टर हैं व मनाली सिविल इंजीनियर के रूप में काम कर रही है।
कोई व्यक्ति अपने नाम के अनुरूप ही जिंदगी बना कर दिखा दे, उसकी मिसाल गुणवंत खिरोदिया है, जिन्होंने जिंदगी की धारा को मोड़कर अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया।

- जिनागम

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