महावीर निर्वाणोत्सव मंगलमय हो
जैन
जैन धर्मानुसार दीपावली का सम्बंध भगवान महावीर के निर्वाण से है। कार्तिक अमावस्या को भगवान का निर्वाण हुआ था, उस समय पावापुरी में देवों ने और राजाओं ने प्रकाश उत्सव किया था, आज उसी का अनुकरण दीप जलाकर किया जाता है, यही वीर-निर्वाण दिवस है। महावीर निर्वाण विधि: शुद्ध वस्त्रो पहनकर श्रीसंघ सहित मंगलगीत गाते हुए प्रात: ५ बजे जिनमंदिर पहुंचें। पुरुष प्रभु के दहिनी और तथा महिलाएं प्रभु के बार्इं ओर खड़े होकर द्वार का उद्घाटन करें, तत्पश्चात सभी मिलकर तीर्थंकर परमात्मा की आरती उतारें, फिर नैवेद्य, लड्डू, फल आदि चढ़ावें और सविधि देव वंदन करें।
पूजन विधि: पूजन करने वाले सज्जनों को स्नान शुद्धि कर शुद्ध वस्त्रो पहनना चाहिए। बाद में निम्न प्रकार से पूजा की तैयारी कर पूजा करनी चाहिए। शुभ मुहूर्त में नई बहियों, दफ्तरी, कलमें, दवातें आदि साफ किए हुए बाजोट (चौकी या पाटे) पर पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापना करनी चाहिए, इस पाट के दाहिनी और घृत का दीपक, बार्इं ओर धूप या अगरबत्ती रखनी चाहिए। पूजन करने वाले को तीन नवकार गिनकर कलाई में मौली (लच्छा) बांधना चाहि फिर नवकार पढ़ते हुए कलम और दवातों में मौली बांधनी चाहिए। नई बही के प्रथम पाने में सर्वप्रथम ॐ अर्हम नम: लिखना चाहिए, फिर एक से लेकर ९ लकीरों में एक श्री से प्रारम्भ कर क्रमश: ९ श्री लिखना चाहिए, इससे श्री का शिखर बन जाएगा, उसके नीचे रोली वुंâवुंâम का स्वास्तिक बनाएं
श्री पाश्र्वनाथाय नम:
श्री महावीराय नम: श्री सद्गुरुभ्यो नम:
श्री सरस्वत्यै नम: श्री लक्ष्मी दैव्यै नम:
श्री गौतम स्वामी जी जैसी लब्धि हो। श्री केसरियाजी जैसे भंडार भरपूर हो। श्री भरत चक्रवर्तीजी जैसी पदवी हो। श्री अभयकुमार जी जैसी बुद्धि हो। श्री कवयन्ना जी सेठ जैसा सौभाग्य हो। श्री बाहुबली जी जैसा बल प्राप्त हो। श्री धन्ना-शालिभद्र जैसी ऋद्धि हो। श्री श्रेयांसकुमार जी जैसी दानवृत्ति हो। श्री वीर संवत्…..विक्रम संवत…..शुभ मिति कार्तिक बदी ३० अमावस्या, वार….., दिनांक……,ईश्वरी सन्….शुभ मुहूर्त…………….लिखें। फिर स्वस्तिक पर नागरबेल का अखंड पान, सुपारी, लौंग, इलायचा रख दें। फिर चलती धारा बही के चारों ओर देकर वासक्षेप, अक्षत, पुप्ष, मिश्रित कुसुमांजलि हाथ में लेकर नीचे लिखा श्लोक और मंत्र इस प्रकार पढ़ें
मंगलम भगवान वीरो, मंगलम गौतम प्रभु|
मंगलम स्थूलभद्राद्या, जैन धर्मोस्तु मंगलम||
मंत्र
ॐ आर्यावर्ते अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिर्णाद्ध भरतक्षेत्रे मध्य खण्डे अमुक देशे (देश का नाम) अमुक राज्य (राज्य का नाम) अमुक नगरे (नगर का नाम) मम गृहे श्री शारदा देवी, लक्ष्मीदेवी, आगच्छ-आगच्छ तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा:।।
यह कहकर हाथ में ली हुई कुसुमांजलि चढ़ा देवें। फिर नीचे लिखी स्तुति पढ़ें: आचार्या: पंचाचार, वाचकां वाचनां वराम् ।।१।। साधव: सिद्धि साहाय्यं, वितन्वन्तु विवेकिनाम्। मंगलानां च सर्वेषां, आद्यं भवित मंगलम् ।।२।। अर्हमित्यक्षरं माया, बीजं च प्रणवाक्षरम् । एवं नाना स्वरूपं, च ध्येयं ध्यायंति योगिन: ।।३।। ह्रत्पद्मषोडशा, स्थापितं षोडशाक्षरम् । परमेष्ठि स्तुतेर्बीज, ध्यायेदक्षरदं मुदा ।।४।। मंत्राणामादिम मंत्रं, तंत्र विघ्नौद्य निग्रहे। ये स्मरंति सदैवैनं, ते भवंति जिन प्रभा ।।५।। नोट: उपरोक्त स्तुति बोलने के बाद नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलते हुए आठों द्रव्यों से पूजना करना चाहिए। आठों द्रवों के नाम इस प्रकार हैं:- (जल, चंदन, केशर, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत्, नैवेद्य और फल)
मंत्र
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘जलं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘चंदन’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘पुष्पं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘धूपं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘दीपं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘अक्षतं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘नैवेद्यं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरूपायै, लोकालोक प्रकाशिकायै, सवस्वतै, लक्ष्मीदेव्यै ‘‘फलं’’ समर्पयामि स्वाहा: ।।
- इसके पश्चात जितने भी पूजक मौजूद हों, सब खड़े होकर हाथ जोड़कर सरस्वती एवं लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।