Category: नवंबर-२०१८

ज्ञानधन का स्वामी ही धनी कहलाता है 0

ज्ञानधन का स्वामी ही धनी कहलाता है

ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, आत्मा कितनी ही मिलन और निकृष्ट दशा को क्यों न प्राप्त हो जाए, उसका स्वभाव मूलत: कभी नष्ट नहीं होता। ज्ञान लोक की कतिपय किरणें, चाहे वे धूमिल ही हों, मगर सदैव आत्मा में विद्यमान रहती है, निगोद जैसी निकृष्ट स्थिति में भी जीव में चेतना का अंश जागृत रहता है, इस दृष्टि से प्रत्येक आत्मा ज्ञानवान ही कही जा सकती है, मगर जैसे अत्यल्प धनवान को धनी नहीं कहा जाता, विपुल धन का स्वामी ही धनी कहलाता है, इसी प्रकार प्रत्येक जीव को ज्ञानी नहीं कह सकते, जिस आत्मा में ज्ञान की विशिष्ट मात्रा जागृत एवं स्पूâर्त रहती है, वही वास्तव में ज्ञानी कहलाता है। ज्ञान की विशिष्ट मात्रा का अर्थ है -विवेक युक्त ज्ञान होना, स्व-पर का भेद समझने की योग्यता होना और निर्मल ज्ञान होना, जिस ज्ञान में कषाय जीवन का मिलन न हो वही वास्तव में विशिष्ट ज्ञान या विज्ञान कहलाता है। साधारण जीव जब किसी वस्तु को देखता है तो अपने राग या द्वेष की भावना का रंग उस पर चढ़ा देता है और इस कारण उसे वस्तु का शुद्ध ज्ञान नहीं होता, इसी प्रकार जिस ज्ञान पर राग द्वेष का रंग चढा रहता है, जो ज्ञान कषाय की मिलनता के कारण मिलन बन जाता है, उसे समीचीन ज्ञान नहीं कहा जा सकता। सम्यकज्ञान जिन्हें प्राप्त है,उनका दृष्टिकोण सामान्य जनों के दृष्टिकोण से कुछ विलक्षण होता है। साधारण जन जहां वाहन दृष्टिकोण रखते हैं, ज्ञानियों की दृष्टि आंतरिक होती है। हानि-लाभ को आंकने और मापने के मापदंड भी उनके अलग होते हैं। साधारण लोग वस्तु का मूल्य स्वार्थ की कसौटी पर परखते हैं, ज्ञानी उसे अन्तरंग दृष्टि से अलिप्त भाव से देखते हैं, इसी कारण वे अपने आपको कर्म बंध के स्थान पर कर्म निर्जरा का अधिकारी बना लेते हैं। संसार प्राणी जहां हानि देखता है, ज्ञानी वहां लाभ अनुभव करता है, इस प्रकार ज्ञान दृष्टि वाले और बाहरी दृष्टि वाले में बहुत अन्तर है। बाहरी दृष्टि वाला भौतिक वस्तुओं में आसक्ति धारण करके मिलनता प्राप्त करता है जब कि ज्ञानी वस्तु स्वरूप को जानता है, बहुत बार ज्ञानी और अज्ञानी की बाहरी चेष्टा एक सी प्रतीत होती है मगर उसके आंतरिक परिणामों में आकाश-पाताल जितना अंतर होता है, ज्ञानी जिस लोकोत्तर कला का अधिकारी है वह आसानी से उपलब्ध कहाँ होता है? – महावीर प्रसाद अजमेरा जोधपुर, राजस्थान स्वर्ग-नरक स्वयं के कर्मों से भगवान बुद्ध के एक परम भक्त की मृत्यु होने पर उसके पुत्र ने सोचा कि अंत्येष्ठी के बाद होने वाला मंत्र-पाठ किसी आम पंडित से न करवाकर, भगवान बुद्ध से ही कराऊं, ताकि उसके पिता को स्वर्ग मिलना सुनिश्चित रहे, यह चिन्तन करके उसने भगवान बुद्ध से निवेदन किया कि मेरे पिता की श्राद्ध क्रिया में होने वाले मंत्र पाठ आप करवायें, ताकि उनको स्वर्ग मिलना पूर्णत: निश्चित रहे। भगवान बुद्ध यह कथन सुनकर मुस्कराये एवं कहा कि तुम एक पत्तल के दोनो में पत्थर के टुकड़े व एक दूसरे दोने में ताल मखाना ले आओ। अपने पिता की भगवान बुद्ध के माध्यम से अच्छी गति सुनिश्चित जानकर, वह प्रसन्न मन से दोनों वस्तुएं ले आया, तब बुद्ध ने उसे कहा कि वह नदी किनारे जाकर इन दोनों को बहा दो एवं कुछ देर बताये हुए मंत्राचार करे, एवं मुझे उसका परिणाम बताओ। व्यक्ति ने वैसा ही किया एवं कुछ देर बाद आकर बोला कि पत्थर वाला दोना तो तुरन्त नदी में डूब गया, परन्तु मखाना वाला नहीं डूबा, तब बुद्ध ने उस व्यक्ति को सुझाव दिया कि अपने मंत्रवादी पण्डित से भी वहां जाकर मंत्र पढवायें, यदि पत्थर वाला दोना ऊपर जा जावे व मखाना वाला डूब जाये तो मुझे आकर बताना, कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने बताया कि वैसा कुछ नहीं हुआ, मखाना वाला दोना तो तैरता ही रहा एवं पत्थर वाला वापस ऊपर नहीं आया। तब महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जैसा भी घटिया या बढ़िया कार्य करता है, वैसा ही उसका कर्म बंधन हो जाता है, वैसे ही फल मृत्यु भावी जीवन में भी तार देते हैं, यानि डूबते नहीं हैं, जो व्यक्ति घटिया व फरेब का काम करता है, वो उस कंकर की तरह भारी हो जाता है, जो उसे भव सागर में डुबो देता है। अपने पिता की मृत्यु के बाद चाहे कितने ब्रह्म-जाप करो या मंत्र पाठ करावो उसका कोई असर नहीं होगा, उसने अपने जीवन में जैसा अच्छा या बुरा कर्म किया है, उसी अनुरूप उसके भावी जीवन की गति होगी। भगवान बुद्ध का यही सन्देश था कि मनुष्य को अपने जीवन में, यानि खुद के द्वारा हमेशा अच्छे व प्रिय काम करने चाहिये ताकि उसकी मृत्यु के बाद अच्छी गति हो एवं उसी से स्वर्ग मिलेगा एवं बुरे कर्मों से नर्क की गति होगी, उसमें अन्य कोई भी महात्मा, मंत्रवेत्रा या पण्डित सहयोगी नहीं बन सकता। – विजयराज सुराणा जैन नई दिल्ली

बेंगलोर में शिखरजी बचाओ में देखी गयी 0

बेंगलोर में शिखरजी बचाओ में देखी गयी

जिनशासन की नारियों की संगठित शक्ति की परिकाष्ठा बेंगलोर: श्री लब्धिसूरि जैन धार्मिक शिक्षक/शिक्षक उत्कर्ष ट्रस्ट द्वारा शिखरजी बचाओ अभियान के तहत आज श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर, चिकपेट से विराट रैली का आयोजन पंन्यास प्रवर श्री कल्परक्षितविजयजी म.सा. के वासक्षेप एवं मांगलिक के साथ ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोकभाई संघवी ने हरी झंडी बताई। सचिव देवकुमार के जैन ने श्रीफल (नारियल) फोड़कर सुरेन्द्र सी. शाह गुरूजी के मार्गदर्शन में रैली प्रस्थान हुई, प्रथम बार सिर्पâ नारीयों की झलक दिखाई दी। मरेंगे या मिटेंगे… शिखरजी लेकर रहेंगे…, आधी रोटी खाएंंगे… शिखरजी को पायेंगे… जैसे एकता का सुन्दर नजारा शिखरजी रक्षा का उद्देश्य हमारा… save शिखरजी यह है हमारा… आदि श्लोकों से गुंजायमान जोश और होश के साथ कदम टाउन हॉल की तरफ बढ़ते गये। ट्रस्ट अध्यक्ष अशोक जे. संघवी ने कहा २०-२० तीर्थकरों की पावन भूमि के लिए आपका समर्पण भाव ही रक्षा करेगा। टाउन हॉल के सामने धरने पर बैठी महिलाओं द्वारा बार- बार सूचना दी जा रही थी। सचिव देवकुमार के. जैन ने कहा करोड़ों जैन मुनि भगवंतों में २४ तीर्थंकर हुए। २४ में से बीस तीर्थंकरों की निर्माण स्थली सम्मेतशिखरजी को बचाने का हर नागरिक का कर्तव्य है। २७ किलोमिटर की पैदल यात्रा करते हैं, जिसे मुगल सम्राट अकबर बादशाह ने मालिकी हक जैनों को दिया था, तो झारखंड सरकार द्वारा पर्यटन के नाम व अन्य जाति के मंदिर निर्माण का निर्णय सरासर गलत है। आज पूरे भारतवर्ष में ही नहीं, न्यूयार्वâ, वैâनाडा से भी इसका विरोध हुआ है, अन्य स्थलों पर समय-समय पर रैलीयां आयोजित की गई, हमारा झारखंड सरकार से निवेदन है कि ऐसा प्रस्ताव पारित करें कि भविष्य में इस तीर्थ पर अधिग्रहण का दु:साहस कोई सरकार ना कर सके। कोर्डीनेटर गौतम सोलंकी जैन व सह सचिव मांगीलाल भगत जैन ने अपने विचार रखे। महिला वींग की पुष्पा जोगाणी ने कहा जिस तरह आज नारियल फोड़कर रैली का शुभारंभ किया गया, जरूरत पड़ी तो सब नारियां अपना सिर फोड़ने के लिए तैयार रहेंगी, जिनशासन के प्रति समर्पित रहेंगी। साध्वीवर्या के साथ हजारों नारियों ने इस रैली में भाग लिया, इस संबंध में राज्यपाल कार्यालय को एक ज्ञापन सौंपा गया, बेंगलोर में विराजित सभी गुरू भगवंतों के आशीर्वाद से रैली का सफल आयोजन हुआ, सभी आचार्यों ने एक प्रस्ताव पारित किया। जिसे सभी अधिकारियों को भेजी गयी। – देवकुमार के. जैन श्री ऊना तीर्थ तीर्थधिराज: श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, बादामीवर्ण, लगभग ७६ से. मी., श्वेताम्बर मन्दिर। तीर्थ स्थल: गुजरात प्रांत के जूनागढ़ जिले में ऊना गांव के मध्य में यह तीर्थ स्थित है, यहां से पालीताना १८० किमी., भावनगर २०० किमी., राजकोट २६५ किमी., वेरावल ८५ किमी. व महुआ ५६ किमी. दूर है। प्राचीनता: यह अत्यंत प्राचीन स्थल उन्नतपुर नाम से था, एक कहावत है ‘‘ऊना, पूना अने गढ़जूना ऐ त्रण जूना’’ मंदिर का निर्माण सम्प्रतिकालीन माना जाता है। चौदहवीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनयविजय जी ने तीर्थमाला में इस तीर्थ की व्याख्या की है। सत्रहवीं शताब्दी में अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री विजयहीर सूरीश्वरजी यहीं पर स्वर्ग सिधारे। प्राचीन काल में यहां सात सौ पौषधाशालाएं थी। विशिष्टता: यह स्थान सौराष्ट्र अजाहरा की पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ है, मंदिर के भोयरे में आदिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा दर्शनीय है, इसी के पास एक अन्य भोयरे में श्री अमीझरा पाश्र्वनाथ प्रभु की प्रतिमा में से कई बार अमृत वर्षा होती रहती है। कभी कभी एक वृद्ध सर्प प्रभु प्रतिमा पर छत्र करता हुआ नजर आता है। आचार्यश्री विजयहीर सूरीश्वरजी म. वि. सं. १६५२ भाद्र शुक्ला ११ को यहीं से स्वर्ग सिधारे, उनके स्मारक हेतु राजा अकबर ने १०० बीघा जमीन श्री संघ को भेंट की, वहीं पर अग्नि संस्कार हुआ, वह स्थान शाहीबाग के नाम से विख्यात है, यहां अनेकों चमत्कार होते रहते है, प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला ११ को ध्वजा चढ़ती है। अन्य मन्दिर: मंदिर के निकट ही पांच अन्य मंदिर तथा एक उपाश्रय है। कला व सौन्दर्य: यहां की प्राचीन प्रतिमाओं की कला दर्शनीय है। चौथे मंदिर के मूलनायक श्री पाश्र्वनाथ प्रभु की प्रति अति ही दर्शनीय है। सुविधाएं: ठहरने के लिये धर्मशाला है, जहां भोजनशाला के अतिरिक्त सारी सुविधाएं उपलब्ध है। सम्पर्क सूत्र: श्री अजाहरा पाश्र्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना पेढ़ी, वासा चौक, पोस्ट ऊना, जिला जूनागढ़, गुजरात, भारत- ३६२५६०  /   फोन:०२८७५-२२२२३३

सम्मेदशिखरजी की पवित्रता बनाए रखें- दिलीप सुराणा 0

सम्मेदशिखरजी की पवित्रता बनाए रखें- दिलीप सुराणा

सम्मेदशिखरजी की पवित्रता बनाए रखें बेंगलुरू: अत्तीबेल स्थित सुराणानगर में पाश्र्वसुशील धाम में लब्धिसमुदाय गच्छाधिपति आचार्य श्री अशोकरत्नसुरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री अमरसेनसूरीश्वरजी म.सा., मुनिश्री अजितसेन विजयजी की निश्रा में श्रीमती भंवरीबाई घेवरचन्दजी दिलीपजी-अर्चना, आनन्दजी-मोनीका सुराणा परिवार द्वारा सम्मेत शिखरजी की पवित्रता बनाए रखने की अपील की गई। आचार्य श्री अशोकरत्नसुरीश्वरजी म.सा. ने कहा झारखंड-गिरीडिह जिला में मधुबन जंगल में पवित्र तीर्थ शिखरजी श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ पहाड़ नहीं पूरा पर्वत पूजनीय है। पर्यटन के नाम पर वहां हॉटल-रेस्टोरेन्ट बनाने से गटर का गंदा पानी, कचरा पर्वत पर डालने से पवित्रता बरकरार नहीं रख पायेगें, साथ ही वहां दारू, मांस, मासिक धर्म (एम.सी.) वाली भी पर्यटन से पर्वत पर आने से पवित्रता नष्ट होगी, वन्य प्राणीयों पर शिकार जैसे हिंसक वारदात को भी अंजाम दिया जायेगा, अन्य जनजाति विशेष मंदिर से पवित्रता को खतरा है। अन्य गतिविधियों को मद्देनजर रखकर झारखंड सरकार पर्यटन स्थल योजना को तुरन्त रद्द करें, प्रसिद्ध समाजसेवी व ‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठक दिलीप सुराणा ने कहा कि. टुरिस्ट स्पॉट व विकास के नाम पर वृक्ष छेदन होने से पर्यावरण को नुकसान होने से बचाने के लिए पर्यटन स्थल योजना रद्द करें। बेंगलुरू में विराजित नौ आचार्यों, एक पंन्यास प्रवर ने योजना रद्द करने हेतु हस्ताक्षर युक्त पत्र झारखंड सरकार को भेजा, इस अवसर पर जयन्तीलाल सुराणा जैन, देवकुमार के. जैन सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। झारखंड मुख्यमंत्री का निर्देश रांची: झारखंड मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है के पर्यटक व श्रद्धालु पारसनाथ के दर्शन के लिए मधुबन से पैदल और डोली के माध्यम से ही जा सकते हैं, बाईक या अन्य वाहन से दर्शन के लिए ऊपर जाना प्रतिबंधित रहेगा। वृद्ध-दिव्यांग पर्यटकों या श्रद्धालुओं को अत्यंत विशेष परिस्थिति में ही जिला प्रशासन वाहन के उपयोग की अनुमति देगा, उन्होंने इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री झारखण्ड मंत्रालय में पारसनाथ पहाड़ी स्थित जल मंदिर के जीर्णोद्धार सहित अन्य पर्यटकीय विकास से संबंधित बैठक की समीक्षा कर रहे थे, मुख्यमंत्री ने कहा कि जनजातीय संस्कृति के लिए मरांगबुरू का मंदिर भी पर्यटन प्लान के तहत बनाया जाएगा, जैन धर्म एवं स्थानीय लोक सांस्कृतिक परम्पराओं यह अनुपम उदाहरण होगा। वन विभाग से संबंधित मामले तीन माह के अंदर वन विभाग सभी पहलुओं की जांच करते हुए अपनी समींक्षा दें, स्थानीय नागरिकों जिनकी जीविका पर्यटकों से जुड़ी हुई, उनका खास ध्यान रखा जाए। पारसनाथ पहाड़ी की नैसर्गिता और वन्य पशुओं सहित समस्त जैवविविधता सहित तमाम जल दााोतों का संरक्षण करते हुए पर्यटन की दृष्टि से विकास होगा। बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. सुनील कुमार वर्णवाल, भूमि राजस्व सचिव कमल किशोर सोन, पेयजल स्वच्छता सचिव आराधना पटनायक, प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय कुमार, पर्यटन सचिव मनीष रंजन, गिरिडीह के उपायुक्त मनोज कुमार एवं एसपी गिरिडीह सुरेन्द्र कुमार झा आदि उपस्थित थे। जैन तीर्थ सम्मेद शिखरजी की पवित्रता को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी तीर्थ क्षेत्र पर कोई अन्य निर्माण नहीं होगा प्रतिनिधिमंडल को दिया आश्वासन SAVE शिखरजी के नाम से जैन समाज ने चलाया था अभियान जैन समाज के श्रद्धा का प्रतीक २० तीर्थंकरों की निर्माण भूमि श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ का संपूर्ण परिसर जैन धर्म के धार्मिक तीर्थ के रूप में ही रहेगा, इसकी पवित्रता को किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचने दी जाएगी, ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया। ऑल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित गांधी, सांसद दिलीप गांधी के नेतृत्व में जैन समाज के प्रतिनिधि मंडल ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से मुलाकात कर, सम्पूर्ण भारत भर में चल रहे ‘शिखरजी बचाओ’ अभियान की जानकारी दी एवं समस्त जैन समाज के तीर्थ के प्रति संवेदनाएं एवं अपेक्षाओं से मुख्यमंत्री को अवगत कराया, इस तीर्थ की पवित्रता बनी रहे ऐसी अपेक्षा सरकार से व्यक्त की। ललित गांधी ने मुख्यमंत्री महोदय को आगे कहा कि इस तीर्थ पहाड़ पर जैन धर्मों के २० तीर्थंकरों का निर्वाण स्थल है और यह जैन धर्म के सभी संप्रदायों का सबसे महत्वपूर्ण श्रद्धा का केंद्र भी है यहां कोई अन्य निर्माण नहीं होने चाहिए जिससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। मुख्यमंत्री रघुवर दास जी ने स्पष्ट रूप से आश्वस्त किया कि तीर्थ पहाड़ी पर जैन धर्म के मंदिरों के अलावा अन्य कोई निर्माण नहीं होगा, श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ झारखंड के लिए भी गौरव का विषय है और इसे उसके मूल रूप में बनाए रखना हम सबका दायित्व भी है। चर्चा में ऑल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन के राष्ट्रीय महामंत्री संदीप भंडारी, संयुक्त मंत्री सौरभ भंडारी, दिगम्बर समाज के जे. के जैन, झारखंड सरकार के वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे, इस विषय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने हेतु मुख्यमंत्री महोदय ने जैन समाज के व्यापक प्रतिनिधि मंडल को आमंत्रण भी दिया, पत्रकार परिषद में जैन समाज के अग्रणी फेडरेशन के राष्ट्रीय महामंत्री संदीप भंडारी, डी.सी.सोलंकी, प्रवीण जैन, जिनेंद्र कावेडीया, विजय जिरावला, प्रशांत झवेरी आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे। मुख्यमंत्री महोदय की इस बैठक के पूर्व जैन समाज के प्रतिनिधि मंडल ने भारत सरकार के अल्पसंख्यांक कार्य राज्यमंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार तथा सांस्कृतिक एवं पर्यावरण राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा से संयुक्त बैठक की और जैन धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ सम्मेद शिखरजी एवं श्री शत्रुंजय गिरिराज पालीताना, दोनों तीर्थ क्षेत्रों को धार्मिक संरक्षित, धार्मिक पूजा स्थल के रूप में घोषित करने की मांग की। डॉ. महेश शर्मा ने इस विषय की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए उचित कार्यवाही करने का आश्वासन भी दिया। अल्पसंख्यक कार्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने जैन समाज की श्रद्धा एवं जैन समाज की भावनाओं से डॉ. महेश शर्मा को अवगत कराया। ऑल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित गांधी के अनुसार जैन धर्म की मान्यताओं का विश्लेषण करते हुए इन तीर्थों की पवित्रता रखना और इसे धार्मिक क्षेत्र के रूप में ही सुरक्षित रखना ही हमारी सबसे प्रथम सर्वोच्च प्राथमिकता है, इस चर्चा में राष्ट्रीय महामंत्री संदीप भंडारी और संयुक्त मंत्री सौरभ भंडारी भी सहभागी हुए। ऑल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित गांधी, अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार आदि ने संस्कृत मंत्री डॉक्टर महेश शर्मा को इस विषय का ज्ञापन सौंपा। ‘सेव शिखरजी अभियान’ के माध्यम से पूरे भारत की जैन समाज में तीर्थ रक्षा संबंधी विशेष जागरूकता निर्माण हुई और एक सफल अभियान के रूप में तीर्थ रक्षा संबंधी सरकार द्वारा अपेक्षित निर्णय प्राप्त करने में ‘ऑल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन’ के राष्ट्रीय महामंत्री संदीप भंडारी ने सफलता पाई, इसका श्रेय पूरे भारत भर के सभी जैन आचार्य, सेव शिखरजी अभियान को संचालित करने वाले आचार्य युगभुषणजी महाराज एवं भारत भर के जैन समाज ने इस अभियान में सहभागी कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया।

जिन शब्दों में बोझ कम हो वही प्रार्थना भगवान तक पहुंचती है 0

जिन शब्दों में बोझ कम हो वही प्रार्थना भगवान तक पहुंचती है

जिन शब्दों में बोझ कम हो वही प्रार्थना जिन शब्दों में बोझ कम हो वही प्रार्थना भगवान तक पहुंचती है, मांडू के छोटा दिगम्बर जैन मंदिर में पर्युषण पर्व मनाया जा रहा है, सुबह ६ बजे से समाज के सभी अनुयाई मंदिर में उपस्थित हो जाते हैं, समाज के सभी अनुयाई मंदिर में पूजा-अर्चना, विधानमंडल के साथ भगवान की अंगरचना कर रहे हैं। सुरेश गंगवाल जैन ने ‘जिनागम’ को बताया कि मूलाचार पढ़ने में एक गाथा आती है कि हर संसारी जीव चाहता है वह इच्छित वस्तु को प्राप्त करे, परंतु किसी भी संसारी प्राणी के पास सुख नहीं है। संसार में सबसे बड़ा सुख चक्रवर्ती के पास होता है, हम दूसरों को नहीं सुधार सकते परंतु स्वयं को तो बदल सकते हैं। सत्संग करने से जीवन में ज्ञान का समावेश होता है,भक्ति के बिना ईश्वर के दर्शन नहीं होते जो ईश्वर की भक्ति करता है उसे जीवन में कभी भी पीछे पलट कर नहीं देखना पड़ता। अच्छे कर्म करने से यश कीर्ति सुख समृद्धि बढ़ती है। मनुष्य का आचरण उसके स्वभाव में परिवर्तन लाता है। सत्संग में विचारों का होना जरूरी है, जिन शब्दों में बोझ कम होता है वही प्रार्थना भगवान तक पहुंचती है। भगवान के दरबार में निश्चल बनकर जाओ और मन में विश्वास और प्रायश्चित का भाव हो तो एक दिन भगवान जरूर मिलेंगे। मनुष्य ने कर्म को क्रूर बना दिया है। नित्य प्रतिक्रमण कर व्यक्तित्व को इतना सुंदर बना दिया कि लोगों को आपके अंदर भगवान के दर्शन हो। आटे में नमक चलता है परंतु नमक में आटा मिला रहे हो, इसलिए समाज में क्लेश बढ़ रहा है। खाने में अच्छा खाते हो तो फिर व्यवहार में भी बुराई की जगह अच्छाई ग्रहण करो। भक्ति संगीत कार्यक्रम में भजन गायक नितिन गंगवाल और रॉबिन गंगवाल ने ‘नाम है तेरा पालन हारा, कब तेरे दर्शन होंगे’, जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर वह कितना सुंदर होगा.. गुरु मेरी पूजा गुरु भगवान : जैसे भजनों की प्रस्तुति दी। पूजा-अर्चना में इंदिरा गंगवाल जैन, मुकेश गंगवाल जैन, सरला गंगवाल जैन, दिलीप गंगवाल जैन, रानी गंगवाल जैन, संजय सेठी जैन, अर्चना सेठी जैन, नितिन गंगवाल जैन, गुड्डी गंगवाल जैन, विधान गंगवाल जैन, झलक सेठी जैन आदि समाजजन मौजूद थे। अणुविभा द्वारा बालोदय एज्यूट्यूर का शुभारंभ राजसमंद: अणुव्रत विश्व भारती द्वारा संचालित बाल-संस्कार के विभिन्न प्रकल्पों के बीच ‘बालोदय एज्यूट्यूर’ नाम से नई प्रवृत्ति कर शुभारंभ किया गया, इसके अंतर्गत बाहर आने वाली स्कूलों को मेवाड़ भ्रमण से साथ-साथ बच्चों के आदर्श व्यक्तित्व निर्माण के लक्ष्यगत विभिन्न कार्यक्रमों को शामिल किया। अणुविभा के अध्यक्ष संजय जैन ने ‘जिनागम’ को बताया कि आने वाले वर्षों में ‘बालोदय एज्यूट्यूर’ के माध्यम से देश-भर की स्कूलों के लिए राजसमंद एक आकर्षण का केंद्र बन जाएगा। बालोदय एज्यूट्यूर के समन्वयक महेंद्र गुर्जर ने बताया कि यह कार्यक्रम अणुविभा द्वारा लंबे समय से आयोजित किए जा रहे बालोदय शिविरों से कुछ अलग है, इसमें बच्चों को बालोदय प्रवृतियों के साथ-साथ मेवाड़ के ऐतिहासिक दर्शनीय स्थलों के उद्देश्यपरक भ्रमण भी शामिल किया है, पहले बालोदय एज्यूट्यूर में शामिल सीकर की ज्ञानज्योति एकेडमी के ५६ बच्चों और शिक्षकों के समूह के अनुभवों को बताते हुए स्कूल के प्रबंधक सैयद आसिफ ने बताया कि ऐसे टूर की हमने कल्पना नहीं की थी। ‘चिल्ड्रन्स पीस पैलेस’ जैसी प्राकृतिक स्थली बच्चों को स्वर्गिय आनन्द की अनुभूति करा रही है, इसके साथ यहां की चित्र प्रदर्शनी, फिल्म शो, योगा व जीवनशैली का पाठ पढ़ाने वाली यहां की दिनचर्या बच्चों को न सिर्पâ हमेशा याद रहेगी वरन् उनके जीवन को संवारने में भी सहायक बनेगी। उल्लेखनीय है कि टूर के पहले दिन बच्चों ने बालोदय प्रवृत्तियों में भाग लिया और कुंभलगढ़ दुर्ग के ऐतिहासिक से दो-चार हुए, इस दिन उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी, फतेहसागर, प्रताप स्मारक आदि दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करते हुए लोककला मंडल में कठपुतलियों व लोकनृत्य से भी रूबरू हुए, तीसरे दिन हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप की शौर्य गाथाओं ने बच्चों को रोमांचित किया। राजसमंद की नौचौकी में वैज्ञानिकता और कलात्मकता का सम्मिश्रण देख बच्चे चकित रह गए। पूरे समूह का रात्रि प्रवास अणुविभा के अतिथिगृह में रहा। प्रात:कालीन योगा सत्र सायंकालीन सांस्कृतिक संध्या व बस यात्रा में रोचक गेम्स व एक्टिविटीज ने इस शैक्षिक भ्रमण को गुणवत्ता के नए आयाम प्रदान किए। रवानगी से पूर्व स्वूâल व अणुविभा में संवाद कार्यक्रम में अणुविभा के अध्यक्ष संजय जैन, उपाध्यक्ष सुरेश कावड़िया, गणेश कच्छारा एवं अशोक डूंगरवाल, विमल जैल व ज्ञानज्योति के शिक्षक और शिक्षिकाओं ने इस पर चिंतन किया कि भ्रमण कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने जो मूल्यपरक बातें जाना-सीखी हैं उन्हें वैâसे निरंतर प्रयासों द्वारा संपुष्ट किया जा सके।

आचार्य श्री विद्यासागर अहिंसक रोजगार प्रशिक्षण केंद्र 0

आचार्य श्री विद्यासागर अहिंसक रोजगार प्रशिक्षण केंद्र

आचार्य श्री विद्यासागर अहिंसक रोजगार प्रशिक्षण केंद्र विजयनगर, इंदौर,म.प्र.: देश में प्रचलित शिक्षा पद्धति के प्रभाव में हम अपना लगभग सब कुछ खो चुके हैं। भारत का नाम, भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषाएं, भारतीय जीवन मूल्य, भारतीय व्यवसाय कुछ भी तो हमारा नहीं रह गया, यहां तक कि वर्तमान शिक्षा पद्धति से शिक्षित हमारे बच्चे भी विदेशी जैसे हो गए हैं, अब यह बात एकदम उजागर हो चुकी है कि प्रचलित शिक्षा पद्धति सुसभ्य नागरिकों का नहीं, अपितु स्वच्छंद अपराधियों का निर्माण कर रही है, क्या हमें इस स्थिति के विरुद्ध आवाज नहीं उठानी चाहिए?मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव सन्निकट हैं, यही अवसर है जब जनप्रतिनिधि हमारी बात सुनने की तत्परता दिखाते हैं, क्यों न हम इस बार चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ-साथ अपनी भाषा को भी एक मुद्दा बनाएँ, हमारा अनुरोध है कि आगामी विधानसभा चुनाव का कोई उम्मीदवार चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल का हो, अपने पक्ष में आपका मत मांगने आपके दरवाजे पर आए तो उसके समक्ष अन्य मांगों के साथ-साथ दृढ़ता पूर्वक निम्न मांगें भी अवश्य रखें: देसी या विदेशी किसी भी भाषा में देश का नाम ‘भारत’ ही प्रचलन में लाया जाए। प्रदेश में प्रत्येक स्तर पर ‘हिंदी’ भाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाया जाए, बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के दबाव से मुक्त किया जाए। प्रदेश में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका की सभी कार्यवाहियां केवल ‘हिंदी’ व स्थानिय भाषा में संपन्न हों, अंग्रेजी भाषा पर जनता का धन अपव्यय ना किया जाए। निजभाषा में न्याय किसी भी व्यक्ति का अधिकार है ताकि भाषा के कारण उसके साथ कोई अन्याय न हो सके और सभी तथ्यों और सूचनाओं की जानकारी हो सके। व्यावसायिक उत्पादों पर, विज्ञापनों में समस्त जानकारियां ‘हिंदी’ व भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाए और ‘भारत’ में निर्मित दर्शाया जाए। भारतीय भाषी राज्य के लोगों को ग्राहक कानूनों के अंतर्गत उत्पाद का नाम व समस्त जानकारी मात्र ‘अंग्रेजी में देने का क्या औचित्य है, उत्पादों पर भारतीय भाषा में जानकारी न देना ग्राहक कानूनों के अंतर्गत प्राप्त हमारे कानूनी अधिकारों का हनन है। जानें: हमारा मत बहुत कीमती है, इसे मांगने वालों को यह स्पष्ट कर दीजिए कि जो दल हमारी मांगों को स्वीकार करेगा और सत्ता प्राप्ति के उपरांत प्रथम वर्ष में ही इन्हें क्रियान्वित करने का वचन देगा, हम उसे ही हम अपना किमती मत देंगे। यह भी उचित होगा कि हम अपने – अपने स्तर पर इन मांगों को उठाने के लिए अपने आसपास के मतदाताओं को जागरूक करें, जगह-जगह नुक्कड़ चर्चाएं करें, युवा मतदाताओं को इन मुद्दों की गंभीरता समझाएं, राजनीतिक दलों को ज्ञापन सौंपें ताकि होने वाले चुनाव में हमारी यह मांगें निर्णायक मुद्दा बन सके, मत भूलिए कि हमारा भविष्य हमारे विवेकपूर्ण मतदान पर निर्भर है और यह अवसर है अपने मत के सदुपयोग का, जाति या संप्रदाय के किसी भी विभाजन से ऊपर उठ कर अपने मत का सदुपयोग करें। सभी भारतीय भाषा प्रेमियों, न्याय प्रेमियों, जनाधिकारवादियों से अनुरोध है कि वे इन उचित माँगों को सक्रियता से आगे बढ़ाएँ, ताकि हम भारतीय बनें, हमारे स्वर्णिम भारत के हम रखवाले बनें, हम भारतीय-भारत हमारा| विजयलक्ष्मी जैन आचार्य श्री विद्यासागर अहिंसक रोजगार प्रशिक्षण केंद्र, विजयनगर, इंदौर, म.प्र. निर्भिकता के साथ हो विनम्रता धुलिया: साध्वी निर्वाणश्रीजी के सान्निध्य में खान्देश क्षेत्रीय श्रावक कार्यकत्र्ता सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रथम संबोधन सत्र में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए साध्वी निर्वाणश्रीजी ने कहा कि श्रावक कार्यकर्ता वह है जो संघीय आस्थाओं को मजबूत रखते हुए कार्यक्षेत्र में आगे आए। गुरू का निर्देश जीवन में सर्वोपरि रहे। कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता, निर्देश बड़ा होता है, यथानिर्दिष्ट कार्य करने की सजगता हो,श्रावक में निर्भीकता भी हो और विनम्रता भी। विनय को कभी चापलूसी समझने की भूल ना करें। साध्वीश्रीजी ने कहा कि गुरूदेव के चरणों में जहां भी खान्देश की अर्ज कर समग्रता से हो सबको स्थान दें। साध्वी डॉ. योगक्षेमप्रभाजी ने कहा के आजकल मोबाईल में हर व्यक्ति तीन शब्दों से परिचित है। update,forward,delete ये तीन शब्दों पर मनन करना है। संघीय कार्यों और योजनाओं के प्रति अपडेट रहें, अच्छी बातों को फॉरवर्ड करें, गलत मैसेज को तत्काल डिलिट कर दें, सबको अच्छाई की राह पर जोड़ने की कोशिश करें तोड़ने की नहीं। साध्वी लावण्यप्रभाजी, साध्वी कुंदनयशाजी व साध्वी मधुरप्रभाजी ने रोचक व प्रेरक कार्यक्रम की शानदार प्रस्तुति दी, कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण से साध्वीवृंद के द्वारा हुआ। खान्देश सभा के पूर्व अध्यक्ष व महासभा के संरक्षक श्रद्धानिष्ठ श्रावक नानकराम तनेजा ने समागत अतिथियों का स्वागत किया। महासभा के खान्देश के आंचलिक प्रभारी सुरजमल सूर्या, खान्देश के पूर्व अध्यक्ष सोहन गादिया, (मालेगाँव) खान्देश सभा के मंत्री इंद्रचंद कांकरिया आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। मंच संचालन तेयुप अध्यक्ष दिनेश सूर्या जैन व धन्यवाद ज्ञापन सभा के मंत्री विनोद घुड़ीवाल जैन ने किया। सेमिनार के दूसरे समीक्षा सत्र में समूह चर्चा बड़ी ही रोचक रही। भूसावल ग्रुप ने संघीय संस्थाएं और हमारा दायित्व तथा महिला ग्रुप ने ‘रास्ते की सेवा- भार या उपहार की शानदार प्रस्तुति दी। साध्वी निर्वाणश्रीजी एवं साध्वी डॉ. योगक्षमप्रभाजी ने समग्रता से सभी विषयों की सटीक प्रस्तुति दी।

शान्तिलाल जी सांड की सेवाओं से अभिभूत साधुमार्गी संघ द्वारा 0

शान्तिलाल जी सांड की सेवाओं से अभिभूत साधुमार्गी संघ द्वारा

‘मधुमय जीवन’ अभिनंदन ग्रंथ का हुआ विमोचन बैंगलुरू: शहर के प्रमुख उद्योगपति एवं समाजसेवी शान्तिलाल सांड का गत दिनों मध्यप्रदेश के रतलाम में आचार्य रामलालजी म.सा. के गतिमान चातुर्मास संयम साधना महोत्सव २०१८ के अंतर्गत आयोजित हुए अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के ५६ वें राष्ट्रीय अधिवेशन में सम्मान किया गया। प्रत्येक संघ समाज-संगठन-धर्म-सम्प्रदाय-पंथ के कार्यक्रमों एवं सेवा कार्यों में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले झूंझारू व्यक्तित्व के धनी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतिलाल सांड की सेवाओं से अभिभूत होकर अखिल भारतीय साधुमार्गी संघ द्वारा उनके जीवन यात्रा को जीवंत रखने के उद्देश्य से एक अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन किया गया। शान्तिलाल जी सांड को संघ के प्रथम शिखर सदस्य बनने का गौरव प्राप्त है, इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि गणपत चौधरी जीतो अपेक्स के अध्यक्ष, आनंद सुराणा निदेशक माइक्रो लेब्स लिमिटेड, जे.बी.जैन जीतो जेटीएफ अध्यक्ष, संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयचंदलाल डागा, महामंत्री धर्मेंद्र आंचलिया, राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष प्रभा देशलहरा, महामंत्री सुरेखा सांड, रतलाम संघ अध्यक्ष मदनलाल कटारिया, चातुर्मास संयोजक महेन्द्र गादिया सहित अन्य संघ प्रमुख उपस्थित थे। ‘मधुमय जीवन’ नामक इस अभिनंदन ग्रंथ में जैन समाज के सभी पंथों के प्रमुख आचार्यों, उपाध्यायों, संतों द्वारा प्रदत्त आशीर्वचन हैं वही केंद्रीय मंत्री तथा राजस्थान-कर्नाटक सरकार के मंत्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षाविदों, भारतवर्ष से प्रमुख श्रेष्ठीवयों आदि के शुभ संदेश के साथ उनके व्यक्तित्व-कृत्तित्व पर विस्तार से उल्लेख हैं। उदारमना सांड परिवार की गौरवशाली गाथा का गुणगान करता यह अभिनंदन ग्रंथ तत्कालीन पूर्वी भारत के मौलवी बाजार (वर्तमान में बांग्लादेश का एक जिला) में बिताये जीवन, जूट निर्यातक के रूप में देश-विदेशों में एक विशिष्ट पहचान, देश के बंटवारे के बाद के वहाँ के हालात, १९६७ में भारत-पाकिस्तान के द्वितीय युद्ध के समय मौलवी बाजार से देशनोक (भारत) वापसी, शिक्षा, सेवा कार्यों आदि का विस्तृत से उल्लेख हैं। सन् १९७५ में बेंगलुरू आकर कपडे के व्यवसाय से बैंगलुरू को कर्मभूमि बनाकर शांतिलाल सांड ने कार्य प्रारंभ किया। दूरदर्शी सांड ने २ वर्ष बाद ही सन् १९७७ में कपडा व्यवसाय से निवृत होकर डायमण्ड पाईप्स के नाम से पी.वी. सी. पाईप निर्माण का कार्य प्रारंभ किया और अदम्य साहस, कर्मशीलता, लगन की बदौलत अल्प समय में ही व्यवसाय ने विशेष आयाम स्थापित कर लिए। वर्तमान में सांड ग्रुप ऑफ कम्पनीज की पांच औद्योगिक इकाईया हैं जिनमें तीन बैंगलुरू में, एक रूडकी में व एक दमन में है। दान-सेवा-तप के तेज से प्रकाशमान चांद जैसे शीतल-शांत शांतिलाल सांड बैंगलुरू सहित देशभर की कई अनगिनत संस्थाओं, स्कूलों , कॉलेजों, हॉस्पिटल, वृद्धाश्रम, अनाथालय, गौशालओं (जैन व जैनत्तर) में अर्थ का विसर्जन कर पुण्य का कार्य कर रहे हैं, आपके दोनों पुत्र संजय व अजय सांड भी पिता के पथगामी बन सेवा कार्यों में अग्रणी रहते हुए सहभागी बन रहे हैं। समस्त जैन समाज की एकमात्र पत्रिका व जैन एकता के लिए अलख जगाती हिंदी मासिक पत्रिका ‘जिनागम’ के प्रारंभ से ही स्तंभ के रूप में जुड़ कर प्रोत्साहित किया है। समस्त भारतीय जैन समाज आपके सृजनात्मक, सुदीर्घ यशस्वी उज्जवल भविष्य की कामना करता हैं, आपके सदकार्यों की सुगंध सदैव सुभाषित होती रहे व आप स्वस्थ एवं दीर्घायु होकर मानवता की सच्ची सेवा करते रहें, ऐसी शुभकामना ‘जिनागम’ परिवार समस्त जैन तीर्थंकर देव से करता है। महावीर के आठ कल्याणकारी संदेश तीर्थंकर महावीर ने मानव-मात्र के लिए आठ कल्याणकारी सन्देशों का प्रतिपादन किया, जो इस प्रकार है : जो नहीं सुना, उसे सुनों- तीर्थंकर महावीर ने लोगों से कहा कि अपने अन्दर सुनने का अभ्यास उत्पन्न करो, सुनने से पाप-पुण्य की, धर्म-अधर्म की तथा सत्य-असत्य की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त होती है। वास्तविक और यथार्थ के दर्शन होते हैं तथा मनुष्य यथोचित ढंग से जीने की कला सीखता है, इसके द्वारा मन में बैठी अनेक प्रकार की भ्राँतियों का भी निवारण होता है। जो सुना है, उसे याद रखो- अपने अन्दर सुने हुए को याद रखने की प्रवृत्ति का विकास करो, कभी भी कोई बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से मत निकालो, जिस प्रकार छलनी जल से परिपूर्ण कर देने के बाद क्षण-भर में ही रिक्त हो जाती है, इसी प्रकार जीवन में प्रमुख तथ्यों को अपने कानों से श्रवण करके भूलो मत, यदि कोई मनुष्य सत्संग अथवा विद्या मन्दिर में सुना हुआ पाठ स्मरण नहीं रखेगा तो वह अपने जीवन में कभी भी उन्नति नहीं कर सकेगा। नए दोष-कर्म को रोको- नवीन दोषों से स्वयं को बचाते रहो, ध्यान रखो कि भ्रष्टाचार और पापाचार के भयंकर दलदल से स्वयं को दूर रखो। बुराई के फल से सदैव बचकर रहने वाला मनुष्य ही बुराई से अछुता रहता है और सदैव निर्भयता से जीवन यापन करता है। पुराने पाप कर्मों को तप से नष्ट करो- जो पाप कर्म अथवा गलतियाँ अतीत में हो चुकी हैं, उनसे छुटकारा पाने के लिए तप-साधना श्रेयस्कर है। तप-साधना पूर्व सन्चित पाप कर्मों को नष्ट करने के लिए सघन पश्चाताप करना एक सर्वश्रेष्ठ साधन है। ज्ञान की शिक्षा प्रदान करो- इस संसार में जो मनुष्य ज्ञान के प्रकाश से वंचित है, उन्हें ज्ञान की शिक्षा देना बहुत बड़ा कल्याणकारी कार्य है, उन्हें ज्ञान का प्रकाश देकर उनमें अज्ञान का निवारण करना पुनीत कर्म है। जिसका कोई नहीं, उसके बनों- इस संसार में जो अनाथ हैं, उन्हें सहारा दो, उनकी रक्षा करो और उन्हें इस बात का विश्वास दिलाओ कि वे बेसहारा नहीं हैं। ऐसे मनुष्यों को अन्न दो और वध्Eा दो, सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि हम किसी की सहायता करेंगे तो समय आने पर कोई हमारी सहायता करने वाला भी अवश्य होगा। स्मरण रखो कि यदि आज हमारी सहायता करने वाला कोई नहीं है तो हमने भी कभी किसी की सहायता न की होगी। ग्लानिरहित सेवाभाव अपनाओ- हमें सेवा-भाव ग्लानिरहित होकर करना चाहिए, यदि सेवक सेवा करने वाले व्यक्ति से घृणा करता है तो उसकी सेवा करने का कोई औचित्य नहीं है, नर-सेवा को नारायण सेवा समझना ही सच्ची सेवा भावना है। निष्पक्ष निर्णय करो- द्वन्द्व दु:ख और अशान्ति का मूल है, द्वन्द्व को शीघ्र-से-शीघ्र समाप्त कर देना चाहिए, द्वन्द्वात्मक स्थिति में निर्णय करने वाले को निष्पक्ष रहना चाहिए। पक्षपात सत्य को असत्य और असत्य को सत्य में बदल देता है इस कारण द्वन्द्व समाप्त होने के बजाय बढ़ता चला जाता है। तीर्थंकर महावीर के इन आठ संदेशों को अपने जीवन में उतारकर मनुष्य अपना ही नहीं, दूसरों का भी कल्याण कर सकता है।

भ. ऋषभनाथ की तरह अपने आचरण को भी ऊंचा बनायें-राष्ट्रपति 0

भ. ऋषभनाथ की तरह अपने आचरण को भी ऊंचा बनायें-राष्ट्रपति

ज्ञान, वैराग्य, करूणा से ही अहिंसा संभव ऋषभदेवपुरम् मांगीतुंगी में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी भारतगौरव गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के पावन सान्निध्य में आयोजित विश्वशांति अिंहसा सम्मेलन का उद्घाटन भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द जी ने किया, साथ में प्रथम महिला नागरिक श्रीमती सविता कोविन्द, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी. विद्यासागर राव जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री भारत सरकार डॉ. सुभाष भामरे, नासिक जिले के पालक मंत्री गिरीश महाजन, वाशिम के विधायक राजेन्द्र पाटणी आदि अनेक नेतागण पधारे। महोत्सव का शुभारंभ प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के मंगलाचरण एवं प्रस्तावना भाषण के साथ हुआ, तत्पश्चात् समारोह में पधारे माननीय राष्ट्रपति जी ने एवं पधारे अतिथिगणों ने कार्यक्रम का दीप प्रज्जवलन किया। माननीय राष्ट्रपति जी का स्वागत कमेटी के अध्यक्ष स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने भगवान ऋषभदेव की मूर्ति की प्रतिकृति प्रदान कर किया। प्रथम महिला नागरिक श्रीमति सविता कोविन्द का स्वागत कमेटी के कार्याध्यक्ष अनिल जैन दिल्ली एवं संघस्थ ब्रह्माचारिणी कु. बीना जैन ने किया। माननीय राज्यपाल जी का स्वागत कमेटी के अधिष्ठाता इंजी. सी. आर. पाटिल, मुख्यमंत्री जी का स्वागत कमेटी के महामंत्री संजय पापड़ीवाल पैठण एवं मंत्री विजय कुमार जैन जम्बूद्वीप ने, समारोह की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सुभाष भामरे का स्वागत कमेटी के कोषाध्यक्ष प्रमोद कुमार कासलीवाल औरंगाबाद ने किया। मूर्ति निर्माण के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए संस्थान के अध्यक्ष रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने बताया कि किस प्रकार से मूर्ति का निर्माण एवं इसका महोत्सव इतनी कुशलता के साथ सम्पन्न किया गया, शासन-प्रशासन के सहयोग की प्रशंसा करते हुए स्वामीजी ने बताया कि हमें बिजली, पानी, सुरक्षा, सड़के आदि व्यवस्थाएं प्रशासन के द्वारा बहुत कम समय में उपलब्ध कराई गई, जिससे महोत्सव को एक वर्ष तक निराबाध रूप से किया गया, विश्व में अहिंसा और शांति का वातारण बने: राष्ट्रपति अहिंसा का बहुत बड़ा व्यापक शब्दार्थ है। मन, वचन, काय किसी भी रूप में किसी भी जीवधारी को पीड़ा न पहुंचाना, प्राणी मात्र के प्रति पे्रम, सौहार्द, करूणा, सम्मान का भाव हो। विश्व शांति महासम्मेलन का मांगीतुंगी, नासिक में उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने व्यक्त किए। ज्ञान के बिना वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना करूणा का भाव जागृत नहीं होता ओर करूणा के बिना कोई अहिंसा का पालन नहीं कर सकता, कहते हुए राष्ट्रपति ने दीक्षा के लम्बे ६६ वर्ष तथा ८४ वर्ष की आयु पर बधाई देते हुए स्वस्थ मंगल की कामना की, उन्होंने कहा तीर्थंकरों ने धर्म को पूजा से निकालकर व्यवहार और आचरण में लाने का मार्ग दिखाया और समझाया कि मानव मात्र के प्रति करूणा भाव और संवेदनशील होना ही धर्म है, यहां इतनी ऊंची १०८ फुट प्रतिमा अपने ऊंचे पद से मापदण्ड तय किये हैं, हम-सब भी अहिंसा धर्म का पालन करते हुए अपने आचरण को भी ऊंचा बनाकर रखें, तभी यह कार्यक्रम सार्थक होगा। विश्वशांति एवं अिंहसा सम्मेलन की आयोजन समिति को ओर इससे जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूँ, उन्होंने एक ऐसे विषय को इस सम्मेलन के लिए केन्द्र में रखा, जो आज की दुनिया के लिए परम आपश्यक है, आप सब के प्रयास सफल हों, विश्व में हिंसा के स्थान पर अहिंसा का और अशांति के स्थान पर शांति का वातारण बने, ऐसी मेरी शुभकामना है। सर्वोच्च दिगम्बर जैन प्रतिमा-ग्रंथ का विमोचन माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा भगवान ऋषभदेव इंटरनेशनल अवार्ड तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति सुरेश जैन को प्रदान किया गया। मांगीतुंगी मूर्ति निर्माण एवं महोत्सव से संबंधित ग्रंथ ‘सर्वोच्च’ दिगम्बर जैन प्रतिमा’ नामक ग्रंथ का विमोचन राज्यपाल जी के द्वारा समिति के मंत्री जीवन प्रकाश जैन एवं विजय कुमार जैन ने करवाया, माननीय राज्यपाल महोदय ने इसकी प्रथम प्रति माननीय राष्ट्रपति जी को भेंट की। मूर्ति निर्माण के इतिहास की जानकारी एक फिल्म के द्वारा एल. ई. डी. स्क्रीन पर माननीय राष्ट्रपति जी को दिखाई गई,भगवान ऋषभदेव मूर्ति निर्माण की सम्प्रेरिका भारत गौरव गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने प्रवचन में बताया कि भगवान ऋषभदेव, जो कि भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता हैं, जिनके द्वारा सभी शिक्षाओं का प्रतिपादन किया गया है, आज सारे विश्व में शांति की अत्यन्त आवश्यकता है, जिसकी ज्योति जलाने के लिए माननीय राष्ट्रपति जी इस पावन धरती पर पधारे हैं, यहां से यह शांति का संदेश सारे देश और दुनिया में प्रसारित होगा, पूज्य माताजी ने कहा कि हमें यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता है कि हमारे भारत देश के राष्ट्रपति पूर्णरूपेण शाकाहारी हैं। डॉ. सुभाष जी भामरे ने कहा कि भगवान ऋषभदेव की मूर्ति भारतीय संस्कृति की धरोहर है। भ. ऋषभदेव के संदेश जन-जन तक पहुंचाएंगे: मुख्यमंत्री फडणवीस, महाराष्ट्र राज्य माननीय मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि मूर्ति निर्माण के प्राण प्रतिष्ठा में शासन-प्रशासन के द्वारा जो भी योजनाएं हमारे समक्ष लाई गई थी, उनमें जो भी कार्य शेष रह गया है, उनको हम शीघ्र ही सुचारू रूप से सम्पन्न करायेंगे एवं मूर्ति निर्माण कमेटी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भगवान ऋषभदेव एवं माताजी के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में सहयोगी बनेंगे। नासिक शासन-प्रशासन से जुड़े समस्त अधिकारियों ने अत्यन्त ही अल्प समय में हैलीपेैड, सुरक्षा एवं माननीय राष्ट्रपति जी के आगमन से जुड़ी सभी तैयारियों को सुचारू रूप से सम्पन्न किया गया, जिसके लिए मूर्ति निर्माण कमेटी, मांगीतुंगी आभारी है। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. जीवन प्रकाश जैन एवं विजय कुमार जैन (मंत्री) ने किया। अ.भा. दि. जैन महिला अधिवेशन: महोत्सव के द्वितीय दिन अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महिला संगठन का अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमति सुमन जैन-इंदौर, महामंत्री श्रीमती मनोरमा जैन, विकासपुरी दिल्ली, रेखा पतंग्या इंदौर आदि महिलाएं समिल्लित हुई, इसी अवसर पर अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद द्वारा घोषित आलेख लेखन प्रतियोगिता के पुरस्कारों का वितरण किया गया एवं मुख्यरूप से जयपुर से पधारे राष्ट्रीय महामंत्री उदयभान जैन एवं राजस्थान प्रान्त के अध्यक्ष दिलीप जैन, विमल बज आदि पधारे, अजय कुमार जैन, आरा ‘गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती पुरस्कार’ से सम्मानित तृतीय दिवस गणिनी श्री ज्ञानमति माताजी की महापूजा सांगली भक्तमण्डल के द्वारा विशेष हर्षोल्लास के साथ पं. दीपक उपाध्याय के नेतृत्व में सम्पन्न की गई एवं इस अवसर पर सांगली से लगभग ५०० लोग पधारे, संस्थान के सर्वोच्च पुरस्कार गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती पुरस्कार से सम्मेदशिखर दि. जैन बीसपंथी कोठी-मधुबन के अध्यक्ष एवं बिहार तीर्थंक्षेत्र कमेटी के पूर्व मानद मंत्री वर्तमान संरक्षक अजय कुमार जैन आरा, पटना को सम्मानित किया गया, जिसमें २५१००० रूपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र, शॉल, श्रीफल आदि प्रदान किया गया, यह पुरस्कार श्री वीरा फाउण्डेशन ट्रस्ट नई दिल्ली के सौजन्य से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के पदाधिकारियों द्वारा प्रदान किया गया। पूज्य माताजी के करकमलों में नवीन पिच्छी भेंट करने का सौभाग्य प्रदीप कुमार जैन खारी बावली-दिल्ली एवं कमण्डल भेंट करने का सौभाग्य सुनील कुमार मीनाक्षी जैन सर्राफ-मेरठ को प्राप्त हुआ, इस अवसर पर पूज्य माताजी का चरण प्रक्षाल करने का सौभाग्य संघपति अनिल कुमार जैन प्रीत विहार-दिल्ली, मनोरमा, महेशचंद जैन दिल्ली, सुभाषचंद जैन साहू-जम्बूद्वीप, नरेश बंसल-गुड़गांव, सुनील कुमार जैन सर्राफ मेरठ एवं प्रद्युम्न कुमार अमरचंद जैन सर्राफ टिकैत नगर वालों ने प्राप्त किया, इस अवसर पर ८५ लोगों ने पूज्य माताजी को शास्त्र समर्पण किया। महोत्सव में देश के अनेक प्रान्तों के साथ विशेषकर मुम्बई महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, गुजरात, हैदराबाद, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि प्रान्तों से हजारों भक्तगण पधारे, विशेष रूप से पूज्य माताजी की जन्मभूमि टिकैतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. से लगभग २०० लोगों को श्री जयकुमार मदनलाल जैन टिकैतनगर वालों ने नि:शुल्क ट्रेन के माध्यम से महोत्सव में लाने का पुण्य प्राप्त किया।

भगवान महावीर और उनके सिद्धान्त 0

भगवान महावीर और उनके सिद्धान्त

अहिंसा का अर्थ है हिंसा का परित्याग करना, किसी को दु:ख देने की भावना से दु:ख देना हिंसा है, द्रव्य और भाव इन भेदों से हिंसा दो प्रकार की होती है, किसी का गला घोंट देना या तलवार आदि शस्त्रों द्वारा किसी का प्राणान्त कर देना द्रव्य हिंसा है। द्रव्य-हिंसा का अधिक सम्बन्ध द्रव्य के साथ होने से, द्रव्य-हिंसा कहा जाता है, जिस हिंसा का सम्बन्ध भावना के साथ हो वह भाव-हिंसा कहलाती है। ह्रदय में दूसरों को मारने का विचार करना, झूठ, चोरी, व्यभिचार, क्रोध, मान, कपट और लोभ आदि दुर्गुणों का पैदा होना भाव हिंसा है। हिंसा चाहे द्रव्य की हो, चाहे भाव की हो, दोनों बुरी ही हैं और जीवन को पतोन्मुख बनाती हैं।भगवान महावीर ने संसार के प्राणियों को फरमाया कि अगर तुम शान्ति से जीना चाहते हो तो किसी के जीवन की हिंसा मत करो, किसी के जीवन से खिलवाड़ करना छोड़ दो, यदि हो सके तो किसी के दु:खी जीवन को शान्ति पहुँचाओ, यदि किसी को शान्ति पहुँचाने का सौभाग्य न प्राप्त कर सको तो कम से कम किसी को पीड़ा तो मत पहुँचाओ। हिंसा के वातावरण में जीवन का वृक्ष कभी फल-पूâल नहीं सकता, हिंसा एक ऐसी आग है जो जीवन की लहलहाती पुâलवाड़ी को पूंâक कर राख बना देती है। साधु और गृहस्थ दोनों अहिंसा की परिपालना कर सकते हैं, भगवान महावीर ने साधुओं से कहा कि मन-वचन-काया से अहिंसा का पालन करो। विचार से, भाषा से तथा कर्म से किसी को कष्ट मत पहुँचाओ, सब की शान्ति का और प्रेम का संदेश देते हुए अपने जीवन-लक्ष्य पर बढ़ते चलो। गृहस्था को भगवान ने फरमाया कि ‘स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो’। बेकसूर और निर्दोष जीवों को भूल करके भी मत सताओ, तुम गृहस्थ हो तुम्हारे ऊपर देश जाति की कुछ जिम्मेदारियां भी हैं, अत: देश जाति को हानि पहुँचाने वाले लोगों से सदा सावधान रहो, यदि कोई तुम्हारी बहन, बेटी की इज़्जत लूटने का दु:साहस करता है, देश एवं जाति को हानि पहुँचाता है, उसका यदि तुम मुकाबला करते हो, उसे दण्ड देते हो, उसे सही मार्ग पर लाने का प्रयास करते हो तो ऐसा करते हुए तुम्हारा अहिंसा का व्रत खण्डित नहीं होता, देश जाति के घातक और आततायी लोगों से भयभीत होकर भागना अहिंसा नहीं है, यह तो निरी कायरता है। भगवान महावीर के द्वारा इस अहिंसा सिद्धान्त को यदि एक उर्दू कवि की भाषा में कहें तो इस प्रकार कह सकते हैं- मत जुल्म करो मत जुल्म सहो, इसका ही नाम अहिंसा है बु़जदिल जो हैं, बेजान वो हैं, उन्हीं से बदनाम अहिंसा है अपरिग्रह – भगवान महावीर ने दूसरी बात अपरिग्रह की फरमाई। अपरिग्रह का अर्थ है – परिग्रह-आसक्ति का त्याग कर देना, मनुष्य कितना भी अधिक पूंजीपति क्यों न हो, परन्तु यदि वह अनासक्त भाव से रहता है, दीन-दुखियों की सहायता करता है, बे-सहारों का सहारा बनता है, गिरे हुए लोगों को धनादि की सहायता देकर अपने बराबर बनाने का प्रयत्न करता है। बेरोजगारों को रोजगार पर लगाता है, जनता की मकान और रोटी की समस्या को समाहित करने के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में भी संकोच नहीं करता तो वह अपरिग्रह भावना का परिपालक ही समझा जाता है। आज हमारे देश में ‘गरीबी हटाओ’ की भी टेढ़ी समस्या चल रही है परन्तु यदि देश के पूंजीपति भगवान महावीर के अपरिग्रहवाद को अपना लें और उसे अपने जीवन में उतार लें तो गरीबी हटाओ की समस्या एक पल में समाहित हो सकती है। अमीर और गरीब के मध्य में ईष्र्या, द्वेष, ऩफरत की जो खाई बढ़ती जा रही है वह सदा के लिए समाप्त हो सकती है। अपरिग्रहवाद एक ऐसी शक्ति है जो देश का आर्थिक संकट दूर कर जन-जीवन को स्वर्ग तुल्य बना सकता है।अनेकान्तवाद का अर्थ है- विचारों की सहिष्णुता। दूसरों के विचारों में जो सत्यांश है उसकी उपेक्षा न कर उसे सहर्ष अंगीकार करना, ‘सच्चा सो मेरा’ के परम पावन सिद्धान्त को अपनाते हुए ‘मैं सो सच्चा’ के संकीर्ण मन्तव्य को छोड़ देना, अनेकान्तवाद का वास्तविक स्वरूप होता है, आज हम जिस किसी समाज या परिवार को देखते हैं तो वहाँ आपसी मनमुटाव और लड़ाई-झगड़े ही देखते हैं, न पिता-पुत्र में बनती है, न गुरु-शिष्य में प्यार है और न ही बहू-सास, देवरानी-जेठानी और बहन-भाई में एक दूसरे के प्रति अनुराग दिखाई देता है, जब कारण पूछा जाता है तो घड़ा-घड़ाया एक ही उत्तर मिलता है कि प्रकृति नहीं मिलती, वस्तु-स्थिति भी यही है कि आज मनुष्य अपनी बात को ही महत्व देता है, दूसरी की बात सत्य और युक्ति-युक्त हो तथापि उसे मानने को कोइ तैयार नहीं, इसीलिए यत्र-तत्र-सर्वत्र मनोमालिन्य, क्लेश, लड़ाई-झगड़ा, आपसी वैर-विरोध ही सर उठाता दिखाई दे रहा है। ‘‘तेरी लस्सी मीठी भी खट्टी भी’’ मान कर चलने वाले लोगों ने देश और जाति का स्वास्थ्य बिगाड़ दिया है, ऐसे लोगों से अनेकान्तवाद कहता है कि उदार बनों, वैयक्तिक संकीर्णता को छोड़ो, जहाँ कहीं भी सत्यता है, उसे स्वीकार करो, जब तक संकीर्णता का परित्याग नहीं किया जाएगा, तब तक वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय भविष्य को समुज्ज्वल नहीं बनाया जा सकता। अनेकान्तवाद कहता है दुराग्रह वृत्ति का त्याग करो। हठवाद-एकान्तवाद एक प्रकार का विष है, यह विष शान्ति से मनुष्य को जीवित नहीं रहने देता, अत: ‘‘ऐसा ही है’’ यह न कह कर ‘‘ऐसा भी है’’ ऐसा कहने और मानने की आदत पैदा करो। उदाहरणार्थ, तीन लाईनें, यदि यह छोटी ही है, ‘बड़ी ही है’ ऐसा कहोगे तो बात नहीं बन सकती, यदि उसे ‘यह छोटी भी है’ या ‘यह बड़ी भी है’ ऐसा कहने लगेंगे तो कोई झंझट नहीं होगा। तीन इंच की लाईन के ऊपर यदि पांच इंच की लाईन खींच दी जाए तो वह तीन इंच की लाईन छोटी दिखाई देती है और उसके नीचे यदि दो इंच की लाईन खींच दी जाए तो वह बड़ी हो जाती है, अत: प्रत्येक वस्तु में उपस्थित सभी विशेषताओं को ध्यान में रखकर अपनी भाषा का प्रयोग करेंगे तो आपत्ति करने का किसी को कोई अवसर नहीं मिल सकता, वस्तु की सभी विशेषताओं को समझना और उसकी एक भी विशेषता की उपेक्षा न करना ही अनेकान्तवाद का व्यवहारिक रुप होता है। भगवान महावीर के अहिंसा आदि तीन स्वर्णिम सिद्धान्तों को लेकर बहुत कुछ लिखा जा सकता है किन्तु यदि संक्षेप में कहें तो इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि प्राणी मात्र में अपनी ही आत्मा के दर्शन करते हुए दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से सदा संकोच करना चाहिए। लोभ और लालच की दल-दल से दूर रहकर देश और जाति की उन्नति एवं प्रगति के लिए हमें हर समय तैयार रहना चाहिए तथा किसी भी म़जहब या सम्प्रदाय या परम्परा से द्वेष न रखकर उसमें उपस्थित सत्यांश को ग्रहण करने का कार्य पूर्णतया करना चाहिए, यही जैन धर्म की सबसे बड़ी प्रेरणा है, आज के समय व युग का यही सबसे बड़ा सन्देश है, जिसे जीवन में अपनाकर हम सब भगवान महावीर के चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर सकते हैं। -जिनागम

भगवान महावीर की शिक्षा और आज का युग 0

भगवान महावीर की शिक्षा और आज का युग

आज हम विनाश और विकास के मोड़ पर हैं, विज्ञान और अज्ञान साथसाथ चल रहे हैं, मनुष्य चंद्रमा पर पहुँच गया, भारत का उपग्रह आर्यभट्ट आकाश में घूम रहा है। रुस का अंतरिक्ष यान शुक्र-धरातल को स्पर्श करेगा लेकिन मानव का शांति के लिये आक्रोश आक्रंदन जारी है। मानव कल्याण की सर्वोच्च घोषणा करने वाले युग में, पीड़ित मानवता की वेदना समाप्त नहीं हुई। विषमता और निर्ममता का साम्राज्य व्याप्त है। मनुष्य की आत्मा खो गयी सी लगती है, चेतना घुट गयी सी लगती है। ‘जवाहर लाल नेहरु’ पुरस्कार विजेता दार्शनिक ‘आंद्रे मालरो’ के यह विचार ‘वर्तमान विश्व में भारत की स्थिति कई दृष्टि में अद्वितीय है। भारतीय वस्तुस्थिती को विश्व के लिये गंभीरता से ग्रहण करने के सिवा कोई दूसरा चारा ही नहीं है, विश्व की महान शक्तियों को भारत के प्रति इष्र्यालु नहीं, सहभागी बनना होगा, साथ ही भारत को उन उपायों को खोजना होगा, जो संतप्त और संकटग्रस्त मानवता को शक्ति समवन्य और समृद्धी का वरदान दे सके प्रश्न भी हमारे पास है उत्तर भी हमारे पास ही हैं, भगवान महावीर के पूर्व जो युग भारत में था उसमें वर्ण वर्चस्व प्रस्थापित पुरोहितों का, जन्म श्रेष्ठत्व माननेवाले हत्यारे राज्यकर्ताओं का और स्वर्गलोभ में हिंसाचार करने-कराने वाले ढोंगी धार्मिकों का प्रभाव बढ गया था। राजनैतिक अधिकार और सत्ताप्राप्ति के लिये चलने वाले अश्वमेघ यज्ञ से लेकर, सभ्य संस्कृति के नाम पर हत्या करने वाले, ‘नरमेघ’ यज्ञ तक हो रहे थे, भारत के यज्ञ केवल धार्मिक उपचार नहीं थे जीवन व्यवस्था के आधार थे लेकिन कोई भी आदर्श व्यवस्था सामान्य स्तर पर स्वार्थी लोगों से बिगड़ जाती है। परोपजीवियों की ‘स्वार्थ साधना’ का द्वार खुल जाता है। समाज का स्वार्थी वर्ग अपने श्रेष्ठत्व की श्रेणी कायम रखना चाहता है फिर नये-नये भ्रामक सिद्धांत प्रचलित हो जाते हैं। जन्म श्रेष्ठत्व सिद्धांत इसी स्वार्थी वर्ग की उपज है, इस सिद्धांत से समाज को आसानी से दबाया जा सकता है।श्रमण संस्कृति के प्रसारक हमेशा जीवन को गहरी अनुभूतियों से रहस्य की खोज कर, समाज का दिशा निर्देश करते रहे हैं। क्रांति, करुणा और कर्मनिष्ठा पर आधारित ये विचारधाराएँ भारत की विश्व को युगांतरकारी देन है। श्रम विभाजन जन्म से नहीं कर्म से सामाजिक व्यवस्था में श्रम विभाजन अनिवार्य था इसलिए अलग-अलग जतियों और वंशों के लोगों को चार श्रेणियों में विभाजित कर सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करने का प्रयत्न शुरु हुआ, परन्तु श्रेष्ठ योजना जब कार्याविन्त होती है तब समाज के स्वार्थी लोग उसे अपने हित में मोड़ लेने का प्रयास करते हैं यह श्रेणी विभाजन तक सीमित नहीं रहती- वह श्रमिकों का विभाजन बन जाती है, जिन गुणों व कर्म से व्यक्तित्व की सामाजिक प्रतिष्ठा थी उसका आधार कर्तव्य नहीं, जन्म माना गया और जन्म श्रेष्ठत्व के अहंकार से उच्च ब्राह्मण वर्ग सभी वर्गों को अपनी सेवा में रखने लगा- वह सर्वेसर्वा हो गया, उसने अपने पास ‘भूदेव’ का गौरव खड़ा किया, परमात्मा की प्राप्ति में उसकी सहमति आवश्यक हो गयी। ‘यज्ञ’ जो समाज धारण का साधन था, हिंसा का स्वादिष्ट आयोजन हो गया। ज्ञान की आराधना रुक गई और मात्र जन्म ही जीवन की कसौटी हो गयी, इस समय श्रमण संस्कृति के उद्बोधकों ने इस व्यवस्था को ललकारा, भगवान महावीर की वाणी ने सिंह गर्जना की- ‘कम्मुणा बंभणो होई, कम्मुणा होई खत्तिहो वईसो कम्मुणा होई, सुदो हवई कम्मुणा मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है, कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है। वैश्य भी कर्मों से और कर्म से शूद्र होता है, जीवन की कसोटी जन्म नहीं कर्म है। यही तो है पशु से प्रभु तक पहुँचने का मार्ग। जन्म श्रेष्ठत्व के वर्ण वर्चस्ववादी सिद्धान्त ने मनुष्य की मुक्ति को मुहर लगा दी थी, भगवान महावीर की यह घोषणा आज भी नितांत सार्थक है। भारत के संविधानकर्ता, बोधिसत्व डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना मुक्ति आंदोलन इन्हीं धारणाओं से किया- जन्म शूद्रत्व से, जिन्हें ज्ञान साधना की मनाही थी- वहीं अपने पुरुषार्थमयी पराक्रम से ज्ञान तपस्वी बन गया और उन्होंने श्रमण संस्कृति को स्वीकार किया। श्रमण संस्कृति सभी पीड़ित मानवता का आश्रय स्थल ही नहीं बल्कि सभी चेतनाओं का मुक्तिपथ है।‘‘जर्रा मरण वेरेण बुज्झमाणा पार्णिय धम्मो दियो पईठ्ठा य गई सरण मुत्ताम’’ हमारा जीवन एक अखंड महायात्रा है और महावीर उसे सार्थ दिशा देते हैं ‘वार्धक्य और मरण इस अतिशय आवेगमयी प्रवाह में नहाने वाले जीवों का धर्म ही एक द्वीप है, धर्म ही एक प्रतिष्ठा है, गति है’ कौन सा धर्म! वस्तुत: महावीर की वाणी किसी पंथ विशेष की आग्रही नहीं है, उनका धर्म तो सभी जीवों पर विचार करना है, जहाँ सभी प्रचलित पंथों का रुप विराट बन जाता है। धर्म ‘धम्म’ जैसे सुविधा के लिए हम पानी को अलग-अलग भाषा में अलग-अलग नाम से पुकारते हैं, जैसे हम पानी पीते हैं, अंग्रेज वॉटर पीते हैं, या कोई आब कहते हैं लेकिन जलतत्व में कोई अंतर नहीं आता, इसलिये महावीर वैज्ञानिक रुप से धर्म की व्याख्या करते हैं। विश्व के इतिहास में धर्मों के नाम पर जितना रक्तपात हुआ है उतनी हिंसा किसी और कारण से नहीं हुई। धर्म के नाम पर होने वाली हत्याएं जो पवित्र मान ली गई थी परन्तु अपने भीतर एक सत्ता की पीपासा लिये हुए थी, राजाओं ने, वरदारों ने, इन धर्मशुद्धों में पूरी शक्ति से सहभाग लिया और धर्म को राजनीति का शास्त्र बना लिया, इस माध्यम से वे अपनी सत्ता प्रस्थापित करना या सत्ता प्रतिष्ठित करना चाहते थे।भगवान महावीर सत्य की खोज में सत्ता का त्याग करते हैं और प्रकृति की विराट सत्ता में धर्म की खोज करते हैं। भगवान महावीर का विचार लौकिक दृष्टि से सर्वत्र पैâला हुआ नहीं दिखाई देता, उनके अनुयायियों की संख्या भी दूसरों की मात्रा में कम है इसका कारण यही है कि उनका दर्शन सत्ता की आकांक्षा पूर्ति नहीं करता, किसी के अधिकारों को दबाना नहीं चाहता और राजनीति में जब तक कोई किसी को अंकुश के नीचे नहीं रखता तब-तब सत्ता के उपभोग का आनंद प्राप्त नहीं हो सकता। मैं, मेरी आत्मा जिस स्वतंत्रता को पुरस्कृत करती है, जिस प्रतिष्ठा को स्वीकार करती है वह प्रतिष्ठा पाने का अधिकार दूसरे जीवों को भी है, मेरी स्वतंत्रता किसी की स्वतंत्रता का कारागार न बने यह देखना मेरा प्रथम कर्तव्य हो जाता है, इसलिये विश्व में कोई जीव पूर्ण स्वतंत्र नहीं, स्वतंत्रता का अस्तित्व नहीं है- परस्पर तंत्रता का नियम है। मनुष्य केवल अपने अंतर्जगत में पूर्ण रुप से स्वतंत्र हो सकता है। बाह्य जगत की स्वतंत्रता को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक सभी बंधन होंगे, इसलिये वार्धक्य और मरण के इस अति आवेगमयी प्रवाह में बहने वाले जीवों का धर्म ही एक द्वीप है।अपरिग्रह आज की प्रधान आवश्यकता- भारत जैसे विकासशील देश में उत्पादन वृद्धि अत्यंत आवश्यक है क्योंकि दरिद्रता से हमारा जीवन ध्वस्त सा हो गया है|जितना उत्पादन होता है अगर वही थोड़ा-थोड़ा हर जगह संग्रहीत होता है तो जीवनाश्यक वस्तुओं का अकाल नहीं रहेगा और जनता के कष्ट का कोई पारावार भी नहीं रहेगा अपनी आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का संग्रह सामायिक दु:खों का कारण बन जाता है। परिग्रही व्यक्ति ‘स्वान्त सुखाय’ के लिये- सर्वान्त सुखाय की बलि दे देता है, एक अर्थ में परिग्रही व्यक्ति परम स्वार्थी है यह परिग्रह केवल निजी जीवन में ही नहीं होता, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जीवन में भी उसका आतंक दिखायी देता है। संसार के शक्तिशाली राष्ट्र शस्त्रों का संग्रह करने लगे हैं प्राकृतिक वस्तुओं का परिग्रह कर अर्थव्यवस्था पर चोट पहुँचा रहे हैं, इन सभी कारणों से आज अंतरराष्ट्रीय तनाव पैदा हो गया है, इस पृथ्वी को बीसीयों बार नष्ट करने का शस्त्र सामथ्र्य आज मौजूद है। विश्व ने दो महायुद्धों की विभिषिका देखी है उसके परिणाम देखे हैं, अणुशास्त्रो से किया हुआ विनाश भी देखा है, यह सब परिग्रही प्रवृति का परिणाम है जबकि आज अपरिग्रह की नितांत आवश्यकता है। भारत के लोकजीवन में अतिवादी संगठन भी बाधाएँ उपस्थित करते रहे हैं, अपने अहंकारी आग्रह के आगे दुसरों की भावनाओं को कुचल देना, जहाँ तक अपने ही संगठन में मतभेद कर अपने सदस्यों की हत्या कर, खोपड़ियों का संग्रह करने में वे नहीं हिचकते थे।कहते हैं आल्बर्ट आईन्स्टीन से किसी ने पूछा कि तीसरे महायुद्ध के विषय में आपका क्या विचार है? आइन्स्टीन ने कहा ‘तीसरे महायुद्ध के संबंध में मैं यह कह सकता हूँ कि इस पृथ्वी पर चौथा महायुद्ध पत्थरों से होगा, हमने पाषाण युग से आरंभ किया था और आज की शस्त्र स्पर्धा पाषाण युग में अंत होगी। आज भगवान महावीर की अिंहसा, सत्य, अपरिग्रह-अचौर्य, अनेकान्त की जितनी आवश्यकता है उतनी संभवत: पहले कभी नहीं थी। भगवान महावीर की वाणी हमें दीप स्तंभ सी पथ प्रदर्शन करे, क्योंकि गत महायुद्धों में शरीर जलकर राख हो गये थे लेकिन अब युद्ध में आत्माएँ जल जाएगी- चेतनाएंँ झुलस जायेंगी, वैर से वैर का कभी अंत नहीं होता, महावीर की वाणी इस तप्त, संतप्त और अभिशप्त संसार पर प्रेम की अमृत वर्षा करे यही मनोकामना, ‘जिनागम’ परिवार की है।

महावीर प्रभु का जीवन और कथन 0

महावीर प्रभु का जीवन और कथन

महावीर प्रभु का जीवन मनुष्य स्वभाव में हो रही हिंसा, असत्य, राग इत्यादि आसुरी तत्वों पर विजय प्राप्त कर मनुष्य जीवन को सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि देवी गुणों से भरकर समाज का उत्थान करने वाला था। भगवान महावीर ने चरित्र निर्माण, सदाचरण और अहिंसा पर बल दिया था, उनके अमृत उपदेशों से भारत के ही नहीं अपितु सारे संसार के कोटि-कोटि लोगों को नया मार्ग तथा नया ज्ञान मिला। आज के वैज्ञानिक युग में जबकि मानवता संघर्ष और तनाव के बीच में से गुजर रही है उनके उपदेशों द्वारा ही राहत मिल सकती है। समाज में आज जो अशांति है, उसे दूर करने का एक मात्र उपाय महावीर प्रभु के जीवन और कथन के प्रचार करने का है|२४ तीर्थंकरों की परम्परा में पीछे लौटने पर हमारे सबसे अधिक निकट भगवान महावीर हैं। जैन संस्कृति का विश्वास है कि देव समूह भी देवलोक को छोड़कर उनके दर्शनों के लिए इस भूमि पर आये थे। भगवान महावीर ने कहा :- प्राणीयों पर तो क्या किसी जड़ पदार्थ पर भी क्रोध न करो, तृष्णा को सीमित रखो, अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह मत करो, सब प्राणीयों को अभयदान दो, दूसरों की वस्तुओं की ओर ललचाई दृष्टि से मत देखो, सत्य स्वयं भगवान हैं, उसकी आज्ञा में रहना ही मानवता है, क्रोध को क्षमा और शान्ति से जीतो, अभिमान को विनम्रता से जीतो, माया को निष्कपटता से जीतो, लोभ को संतोष से, अविद्या को विद्या से, अन्धेरे को प्रकाश से, काम को निष्काम भाव से, दुर्वचनों को सहनशीलता और समता से जीतो, उन्होंने यह भी कहा, मानव तेरा उत्थान और पतन तेरे अपने हाथ में है, किसी अज्ञात शक्ति के हाथ में नहीं, ये तेरे चुनाव पर निर्भर करता है कि तू कौन सा मार्ग चुनता है। समता का आचरण : उन्होंने यह भी कहा कि अपनी आजीविका अन्याय और अनीति द्वारा मत करो, सब प्राणी जीना चाहते हैं फिर भले ही वह कीटाणु क्यों न हों, मरना कोई नहीं चाहता, अत: स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो, सब प्राणीओं को अपने समान समझो, यदि तेरे साथ कोई छल कपट करे, तेरे पूछने पर झूठ बोले, तेरे साथ बेईमानी करे, तुझे मारे-पीटे, क्रोध करे, र्दुव्यवहार करे, जैसे तुझे उस व्यक्ति का व्यवहार अच्छा नहीं लगेगा वैसे ही यदि उन प्राणीओं के साथ तू ऐसा व्यवहार करेगा तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा। भगवान इन्सान कभी नहीं बनता बल्कि इन्सान ही भगवान बनता है, जब वह उच्चतम साधना के द्वारा कर्मों पर विजय पा लेता है तो वह जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता है, तभी वह आत्मा से परमात्मा बन जाता है। अनुशासन :- महावीर मनुष्य को पहली शिक्षा देते हैं अनुशासन में रहना, अनुशासन का अर्थ है- आज्ञा का पालना करना- अनुशासन शब्द में केवल ५ अक्षर है, किन्तु ये अपने आप में बड़ा महत्व छिपाए हुए है, संसारनीति, राजनीति और धर्मनीति सब में इसकी बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना कहीं भी काम नहीं चल सकता, जिस प्रकार सड़े हुए कानों वाली कुतिया हर स्थान से खदेड़ कर निकाल दी जाती है वैसे ही अविनीत एवं अनुशासन में न रहने वाले व्यक्ति भी हर स्थान से निकाल दिये जाते हैं, अत: अनुशासन में वही व्यक्ति रह सकता है जिसके ह्रदय ने श्रद्धा और विनय हो। श्रद्धा या विश्वास :- श्रद्धा ही जीवन की रीढ़ है, रीढ़ के बिना जिस तरह शरीर गति नहीं करता उसी प्रकार श्रद्धा के अभाव में जीवन भी गति नहीं कर सकता। श्रद्धा ही मनुष्य का सृजन करती है और वही उसे कल्याण के पथ पर अग्रसर करती है, कहने का अभिप्राय यही है कि यदि मनुष्य अपने जीवन में किसी भी प्रकार की सिद्धि प्राप्त करना चाहता है तो उसे सर्वप्रथम श्रद्धावान बनना चाहिए। विनय की महिमा :- महावीर ने विनय की महिमा अद्वितीय बताई है, धर्म ही मूल विनय है, जिस प्रकार मूल के कमजोर हो जाने या उखड़ जाने पर वृक्ष नहीं टिक सकता, उसी प्रकार विनय के दूषित होने पर धर्म नहीं रहता, विनय ही धर्म का प्राण है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विनय की अनिवार्य आवश्यकता होती है, विनय स्वयं एक तप है और श्रेष्ठ धर्म है। नारी जाति का उत्थान :- नारी समाज का एक प्रमुख अंग है। समाज निर्माण में उसका योगदान सर्वस्वीकार्य है, नारी जाति अर्थात मातृशक्ति के उत्थान के बिना समाज निर्माण का काम अपूर्ण ही रहेगा। समाज निर्माण की आधारशिला परिवार है एवं पारिवारिक जीवन की आधारशिला नारी है। भगवान महावीर ने नारी जाति के लिए मोक्ष के द्वार खोल दिए थे, सन्यास देकर उन्हें संघ में उच्च स्थान दिया। स्त्री पुरुष का भेद भगवान महावीर की दृष्टि में तनिक भी न था इसीलिए महावीर के संघ में श्रमणों की संख्या यदि १४००० थी तो श्रमणियों की संख्या ३६००० थी। श्रमणोपासकों की संख्या १ लाख ६९ हजार थी तो श्रमणोपासिकाओं की संख्या ३ लाख १८ हजार थी। आज आवश्यकता है श्रमणी वर्ग को प्रेरित करने वालों की और युगदर्शनी बनकर स्वयं आगे बढ़ने वाली साध्वीयों की, भगवान महावीर के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। हम सब जागृत हों यही ‘जिनागम’ परिवार की मनोभावना है।