ओजस्वी सन्त तरूण सागरजी

मध्यप्रदेश के दमोह के छोटे से ग्राम में जन्मा एक बालक कभी देश का इतना ओजस्वी व प्रखर वक्ता सन्त बन जायेगा, यह किसी की कल्पना में नहीं था। २६ जुन सन् १९६७ में जन्मा पवन कुमार जैन, अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही एक जैन सन्त का आध्यात्मिक प्रवचन सुनकर, मन से आन्दोलित हो गया एवं १४ वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ दिया, वह किशोर अगले ५-६ वर्ष अपनी ज्ञान-पिपासा की शान्ति एवं मानव जीवन का उद्देश्य पूर्ण सुख-शान्ति प्राप्ति हेतु गुरू की खोज करता रहा, अन्त में सन् १९८८ में २१ वर्ष की आयु में दिगम्बर आचार्य श्री पुष्पदन्त सागरजी से मुनि दीक्षा लेने पर गुरू से नया नाम मिला- ‘‘मुनि तरूण सागर’’

मुनि तरूण ने शुरू के कुछ वर्ष ज्ञान व अध्यात्म शक्ति के विकास में लगाये, यह लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कुछ ही अन्तराल में, ‘तरूण सागर’ ज्ञान का सागर बन गया एवं एक विशिष्ट प्रवचन शैली विकसित की, जिसकी वजह से श्रोता बरबस ही उनकी ओर खिंचता चला जाता था, उन्होंने देश को अनेक शहरों का भ्रमण किया एवं अपनी ओजपूर्ण वाणी एवं धीमी व तेज उतार-चढ़ाव वाली प्रवचन की विशेष शैली से अपने श्रोताओं को सही जीवन जीने का सन्देश किया, उनका कहना था कि तुम स्वयं अच्छे व्यक्तियों की खोज मत करो, तुम स्वयं ही इतने अच्छे बन जाओ कि लोग तुम्हारी खोज करें, तुम्हारे जीवन में गुणों का इतना सुवास हो कि आने वाला तुम्हारे जीवन व व्यवहार से प्रभावित होकर जावे।


अधिकांश प्रवचनकार ऐसा सोचते हैं कि हमें अपनी बात इतनी मिठास से कहनी चाहिये ताकि श्रोता को आनन्द मिले, परन्तु मुनि तरूण सागरजी की प्रवचन शैली एक अलग ही किस्म की थी, वे कही जाने वाली कड़वी व कूट सत्य को श्रोता के सामने ज्यों का त्यों परोस देते थे, यानि कुनैन की गोली पर मिठास का लेप नहीं करते थे, वो बताई जाने वाली बात को ऊंचा-नीचा करके व कई बार घुमा-फिराकर ऐसे ज्यों की त्यों कहते थे कि श्रोता को हार्ट-अटैक की तरह एक दम अटैक करती थी, वह सोचने को मजबूत होता था कि मुझे अब कुछ करना चाहिये, सोचना चाहिये, चिन्तन व विचार परिवर्तन होना चाहिए।


उनकी विद्वता व वैशिष्टतया से केवल आम आदमी ही नहीं बल्कि विद्वान व प्रबुद्धजन, साहित्यकार व राजनेता भी प्रभावित होते थे, इस वजह से उनके गुणों की सुगन्ध व पहचान बढ़ती गई, प्रवचन में तो हजारों-हजारों व्यक्ति उपस्थित होते थे, वो मन्दिरों व स्थानकों के अलावा, स्कूलों कॉलेजों व जेल में प्रवचन देते थे, मध्यप्रदेश, हरियाणा की विधानसभा में यही एक जैन सन्त रहे, जिन्हें अपनी बात रखने का अवसर मिला, उन्होंने पुलिस अकादमियों व सेना के जवानों को भी सम्बोधित किया एवं उन्हें प्रभावित किया।


सन्त तरूण सागरजी अपनी बात खूब कड़ाई से रखते थे, अत: वो कड़वे प्रवचनकार नाम से विख्यात हो गये, उनके प्रवचनों का संकलन ‘‘कड़वे प्रवचन’’ नाम से कई भागों व कई भाषाओं में प्रकाशित हुए है, जैन सन्तों में सम्भवत: यही एक व्यक्ति है जिनका नाम ‘लिम्का रिकॉर्ड बुक’ में ही नहीं, बल्कि ‘गिनीज रिकॉर्ड’ में भी शामिल हुआ है, उनके प्रवचनों की एक पुस्तक तो विशिष्ट आकार में प्रकाशित हुई थी, जो स्वयं में एक रिकॉर्ड है।

वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’ के निवेदन पर मुनि श्री तरूण सागरजी ‘जैन एकता’ के काफी पक्षधर बनें एवं इस हेतु अनवरत मे सहयोग करते रहे। तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमणजी का सन् २०१४ में जब दिल्ली में चातुर्मास था, तब उन्हीं के प्रयास से दिगम्बर मूर्तिपूजक, स्थानक व तेरापंथी चारों सम्प्रदायों का चातुर्मास के अवसर पर विशाल सम्मेलन हुआ था, तब यह भी तय किया गया था कि ऐसा आयोजन प्रति वर्ष होगा, परन्तु एकता की ओर बढ़ते कदम और आगे नहीं बढ़े, वह फिलहाल मुनि ही कहलाते थे, परन्तु ज्ञान, मान-सम्मान में किसी भी आचार्य से कम नहीं थे, इनकी पहचान कम ही उम्र में व कम ही वर्षों में पूरे विश्व में हो गयी थी।


दिल्ली में आपके अनेकों चातुर्मास सम्पन्न हुए हैं, इस साल सन् २०१८ का चातुर्मास कृष्णानगर क्षेत्र के राधेपुरी मन्दिर में था, वो पीलिया की बिमारी से ग्रस्त हो गये, यह बिमारी वैसे कोई खतरनाक श्रेणी की व जानलेवा नहीं होती, परन्तु आपके लिये असाध्य बन गयी।


स्थिति कण्ट्रोल में नहीं आई, उम्र का केवल ५१ वां वर्ष ही चल रहा था, यानि भविष्य की काफी सम्भावना थी, परन्तु एक विवेकपूर्ण आचारवान सन्त होने के नाते उन्होंने अपना मानस सल्लेखना पूर्वक समाधि लेने का बना लिया, इस स्थिति में दिल्ली स्थित अनेक जैन साधु उनके पास पहुंच गये एवं सभी ने उनकी कम उम्र देखते हुए, उन्हें संथारा लेने व दिलाने के पक्ष में नहीं थे, परन्तु एक सितम्बर २०१८ रात्री में एकाएक स्थिति बिगड़ गयी एवं रात्रि में ३:१८ की ब्रह्मवेला में अपनी अन्तिम श्वास ली।


देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अनेक विद्वतजनों ने आपके कृतृत्व की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अश्रपूरित श्रद्धांजलि दी, यह एक प्रश्न खड़ा हुआ कि इतनी कम उम्र में ऐसे महान सन्त की इहलीला क्यों समाप्त हुयी, इनके कृतृत्वों ने इनका जवाब दे दिया कि मात्र इतनी कम उम्र में ही समाज व राष्ट्र को इतना कुछ दे दिया एवं परोस दिया कि आगामी कई पीढ़ियां उनसे लाभान्वित होती रहेंगी, जो काम ९०-१०० वर्ष उम्र में होता था, उन्होंने ५० की उम्र में ही कर लिया, अत: प्रभु! ने शायद किसी अन्य लोक में ज्यादा अपेक्षा समझकर, इस महान आत्मा को वहां भिजवा दिया होगा, प्रभु की लीला कौन जान सकता है? प्रात: ४ बजे तक समाचार सर्वत्र फैल गया एवं कृष्ण नगर का चप्पा-चप्पा जनाकीर्ण हो गया, प्रात: ७ बजे के आसपास उनके पार्थिव शरीर को, बैठी हुई मुद्रा में हजारों व्यक्तियों की सहभागिता से गाजियाबाद से आगे मुरादनगर स्थित तरूण सागर धाम में उनके पार्थिव शरीर को संध्या वेला में अग्नि के सुपुर्द कर दिया गया। मुनि श्री तरूण सागरजी ने पूरे विश्व के करोड़ों व्यक्तियों को अपने प्रवचनों -कृतृत्वों से प्रभावित किया था, अनेक भाषाओं में व कई खण्डों में प्रकाशित उनकी प्रवचनों की पुस्तकें आगामी शताब्दियों को दिशाबोध देती रहेगी, प्रेरणा देती रहेगी। कुछ वर्षों पहले आचार्य महाप्रज्ञजी ने एक सन्देश, मेरे माध्यम से इनको भिजवाया था, तब से व्यक्तिगत पहचान हो गयी थी, इसके बाद जब भी दर्शन का अवसर मिला खूब स्नेहाशक्ति आशीर्वाद देते थे, ऐसी महान आत्मा को ‘जिनागम’ परिवार का शत: शत: वन्दन।

- विजयराज सुराणा, नई दिल्ली

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