क्षमावाणी पर्व पर स्वयं से भी क्षमा मांगे
पर्युषण : मन की सफाई का पर्व
हिंदी सेवा व जैन एकता का अलख जगाने वाले वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन कहते हैं कि तमाम बुराई के बाद भी हम अपने आपको प्यार करना नहीं छोड़ते तो फिर दूसरे में कोई बात नापसंद होने पर भी उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते? इसी तरह भगवान महावीर और हमारे अन्य संत-महात्मा भी प्रेम और क्षमा भाव की शिक्षा देते हैं |
भगवान महावीर ने हमें आत्म कल्याण के लिए दस धर्मों के दस दीपक दिए हैं, प्रतिवर्ष पर्युषण आकर हमारे अंत:करण में दया, क्षमा और मानवता जगाने का कार्य करता है, जैसे हर दीपावली पर घर की साफ-सफाई की जाती है, उसी प्रकार पर्युषण पर्व मन की सफाई करने वाला पर्व है, इसीलिए हमें सबसे पहले क्षमा याचना हमारे मन से करनी चाहिए, जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी, तब तक क्षमावाणी पर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है, अत: जैन धर्म क्षमा भाव ही सिखाता है, हमें भी रोजमर्रा की सारी कटुता, कलुषता को भूल कर एक-दूसरे से माफी मांगते हुए और एक-दूसरे को माफ करते हुए सभी गिले-शिकवों को दूर कर क्षमा पर्व मनाना चाहिए। दिल से मांगी गई क्षमा हमें सज्जनता और सौम्यता के रास्ते पर ले जाती है, आइए क्षमा पर्व पर हम अपने मन में क्षमा भाव का दीपक जलाएं उसे कभी बुझने न दें, ताकि क्षमा का मार्ग अपनाते हुए धर्म के रास्ते पर चल सकें। कहते हैं माफी मांगने से बड़ा माफ करने वाला होता है। अत: हम दोनों ही गुण स्वयं में विकसित करें।
क्षमा पर्व का पावन दिन है भव्य भावना का त्योहार,
विगत वर्ष की सारी भूलें देना हमारी आप बिसार।।
।। उत्तम क्षमा… जय जिनेंद्र…।।