श्री विद्यासागर पाठशाला द्वारा संचालित महामंत्र णमोकार

श्री विद्यासागर पाठशाला द्वारा संचालित महामंत्र णमोकार

तीर्थंकर केवली के भेद तथा तीर्थंकर प्रकृति की बंध व्यवस्था किस प्रकार की है, इसका वर्णन किया

जा रहा है।

अरिहंतों अर्थात् केवली के कितने भेद होते हैं?

अरिहंतों अर्थात् केवली के दश भेद होते हैं।

(१) तीर्थंकर केवली के तीन भेद होते हैं।

(१) पांच कल्याणक वाले तीर्थंकर केवली ।

जिन जीवों के पूर्वभव में ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो गया है, उन जीवों के नियम से गर्भ

कल्याणक, जन्म कल्याणक, तप कल्याणक, ज्ञान कल्याणक और निर्वाण (मोक्ष) कल्याणक यह पांचों

कल्याणक होते हैं।

गर्भ कल्याणक, जन्म कल्याणक, तप कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक इन पांच

कल्याणक वाले तीर्थंकर वे ही जीव बनते हैं, जिन्होंने तीर्थंकर बनने के पूर्व तीसरे भव में ही तीर्थंकर

प्रकृति का बंध कर लिया हो अर्थात् जिस मनुष्य भव में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया है, वहां पर

यदि अवद्धायुष्यक (जिन्होंने पूर्व भव की किसी भी आयु को नहीं बांधा है) है, तो ऐसा जीव नियम

से देव आयु का ही बंध करता है अथवा देवायुवद्धायुष्क (जिन्होंने देव आयु का बंध कर लिया है,

ऐसे जीव देव पर्याय में जाते हैं। अथवा जो नरकायुबद्धायुष्क (जिन्होंने नरक आयु का बंध कर लिया

है , ऐसे जीव नरक पर्याय में जाते हैं, उनकी अपेक्षा देव पर्याय या नरक पर्याय यह दूसरा भव हुआ।

देव पर्याय या नरक पर्याय से आकर पुनः मनुष्य पर्याय को प्राप्त करते हैं और मुनि दीक्षा को धारण

कर चार घातिया कर्मों का क्षय कर केवल ज्ञान को प्राप्त कर तीर्थंकर प्रकृति के उदय से १३ वें

गुणस्थान में नियम से ८ वर्ष अंतर मुहूर्त काल तक समवशरण में भव्य जीवों को उपदेश देकर फिर

मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उनकी अपेक्षा यह मनुष्य भव तीसरा भव हुआ।

(१) तीर्थंकर प्रकृति के बंध की अपेक्षा वर्तमान मनुष्य भव पहला भव हुआ।

(२) तीर्थंकर प्रकृति के सत्त्व की अपेक्षा देव पर्याय या नरक पर्याय यह दूसरा भव हुआ ।

(३) तथा तीर्थंकर प्रकृति के सत्त्व और उदय की अपेक्षा वर्तमान में प्राप्त मनुष्य पर्याय यह तीसरा

भव हुआ।

(२) तीन कल्याणक वाले तीर्थंकर केवली, जिन जीवों के वर्तमान मनुष्य पर्याय के भव में ही गृहस्थ

अवस्था में दीक्षा लेने के पहले ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो जाता है, उन जीवों के तप कल्याणक,

ज्ञान कल्याणक और निर्वाण कल्याणक में तीन कल्याणक होते हैं।

जिन जीवों ने चरम अर्थात् अंतिम शरीर को धारण किया है, ऐसे जीवों ने असंयत अर्थात् चतुर्थ

गुणस्थान और देव संयत अर्थात् पंचम गुणस्थान में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया है, तब उनके तप,

ज्ञान और मोक्ष यह तीन कल्याणक होते हैं।

३) दो कल्याणक वाले तीर्थंकर केवली, जिन जीवों के वर्तमान मनुष्य पर्याय के भव में ही मुनि दीक्षा

लेकर फिर तीर्थंकर प्रकृति का बंध हुआ है, उन जीवों के ज्ञान कल्याणक और निर्वाण कल्याणक यह

दो कल्याणक होते हैं।

जिन जीवों ने चरम अर्थात् अंतिम शरीर को धारण किया है। साथ ही मुनि दीक्षा को प्राप्त कर

भावलिंग के साथ मुनि व्रतों का पालन कर रहे हैं, ऐसे जीव प्रमत्त अर्थात् छठवें गुणस्थान और

अप्रमत्त अर्थात् सातवें गुणस्थान में तीर्थंकर प्रकृति का बंध करते हैं, तब उनके ज्ञान कल्याणक और

मोक्ष कल्याणक यह दो कल्याणक होते हैं।

-बाल ब्रह्मचारी अशोक भैया

भ्रमणध्वनि: ९४२४५९५४४५,९१०९३६७३१८

You may also like...