श्री चारित्र चंद्रिका
बाल ब्रम्हचारिणी, तीर्थ उद्धारक, वात्सल्यमुर्ति, जम्बुद्विपप्रेरिका, गुरूपरम्परारक्षिका, आर्थिकशिरोमणी, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र शताष्ठ फुटोन्नत वृषभदेव प्रतिभा निर्माण प्रेरिका, (१०८ फूट वृषभदेव मूर्ती प्रेरिका) और जैन धर्म गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी ने सन १९३४ में उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला स्थित रिकेतनगर ग्राम में अश्विन सुदि १५ शरद पुर्णिमा के दिन रात्री के प्रथम प्रहर में मातामोहिनी और पिता छोटेलाल की प्रथम संतान कुमारी मैना के रूप में जन्म लिया।श्री सिद्ध क्षेत्र मांगीतुगी पर २४ अक्टूबर २०१८ शरद पुर्णिमा को पुज्य माताजी ज्ञानमतीजी का ८५वां जन्मजयंती महोत्सव बड़े धुमधाम से मनाया गया। कु. मैना ने १८ वर्ष की अल्प वय में अनेक सामाजिक और परिवारिक संघर्षों को झेलकर शरद पुर्णिमा के दिन ही सन १९५२ में आचार्य १०८ श्री देशभूषण किया था। तत्पश्चात सन १९५३ में चेत्र कृष्ण एकम को श्री महावीरजी अतिशय तीर्थ क्षेत्र पर कु. मैना ने आचार्यरत्न देशभूषण महाराजजी से क्षुल्लिका दिक्षा ग्रहण कर ‘वीरमती’ नाम प्राप्त किया। पूज्य माताजी बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती शांतिसागर जी महाराज के तीन बार दर्शन किये और उनके सानिध्य में रहकर अनेक अनुभव प्राप्त किये, अंत में पुज्य माताजी ने आचार्य के श्री समाधी का अन्त समय होने से उनके आदेशानुसार सन १९५६ मे वैशाख कृष्ण २ के दिन माधोराजपुरा (राजस्थान) में प्रथमचार्य शांतिसागर महाराजजी के प्रथम पट्टशिष्य परमपुज्य आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज से आर्यिका दिक्षा प्राप्त की तब गुरूवर ने इन्हें आर्यिका ज्ञानमती माताजी के नाम से अलंकृत किया।
साहित्य सृजन: भगवान महावीर की परम्परा में २६०० वर्षों में कभी किसी महिला साध्वीद्वारा लेखन नही हुआ। पुज्य माताजी के अभीक्षण ज्ञानोपयोग के फलस्वरूप उनकी लेखनी से अपसहस्मी, नीयमसार, समयसार, षट्खडागम, मुलाचार, कातंत्रव्याकरण आदि ग्रंथों के अनुवाद/टिकायें एवं लगभग ४००-४५० ग्रंथों की लेखीका। प्रवचन निर्देशिका ज्ञानामृत, आराधना, जैन भूगोल आदि महान ग्रंथ प्रसूत हुए हैं। अनेक विधानों की रचनायें महावीर विधान, नंदीध्वज, तीस चौबिसी, कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र, तीन लोक, त्रिलोक मंडल, विश्वशांति महावीर विधान, जम्बूद्विप आदि अनेक मंडल विधानों का सृजन हुआ। बाल विकास, जैन बाल भारती, प्रतिज्ञा, जीवनदान, उपकार, परिक्षा, आटे का मुर्गा, आत्मा की खोज, कामदेव बाहुबली, संस्कार, रोहिणी नाटक आदि अनेक कृतियों का सुत्रपात हुआ।
डी. लोट की मानद उपाधी: १९९५ में अवध वि.वि. फैज़ाबाद द्वारा एवं तीर्थकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद द्वारा ८ अप्रैल २०१२ को डी. लीट. की मानद उपाधी से विभूषित हुई। महोत्सव प्रेरणा- पंचवर्षीय जम्बूद्विप महामहोत्सव, भगवान वृषभदेव उत्तरराष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव, अयोध्या में भगवान वृषभदेव महामहोसत्व मस्तकाभिषेक,कुंडलपुर महोत्सव, भगवान पाश्र्वनाथ जन्म कल्याणक तृतीय सहत्रब्दी महोत्सव, दिल्ली में कल्पद्रूम महामंडल विधान का ऐतिहासिक आयोजन इत्यादि। २१ डिसेंबर २००८ को जम्बूद्विप स्थल पर विश्वशांती अहिंसा सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभादेवीसिंह पाटील द्वारा किया गया।
रथप्रवर्तन प्रेरणा: पुज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से जैन धर्म की देशव्यापी प्रभावना हेतु रथों का प्रवर्तन हुआ। जैनागम में वर्णित भूगोल एवं खगोल विषय के अध्यान अनुसंधान की प्रक्रिया को गतीशील बनाने के हेतु जैन भूगोल का दिग्दर्शन करानेवाले ‘जम्बुद्विप ज्ञान ज्योती रथ’ प्रवर्तन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदीरा गांधी के करकमलों से ४ जून १९८२ को हुआ था। (१९८२-१९८५) द्वितीय रथ भगवान ऋृषभदेव समवसरण श्री विहार का रथ प्रवर्तन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा (१९९८-२००२) हुआ। तृतीय भगवान महावीर ज्योती का प्रवर्तन बिहार के तत्कालीन महामहीम राज्यपाल डॉ विनोद चंद पांडे द्वारा हुआ। चौथा रथ आचार्य श्री सम्मेदशिखर ज्योती रथ का प्रवर्तन २०१४ में हुआ। भगवान ऋषभदेव विश्वशांति कलश यात्रा रथ मांगीतुंगी के दो रथों का भारत भ्रमण (२०१५-२०१६) में हुआ।
रथप्रवर्तन प्रेरणा: पुज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से जैन धर्म की देशव्यापी प्रभावना हेतु रथों का प्रवर्तन हुआ। जैनागम में वर्णित भूगोल एवं खगोल विषय के अध्यान अनुसंधान की प्रक्रिया को गतीशील बनाने के हेतु जैन भूगोल का दिग्दर्शन करानेवाले ‘जम्बुद्विप ज्ञान ज्योती रथ’ प्रवर्तन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदीरा गांधी के करकमलों से ४ जून १९८२ को हुआ था। (१९८२-१९८५) द्वितीय रथ भगवान ऋृषभदेव समवसरण श्री विहार का रथ प्रवर्तन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा (१९९८-२००२) हुआ। तृतीय भगवान महावीर ज्योती का प्रवर्तन बिहार के तत्कालीन महामहीम राज्यपाल डॉ विनोद चंद पांडे द्वारा हुआ। चौथा रथ आचार्य श्री सम्मेदशिखर ज्योती रथ का प्रवर्तन २०१४ में हुआ। भगवान ऋषभदेव विश्वशांति कलश यात्रा रथ मांगीतुंगी के दो रथों का भारत भ्रमण (२०१५-२०१६) में हुआ।
शैक्षणिक प्रेरणा: जैन गणित और त्रिलोक विज्ञान पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी राष्ट्रीय कुलपती सम्मेलन, इतिहासकार सम्मेलन, न्यायाधीश सम्मेलन, आदि अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर का सेमीनार, ऑनलाईन इनसायक्लोपीडिया आदि, पंडीतों का सम्मेलन हुआ।
तीर्थ निर्माण प्रेरणा: हस्तिनापूर मे जंबूद्विप, तेरहद्विप, तीन लोक आदि रचनाओं का निर्माण, शाश्वत तीर्थ अयोध्या का विकास एवं जीर्णोद्धार, प्रयाग इलाहाबाद उ.प्र. में तीर्थंकर वृषभदेव तपस्पलीr तीर्थ का निर्माण, तीर्थंकर जन्म भूमियों का विकास यथा भगवान महावीर जन्मभूमी वुंâडलपूर (नालंदा बिहार) में ‘मद्यावर्त महल’ नामक तीर्थ निर्माण, भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमी कावंâदी तीर्थ निकट गोरखपूर उ.प्र. का विकास, भगवान पाश्र्वनाथ केवलज्ञान भूमी अहिछत्र तीर्थ पर तीस-चौविसो मंदिर, हस्तिनापूर में जम्बूद्विप स्थल पर भगवान शांतिनाथ, वुंâथूनाथ, अरहनाथ की ३१-३१ पूâट उतुंंग खड़गासन प्रतिमा, स्थापन, मांगीतुंगी सिद्ध क्षेत्र पर १०८ पूâट उतूंग भगवान वृषभदेव की विशाल प्रतिमा महावीर धाम में पंच बालयती मंदिर, शिर्डी में ज्ञानतीर्थ, समेद-शिखर में प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर धाम आदि। सितम्बर २०१८ में प्रथमाचार्य शांतिसागर जी महाराज की ६३ वीं पुण्यतिथी महामहोत्सव ११ सितम्बर को वृहत स्तर पर दक्षिण भारत जैन सभा, वीर सेवादल सहयोग से मांगीतुंगी में माताजा की प्रेरणा से हुआ। सोलह कारण भावना, दशलक्षण पर्व में विश्वशांती महावीर मंडल विधान (जिसमें २६०० अघ्र्य है, २६०० रत्न मंडल पर चढाये गये। १४ सितम्बर से २४ सितम्बर तक विधान हुआ। माताजी का सानिध्य प्राप्त हुआ। प्रतिष्ठाचार्य दिपक पंडित और सुरेश जोलापूरे लेखक पत्रकार, वार्ताहार कार्यक्रम मौजूद थे। २४ अक्टूबर २०१८ शरद पुर्णिमा को पूज्य माताजी का ८५ वाँ जन्मजयंती महोत्सव मनाया गया।सर्वोदयी व्यक्तित्व की धनी पूज्य गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी को ‘जिनागम’ परिवार का शत: शत: वंदन नमन।
-सुरेश आणापा जोलापुरे
लेखक, पत्रकार, वार्ताहारपुज्य