दिल्ली में तपस्वियों का सम्मान
दिल्ली:
दिनांक ३० सितम्बर को बड़ी श्रद्धा एवं हर्षोल्लास से उपाध्याय श्री गुप्तिसागर जी म.सा. का ३७ वाँ दीक्षा समारोह सम्पन्न हुआ, इस अवसर पर क्षमावाणी महापर्व का भी आयोजन किया गया, जिसमें दिल्ली में १० उपवास व इससे अधिक उपवास करने वालों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया, कार्यक्रम में ३१०८ यात्रियों को श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा के टिकट वितरित किए गए, इस अवसर कई गणमान्यों के साथ ही केंद्रीय विज्ञान प्रोद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन व दिल्ली के स्वास्थ मंत्री सत्येन्द्र जैन भी उपस्थित थे, जिन्होंने सभा को सम्बोधित भी किया।
एकता में शक्ति
मुझे जिनागम पत्रिका मिली, बराबर तीन दिनों तक इस पत्रिका पर चिन्तन किया, बहुत ही शिक्षाप्रद है, थोड़ा सा समय हमसभी आत्म चिन्तन में लगायें, जैन समाज जो बिखरा हुआ है, हम आपस में झगड़ते हैं, जिसका लाभ दूसरों को मिल जाता है।
दिगम्बर-श्वेताम्बर हम सब ‘एक’ बन जायें, भारत में शासन करने लगें, एकता में ही शक्ति निहित है। उदाहरण के तौर पर एक छोटा सा लेख लिख रहा हूँ, ध्यान से पढिये और आत्म चिन्तन करिये।
एक व्यक्ति के पास रेशम का धागा था, रेशम के धागे आपस में लड़ने लगे, अलग-अलग रहने की सबने ठानी। धागे दर्जी के पास गये और कहा हमारे टुकड़े कर दो। दर्जी ने रेशम के धागे के टुकड़े कर दिये। धागे हवा से इधर-उधर हो गये, एक व्यक्ति आया उसने देखा, रेशम के धागे हैं जिसको एक कर बड़ा से गट्टा बना दिया, फिर जंगल में गया खजूर की पत्तियों को इकट्ठा किया, फिर उसकी सिलाई करके चटाई बनाई, उसने चटाई को बाजार में बेच दिया। धागे अलग अलग रहे तो कोई नहीं पूछा, जब एक हो गये तो उसका आदर हो गया, इसी तरह जैन समाज अलग-अलग रहेगें तो हमारे ऊपर हमले होते रहेगें, चारों सम्प्रदाय एक हो जायें तो हमारा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। धर्म एक है, मान्यता अलग रहे हमारे धर्म पर, हमारे मुनियों पर हमले हों तो उस समय ‘एकता’ का परिचय जरूर दें।
‘हिन्दी’ हमारी राष्ट्रीय भाषा है फिर भी हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं मानते, जब ‘हिन्दी’ को सभी भारतीय बोलने लग जायेगें, तो भारत का नाम दुनिया में रोशन हो जायेगा, ‘हिन्दी’ भाषा राष्ट्र की है जिसके हम अनुयायी हैं।
– महावीर प्रसाद अजमेरा
जोधपुर