भ. ऋषभदेवजी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा सिद्धांत की आवश्यकता

चिकलठाणा (महाराष्ट्र)

भ. ऋषभदेवजी द्वारा प्रतिपादित ‘‘अहिंसा’’ की वर्तमान को आवश्यकता है, आज विश्व में अत्याचार, हिंसा बढ रही है, जैन धर्म के प्रथम तिर्थंकर भ. ऋषभदेवजी ने ‘‘अहिंसा’’ सिद्धान्त का प्रचारप्रसार किया था, आज सत्य, शांति, अहिंसा की अधिक आवश्यकता है,ऐसे भावपूर्ण उद्गार भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी ने महाराष्ट्र के प्राचिन मांगी-तूंगी जी में राष्ट्रपति जी के आगमन पर विशेष समारोह में दिगंबर जैन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मलकुमारजी सेठी, एवं हैदराबाद के विजयकुमार पाटोदी और प्रतिमा निर्माण र्इंजीनीयर सि आर पाटिल अपनी धर्मपत्नी के साथ

सिद्धक्षेत्र मांगितुंगीजी में ऋषभदेव पुरम में ‘‘विश्वशांती अहिंसा सम्मेलन’’ में कहे, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने १०८ फिट ऊंची भ. ऋषभदेव जी की मुर्ती के दर्शन किये, महाराष्ट्र में सुखे की स्थिती व्याप्त है, उस पर चिंता व्यक्त की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने कहा कि प्रकृति से हमें छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिये। वृक्ष, जल, पहाड़, पर्वत, यह हमारी सम्पत्ती है और जीवन रक्षक है। ‘‘सम्यकदर्शन’’ ‘‘सम्यकज्ञान’’ और ‘‘सम्यकचारित्र’’ जैनधर्म के महान रत्न हैं, तीर्थंकरों ने अपने उपदेश एवम दिव्य वाणी द्वारा मानव समाज का पथ प्रदर्शन किया है।

प्रवचन माला

यह बोली है
यह बोली हर समस्या का समाधान ढूँढती है।
यह बोली हर बात का हल करती है।
यह बोली ही कभी-कभी बनती बात बिगाड़ देती है।
यह बोली ही कभी जंग छेड़ देती है।
यह बोली ही बड़ी-बड़ी गल्तियों को खोल देती है।
यह बोली ही है जो दर्द पर मल्हम लगा देती है।
यह बोली ही है जो मीठे दूध में जहर घोल देती है।
यह बोली ही है जो वर्षों से बन्द तालों को खोल देती है।
यह बोली ही है जो आदमी को आसमां में चढा देती है।
यह बोली ही है जो पल भर में नीचे गिरा देती है।
यह बोली ही है जो आदमी को धूल चटा देती है।
यह बोली ही है जो महाभारत रच देती है।

यह बोली ही है जो समाधान की बैठक में बुला लेती है। इसलिए सभी कुछ इस छोटी सी जबान की करामात है। जो आदमी को कभी नीचे तो कभी ऊपर उठा देती है, इसलिए हमें अपनी जबान पर लगाम रखनी चाहिये। जब भी बोलें, मुंह खोलें तो मधुर बोलना चाहिये। यह बोली ही है जो जिन्दगी को तोलती है। हमारे स्वभाव की एक-एक परत खोलती है। इसीलिये तो महापुरूष सोच कर बोली बोलती हैं। हर शब्द हर बात का पिटारा संभलकर खोलते हैं। यह बोली ही है जो हमारे रिश्तों को जोड़ती है। हमें मुस्कराकर मीठा बोलने की आदत डालनी चाहिये क्योंकि बोली ही जीवन में सुख शान्ति का अमृत घोलती है।

– महावीर प्रसाद अजमेरा, जोधपुर

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