भगवान महावीर और उनके सिद्धान्त
अहिंसा का अर्थ है हिंसा का परित्याग करना, किसी को दु:ख देने की भावना से दु:ख देना हिंसा है, द्रव्य और भाव इन भेदों से हिंसा दो प्रकार की होती है, किसी का गला घोंट देना या तलवार आदि शस्त्रों द्वारा किसी का प्राणान्त कर देना द्रव्य हिंसा है। द्रव्य-हिंसा का अधिक सम्बन्ध द्रव्य के साथ होने से, द्रव्य-हिंसा कहा जाता है, जिस हिंसा का सम्बन्ध भावना के साथ हो वह भाव-हिंसा कहलाती है। ह्रदय में दूसरों को मारने का विचार करना, झूठ, चोरी, व्यभिचार, क्रोध, मान, कपट और लोभ आदि दुर्गुणों का पैदा होना भाव हिंसा है। हिंसा चाहे...
भगवान महावीर की शिक्षा और आज का युग
आज हम विनाश और विकास के मोड़ पर हैं, विज्ञान और अज्ञान साथसाथ चल रहे हैं, मनुष्य चंद्रमा पर पहुँच गया, भारत का उपग्रह आर्यभट्ट आकाश में घूम रहा है। रुस का अंतरिक्ष यान शुक्र-धरातल को स्पर्श करेगा लेकिन मानव का शांति के लिये आक्रोश आक्रंदन जारी है। मानव कल्याण की सर्वोच्च घोषणा करने वाले युग में, पीड़ित मानवता की वेदना समाप्त नहीं हुई। विषमता और निर्ममता का साम्राज्य व्याप्त है। मनुष्य की आत्मा खो गयी सी लगती है, चेतना घुट गयी सी लगती है। ‘जवाहर लाल नेहरु’ पुरस्कार विजेता दार्शनिक ‘आंद्रे मालरो’ के यह विचार ‘वर्तमान विश्व में भारत...
महावीर प्रभु का जीवन और कथन
महावीर प्रभु का जीवन मनुष्य स्वभाव में हो रही हिंसा, असत्य, राग इत्यादि आसुरी तत्वों पर विजय प्राप्त कर मनुष्य जीवन को सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि देवी गुणों से भरकर समाज का उत्थान करने वाला था। भगवान महावीर ने चरित्र निर्माण, सदाचरण और अहिंसा पर बल दिया था, उनके अमृत उपदेशों से भारत के ही नहीं अपितु सारे संसार के कोटि-कोटि लोगों को नया मार्ग तथा नया ज्ञान मिला। आज के वैज्ञानिक युग में जबकि मानवता संघर्ष और तनाव के बीच में से गुजर रही है उनके उपदेशों द्वारा ही राहत मिल सकती है। समाज में आज जो अशांति है...
भगवान महावीर निर्वाण पर खास प्रस्तुति
निर्वाण प्राप्ति का ध्रुव मार्ग भगवान महावीर ने पावापुरी से मोक्ष प्राप्त किया। महावीर की आत्मा कार्तिक की चौदस को पूर्ण निर्मल पर्याय रुप से परिणमित हुई और महावीर, सिद्धपद को प्राप्त हुए। पावापुरी में इन्द्रों तथा राजा-महाराजाओं ने निर्वाण-महोत्सव मनाया था, उसी दीपावली तथा नूतनवर्ष आज का दिवस है। भगवान पावापुरी स्वभाव ऊध्र्वगमन कर ऊपर सिद्धालय में विराज रहे हैं, ऐसी दशा आज भगवान को पावापुरी में प्रगट हुई, इसलिए पावापुरी भी तीर्थधाम बना, हम सम्मेदशिखर की यात्रा के समय पावापुरी की यात्रा करने गये, तब वहाँ भगवान का अभिषेक हुआ था, वहाँ सरोवर के बीच में – जहाँ...
भगवान् महावीर एवम् दीपावली
मानव ने अपने अन्तर जागरण की प्रभात बेला में जब आँखें खोलीं तो अपने चतुर्दिक् व्याप्त संसति की संरचना को देखकर विस्मय-विमुग्ध हो गया। अपनी कर्मस्थली, अपना लोक ही उसकी समझ से परे हो, यह उसके लिए कम परिताप की बात न थी, उसने सोचा, आखिर यह सब क्या है? हमारे सामने सारी वसुन्धरा सजी-संवरी खड़ी है और हम हैं कि जो अंधेरे में भटक रहे हैं, कुछ भी समझने-बूझने के लिए, प्रकाश की कहीं से एक भी क्षीणरेखा ऩजर नहीं आ रही है, तब सभी ने – ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय’’ की गुहार शुरु कर दी। कहना...