श्रीमती कमलावंती जैन
स्वर्गीय श्रीमती कमलावंती जैन जी की दूसरी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि प्यार को निराकार से साकार होने का मन हुआ, तो इस धरती पर माँ का सृजन हुआ धर्मनिष्ठ स्वर्गीय धर्मप्रकाश जैन जी (अंबाला वालों) की धर्मपत्नी तथा ड्यूक फैशन्स इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन और जीतो के चीफ मैंटर कोमल कुमार जैन, नेवा गारमेंट्स प्रा.लि. के चेयरमैन निर्मल जैन, वीनस गारमेंट्स के अनिल जैन की माता वयोवृद्ध सुश्राविका स्व. श्रीमति कमलावंती जैन जी(२९.०५.२०१९) के दिन अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण कर प्रभु चरणों में विलीन हो गई थी।२९.०५.२०२१ को उनकी दूसरी पुण्यतिथि के अवसर में सभी परिवारजन एवं मित्रगणों ने उनको...
गुरु विजयानंद महाराज जी
युग प्रवर्तक गुरु श्री विजयानंद महाराज जी १२५वें (१८९६-२०२१) स्वर्गारोहण वर्ष पर विशेष ‘‘जीवन गाथा तुम्हें सुनाए, श्री गुरु आत्माराम कीआत्म रस को देने वालेविजयानंद महाराज की..’’ जिस भारत की भूमि पर देवतागण भी जन्म लेने को आतुर रहते हैं, उसी पुण्य भूमि पर समय-समय पर अनेकमहापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने निजी स्वार्थ व प्रलोभनों को समाज एवं मानव मात्र के कल्याण के लिएत्याग दिया। ऐसी ही एक कड़ी में भारतीय संस्कृति की श्रमण परंपरा के महान आचार्य श्रीमद विजयानंद सूरि जीमहाराज १९वीं शताब्दी के भारतीय सुधार के प्रणेता गुरुओं में गिने जाते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती व स्वामीरामकृष्ण परमहंस...
आचार्य ऋशभचन्द्रसूरि
मानवसेवा के मसीहा आचार्य श्री ऋशभचन्द्रसूरि को स्थानीय पुलिस प्रशासन ने पूरे सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई मंत्री श्री ओम सकलेचा एवं मंत्री राजवर्धनसिंह दत्तीगांव की विशेष उपस्थिति में राजगढ़ (धार) ०४ जून २०२१। श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा तीर्थ द्वारा वरिष्ठ कार्यदक्ष मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की पावनतम निश्रा में अपने गुरु को मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री चन्द्रयशविजयजी म.सा., मुनिराज श्री पुष्पेन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री निलेशचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री रुपेन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री वैराग्ययशविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जनकचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनभद्रविजयजी म.सा. एवं...
आचार्य देवेश श्री ऋषभचन्द्र सूरीश्वरजी का देवलोकगमन
आचार्य देवेश श्री ऋषभचन्द्र सूरीश्वरजी का देवलोकगमन भारत अपनी अध्यात्म प्रधान संस्कृति से विश्रुत था किन्तु आज इसने ‘जगद्गुरु’होने की पहचान खो दी है। खोयी हुई पहचान को पुन: प्राप्त करने एवं अध्यात्म के तेजस्वी स्वरूप को पाने के लिये अनेक संत-मनीषी अपनी साधना, अपने त्याग, अपने कार्यक्रमों से प्रयासरत हैं, ताकि जनता के मन में अध्यात्म एवं धर्म के प्रति आकर्षण रह सके। अध्यात्म ही एक ऐसा तत्व है, जिसको उज्जीवित और पुनर्प्रतिष्ठित कर ‘भारत’ अपने खोए गौरव को पुन: उपलब्ध कर सकता है, इस महनीय कार्य में लगे हैं ज्योतिष सम्राट के नाम से चर्चित मुनिप्रवर श्री ऋषभचन्द्र...
प्राचीन जैन मंदिर थे शिक्षा के केंद्र
विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिर्श्र्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु अर्थात विद्या अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है अतः सब विषयों को छोड़कर विद्या का अधिकारी बनिए, वास्तव में जहाँ विद्या का निवास होता है वहाँ कभी क्षय की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।मुझे हाल ही में तमिल भाषा का एक विडियो वाट्सएप में मिला, एक बहन बता रही थी...