Category: जनवरी-२०१९

मर्यादा, अनुशासन का बेजोड़ संगम तेरापंथ

मर्यादा और अनुशासन जब भी मर्यादा और अनुशासन का जिक्र होता है तो एक प्रबुद्धजीवियों के बीच एक अंतहीन चर्चा शुरू हो जाती है, सभी के नजरों में इसके मायने अलग-अलग हैं, यदि यही चर्चा धर्म संघ को लेकर हो तो चर्चा और भी ज्यादा संवेदनशील और गंभीर हो जाती है, किसी भी धर्म संघ में मर्यादा और अनुशासन का पालन सर्वोपरि माना गया है|जब बात इसकी चली है तो बताना चाहते हैं कि जैन श्वेताम्बर में तेरापंथ ऐसा धर्मसंघ है जिसमें मर्यादा और अनुशासन को सर्वोच्च मान्यता प्राप्त है और इसके साथ-साथ यह अपने आप में ऐसा पहला धर्मसंघ है जो मर्यादा महोत्सव मनाता है। विदित हो कि मर्यादा महोत्सव विश्व का विलक्षण पर्व है। संभवत किसी भी धर्मसंघ में मर्यादा का उत्सव मनाने की परम्परा नहीं है, तेरापंथ धर्म संघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु ने मौलिक मर्यादा बनाई उसी पर आज यह संघ टिका हुआ है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य के द्वारा बालोतरा की पावन धरा पर इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ था। मर्यादा श्रद्धा,समर्पण और अनुशासन का गुलदस्ता है, जीवन के विकास में मर्यादा का सर्वोपरि स्थान है। संगठन का मूल आचार मर्यादा है। एक आचार, एक विचार एवं एक आचार्य की त्रिवेणी का संगम है मर्यादा। मर्यादा से संघ परिवार संगठित रहता है, जिस संघ में, जिस घर में मर्यादा हो वहां सुख, शान्ति होती है, एक घर में विनय की नींव हो, अनुशासन की खिड़की हो, प्रेम की छत हो, संगठन का दरवाजा हो, उस घर में शांति ही शांति होती है। मैं मानता हूं कि संविधान, संघ, संस्था या राष्ट्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्राण तत्व होता है विधान। विधान या मर्यादा का अर्थ होता है अनुशासन। अनुशासित मर्यादित जीवन विकास के शिखरों को छूता है। तेरापंथ के सर्वोन्मुखी विकास की वजह अनुशासन और मर्यादा है। संघीय मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा की तरह संयमित जीवन की रक्षा करती है, तेरापंथ धर्म को जितना हमने समझा उसका मुख्य आधार यह है कि तेरापंथ शासन में आज्ञा का सर्वोच्च स्थान है। जैन धर्म भगवान महावीर से जुड़ा है, इनका एक संप्रदाय तेरापंथ धर्म भी है जो कि सबसे ज्यादा मर्यादित संगठन है। एक गुरु, एक विधान, इस विचार के आधार पर तेरापंथ कार्य करता है। देश में बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो नियमों के उल्लंघन से उपजी हैं। नियमों का पालन डंडे के जोर पर नहीं, हृदय परिवर्तन व समर्पण से हो सकता है। तेरापंथ समाज मर्यादाओं का निर्वाह करता है इसलिए हर साल मर्यादा महोत्सव मनाया जाता है। मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ का महत्वपूर्ण पर्व है। मर्यादा महोत्सव सारणा-वारणा का प्रतीक है। मर्यादा और अनुशासन की जो व्यवस्था आचार्य भिक्षु ने दी, आज वह तेरापंथ का प्राण है, उनके विराट, भव्य विशाल व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, साधु-साध्वियों एवं सभी श्रावकों का यह स्पष्ट विचार है कि आचार्य भिक्षु का श्रद्धाबल, आगम ज्ञान बल एवं समता सहिष्णुता बल बेजोड़ था, संघ कभी नहीं बदलता, संघपति बदलते रहते हैं, निष्ठा संघ के प्रति होनी चाहिए, उसके बाद संघपति के प्रति निष्ठा रखें। मर्यादा महोत्सव क्यों मनाया जाता है, इसका जवाब है यदि मर्यादा नहीं होगी तो साधु-श्रावक भटक जाएगा, मर्यादा महोत्सव से मर्यादाओं का निरंतर स्मरण होता रहेगा और उसकी अच्छी तरह पालना हो सकेगी, जिस तरह ओजोन परत के कारण पर्यावरण सुरक्षित है, ठीक उसी तरह मर्यादा के कारण ही जीवन सुरक्षित है। आचार्य की आज्ञा के अनुरूप साधु-साध्वियां व श्रावक-श्राविकाएं चलते हैं, गुटबाजी, दलबंदी से दूर रहते हैं, इतने बरसों बाद भी संघ अखण्ड इसीलिए है कि मर्यादाएं हैं, श्रद्धा, समर्पण, विवेक, संघ और संघपति के प्रति अटूट भावना रखने वाला ही असल मायने में तेरापंथी होता है, आज तेरापंथ जितना आगे है, उसके अतीत में कई संत-साध्वियों की मेहनत है। आचार्य भिक्षु की लकीरों पर चलते हुए आज तेरापंथ धर्मसंघ यहां तक पहुंचा है, अगर जीवन में मर्यादा नहीं हो तो सब बेकार है। मर्यादा सिर्फ शक्ति संपन्नता के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए होती है। मर्यादा पत्र सभी मनुष्यों का प्राण है, सर्वविदित है कि कोई भी काम होता है तो उसमें मर्यादा अपेक्षित होती है। तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक मौलिक मर्यादाएं बनाई गई, जिनमें अभी तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि मर्यादा के कारण ही तेरापंथ धर्मसंघ ने सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि देश-विदेशों तक अपनी पहचान बनाई है। तेरापंथ धर्म संघ का अनुशासन बेजोड़ है। एक गुरु के आदेशानुसार साधक सधे कदमों में लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। व्यवस्था से सुसज्जित इस धर्म संघ में आत्मा की पूजा प्रतिपल की जाती है। गलतियों का प्रायश्चित कर शुद्ध चेतना में निवास करना इस धर्म संघ की नीति है। तेरापंथ धर्म संघ के प्रथम प्रणेता आचार्य भिक्षु ने ऐसी मर्यादाओं का सूत्रपात किया, जो तेरापंथ धर्म संघ के कणकण को आलोकित कर रही है। आत्म साधकों का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, इस धर्म संघ की विचारधारा मानव मात्र के हित में प्रवाहित होती है, पूरे विश्व का पथ प्रदर्शक तेरापंथ धर्म संघ एक गुरु के इंगित पर वर्तमान समस्या को समाहित करने के लिए संकल्पबद्ध है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान जैसे सामाजिक अभियान समाज की दिशा और दशा को बदलने के लिए कटिबद्ध हैं, ज्ञान शालाओं एवं व्रत चेतना की संयोजना अच्छे राष्ट्र के निर्माण के ही उपक्रम हैं, अत: कहा जा सकता है कि तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादा और अनुशासन का बेजोड़ संगम है। तेरापंथ को और जानने तथ समझने का प्रयास करें तो मर्यादा महोत्सव पिछले १५१ वर्षों से उतरोत्तर बढ़ते उत्साह से मनाया जा रहा है, इसका शताब्दी समारोह बालोतरा में ही स. २०२१ (८ फरवरी १९६५) को आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में मनाया गया था। पिछला १५१वां महोत्सव किशनगढ़ (बिहार) में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ, १५२वां मर्यादा महोत्सव ३ फरवरी २०१७ को सिलीगुड़ी (बंगाल) में आयोजित हुआ। तेरांपथ धर्मसंघ के करीब ७५० साधु-साध्वियां व समणियां आदि भारत व विदेश के विभिन्न निर्धारित स्थानों पर चातुर्मास करते हैं जो कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है, जिन-जिन सिंघाड़ों को आचार्य प्रवर निर्देश देते हैं, वो सभी सिंघाड़े, चातुर्मास के बाद पैदल विहार करते हुये, आचार्य द्वारा पूर्व निर्धारित स्थान पर मर्यादा महोत्सव में शामिल होने हेतु पहुंच जाते हैं। चातुर्मास समाप्ति के करीब ८० दिन बाद यह समारोह होता है एवं सम्प्रदाय के नये-पुराने सभी साधु-साध्वियों की इसमें शामिल होने की गहरी तमन्ना रहती है। महोत्सव स्थान से दूरी यदि हजार कि.मी. या उससे भी कुछ अधिक होती है तो कुछ तेजी से पैदल चलते हुये, इसमें शामिल होने हेतु पहुंच ही जाते हैं, पिछले कुछ वर्षों से शामिल होने के वाले संत-सतियों की यह संख्या चार-पांच सौ से भी अधिक हुई है। श्रावक महिला-पुरूष सभी की इस धार्मिक उत्सव में शामिल होना अपना भाग्य मानते हैं, अत: अधिसंख्या में पहुंचने का प्रयास करते हैं किसी-किसी प्रमुख स्थानों पर तो श्रावकों की संख्या भी बीस-तीस हजार से ऊपर पहुंच जाती है, दस-पंद्रह हजार होना तो साधारण सी बात है। तेरापंथ सम्प्रदाय का यह सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख पर्व है। पिछले २५-३० वर्षों से एक दिन की बजाय तीन दिन का होता है। विभिन्न अन्य कार्यक्रमों के जुड़ने से कभी-कभी यह चार-पांच दिनों का हो जाता है, जिन विभिन्न पांच-सात स्थानों में धर्मसंघ के बुजुर्ग व रोगी साधु-साध्वियां स्थाई रूप से रहते हैं, उनकी सेवाओं हेतु सिघाड़ों की नियुक्ति बसंत पंचमी को ही कर दी जाती है, इस अवसर पर धर्मसंघ की प्रमुख संस्थाओं के मुख्य पदाधिकारी प्राय: अवश्य ही शामिल होते हैं एवं उनकी संस्थाओं की विचार विनियम हेतु बैठवेंâ भी आयोजित होती हैं, किन्हीं-किन्हीं संस्थाओं के द्विवार्षिक चुनाव भी इस अवसर पर सम्पन्न करवाये जाते हैं, सामूहिक रूप से सैकड़ों साधु-साध्वियों के एकसाथ-एकस्थान पर दर्शन सेवा करने का लाभ लेकर श्रावकगण काफी रोमांचित होते हैं। मुख्य कार्यक्रम सप्तमी को होता है, जिसमें आचार्य प्रवर स्वयं ही २-३ घण्टे प्रवचन करते हैं, उस दिन संतों व विशेषत: श्रावकों आदि सभी को नये दिशा-निर्देश व कार्यक्रम देने के साथ करणीय/अकरणीय कार्यों का विवेचन करते हुये उन्हें सामयिक बोध देते हैं, आदेश भी देते हैं, सभी लोग अपने गुरू के इन आदेशों पर विशेष ध्यान देते हैं एवं पालना करने का भरसक प्रयास भी करते हैं। मर्यादा महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, साधु-साधियों के अगले वर्ष चातुर्मास करने के स्थानों की घोषणा, इसे सुनने को सभी खूब लालयित रहते हैं एवं अपने अनुवूâल घोषणा होने पर, उस क्षेत्र के लोग जोर-जोर से जय कारा भी करते रहते हैं। मर्यादा महोत्सव के अवसर पर गायन हेतु आचार्य प्रवर स्वयं ही एक नई ढाल (गीत, कविता) की रचना करते हैं एवं गायक संतों के साथ लयबद्ध गायन कर, प्रवचन के मध्य ही सुनाते हैं, यह गीत काफी भावपूर्ण या कोई न कोई विशेष संदेश देने वाला होता है, अत: बीच-बीच में उसका विवेचन भी करते जाते हैं। स्थानीय संस्था उसे पहले ही छपवा लेती है, जो श्रोताओं के बीच वितरित किया जाता है। मर्यादा महोत्सव पर अधिक संख्या में साधु-साध्वियां एकत्रित होते हैं, अत: इसका लाभ उठाकर, आचार्य प्रवर अनेक आवश्यक विषयों पर गोष्ठियां करते हैं, उस पर साधु-साध्वी अपने-अपने विचार भी रखते हैं, बहस होती है, चिंतन मनन के बाद उस पर निर्णय लिया जाता है। साधु-साध्वियां भी इसमें शामिल होने को काफी लालयित होते हैं, क्योंकि उनको भी अपने साथी संत-सतियों से मिलने का भी दुर्लभ अवसर मिलता है। कभी-कभी तो वो ५-७ साल व उससे अधिक वर्षों के बाद ही मिल पाते हैं, इसके अतिरिक्त यह अधिक महत्वपूर्ण है कि सभी आने वाले संत-सतियों से आचार्य प्रवर स्वयं या साध्वी प्रमुखा उनके पिछले वर्षों के कार्यकलापों, गतिविधियों की जानकारी लेते हैं, किसी ने कोई गलती, नियमों की या अन्य किसी प्रकार की अवहेलना की होती है, तो उसका आवश्यक दण्ड परिमार्जन किया जाता है, अच्छे किये गये कार्यों की प्रशंसा व बधाई भी दी जाती है। तेरापंथ का यह महोत्सव काफी उद्देश्यों की पूर्ति वाला ध्येयपूर्ण होता है, यह काफी पहले निर्धारित स्थान पर सप्तमी को ही आयोजित होता है, जिस शहर में यह आयोजन होने वाला होता है, उसके स्थानीय निवासी काफी पहले से ही श्रमपूर्वक व्यवस्था करते हैं एवं होने वाले खर्च को भी स्थानीय समाज ही वहन करता है, आने वाले यात्रियों को कोई बोझ नहीं होता, सिवाय निवास व भोजन का शुल्क देना होता है, जो प्राय: रियायती दरों पर होता है, ज्यादातर ऐसे विशाल समारोह बड़े शहरों/ कस्बोें में ही आयोजित होते हैं, परंतु भावनाएं देखकर पड़िहारा (राजस्थान) व टोहाना (हरियाणा) जैसे छोटे स्थानों में भी आयोजित हुये है और सफल भी हुये हैं। इस तरह के आयोजन की हम अपने देश के गणतंत्र दिवस से तुलना कर तो सकते हैं, परंतु यह भारत में गणतंत्र की स्थापना का अतिभव्य कार्यक्रम होता है जबकि मर्यादा महोत्सव अनेकों प्रवृति मूलक व दिशा-निर्देश देने वाला कार्यक्रम होता है, इस तरह की विशाल व शोभाजनक कार्यक्रम, जैन धर्मसंघ तो क्या विश्व के किसी भी अन्य सम्प्रदाय में नहीं होता, जैसा तेरापंथ में आयोजित होता है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा होती है, सराहना मिलती है एवं तेरापंथी समाज गौरवान्वित होता है। – विजयराज सुराणा जैन करोड़ों की संपत्ति त्याग कर सन्यासी बनने जा रही हैं दो सगी बहनें विदेशी जीवन और चकाचौंध से ज्यादा दृष्टि और पूजा को सन्यासी जीवन अच्छा लगा, १३ मार्च के दिन दीक्षा लेकर पिता की करोड़ों की संपत्ति का त्याग कर दोनों बहनें जैन सन्यासी बन जाएगी।सूरत के टेक्सटाइल उद्योगपति की दो बेटी दृष्टि और पूजा दोनों सगी बहने हैं। दोनों ने स्वेच्छा से यह फैसला लिया है कि १३ मार्च के दिन दीक्षा लेकर पिता की करोड़ों की संपत्ति का त्याग कर संन्यासी बन जाएगी, उनके इस कदम को रोकने के लिए उनके परिवार वालों ने तमाम कोशिशें की लेकिन सब नाकाम रही। दोनों बहनों को ९ देशों का भ्रमण करवाया गया, सबसे महंगे क्रूज की सवारी भी करवाई गई, लेकिन बेटियों को वह सब भी अच्छा नहीं लगा।सूरत के एक मालवाडा परिवार की दोनों बेटियों को अब तक परिवार ने सारे सुख और सुविधा दिए हैं, लेकिन फिर भी परिवार द्वारा दिए गए सुख-साधन आकर्षित नहीं कर पाए, मार्च महीने में दो सगी बहनें एक साथ दीक्षा लेने जा रही हैं। दोनों बेटियों ने जब अपने मन की बात परिवार के सामने रखी और कहा कि वे लोग दीक्षा लेना चाहते हैं तब परिवार काफी आश्चर्यचकित हो गया था, जिसके बाद इतनी छोटी उम्र में दिक्षा लेने का फैसला करने वाली दोनोें बेटियों की परिक्षा लेने के लिए उन्हें ९ देशों का सफर करवाया गया, सबसे महंगे क्रूज में ट्रिप भी करवाई गई, लेकिन उनका फैसला अडिग रहा।विदेशी जीवन और चकाचौंध से ज्यादा दृष्टि और पूजा को सन्यासी जीवन अच्छा लगा, जिन दोनों बेटियों को परिवार के लोगों ने राजकुमारी की तरह बड़ा किया है वे बहुत कम वक्त में जैन भिक्षुक जीवन बिताएंगी, इस बारे में दोनों बेटियों की मां ने कहा कि दोनोें बेटियों को यह बताना जरुरी था कि जैन दीक्षा जीवन काफी कठिन है, भौतिक जीवन में सुख होता है, जिससे आने वाले वक्त में उन्हें यह न लगे कि उन्होेंने भौतिक जीवन देखा ही नहीं, इसलिए हमने उनको विदेश का सफर भी करवाया।हमें खुशी है कि हमारी बेटियां अपने फैसले पर टिकी रहीं, एक मां के लिए यह काफी मुश्किल वक्त होता है लेकिन बेटियां दिक्षा ले रही है उस बात का हमें गर्व है, आपको बता दें कि सूरत के इस परिवार को समाज के लोग काफी प्रतिष्ठित परिवार के तौर पर पहचानते हैं, सालों से टेक्सटाइल उद्योग के साथ जुड़े इस परिवार में किसी भी चीज की कमी नहीं है, परिवार ने १७ साल की बेटी दृष्टि और १४ साल की बेटी पूजा की एक भी इच्छा ऐसी नहीं होगी जो पूरी नहीं की होगी, फिलहाल वो एक साथ जैन दिक्षा लेने जा रही हैं। दिशा पर हमारे जीवन की दशा निर्भर करती है मुंबई : दिशा पर हमारे जीवन की दशा निर्भर करती है। चाहे घर हो, ऑफिस हो, कंपनी-कारखाना हो, बैठने की जगह हो या सोने की जगह या खाने-पीने की जगह, दिशा वास्तुशास्त्र के अनुकूल हो तो परिणाम सकारात्मक श्रीवद्र्धक होता है, इस वास्तुशिल्प को देश-विदेश के सारे शीर्ष लोग बखूबी मानते और हर तरह से उसका सम्मान करते हैं यह मानते हुए कि उनकी सफलता, समृद्धि व लोकप्रियता का आधारसत्य अधिकांशतया यही है।सृष्टिसृजक अदिब्रह्मा ने यों ही तो वास्तुशास्त्र एवं अंकशास्त्र की रचना नहीं की होगी। छोटे-बड़े सारे लोग सम्भवत: इस सत्य से थोड़े-बहुत वाकिफ हैं, इसकी आस्था का अनुपातिक लाभ अवश्य प्राप्त होता है, प्रकृति व परमेश्वर के पक्षधर वास्तुशास्त्र एवं अंकशास्त्र के एक विशेषज्ञ कोलकाता निवासी डॉ. सम्पत सेठी तकरीबन ३९ वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी अलहदा अहमियत साथ सक्रिय है। मूलतया वे राजस्थानी हैं। देश-दुनिया के बड़े हिमायती हैं। राष्ट्रसमर्पित उनका वास्तुदर्शन व अंकदर्शन, दोनों अब तक हजारों आमो-खास लोगों का लाभान्वित कर चुका है, गत ५ वर्षों से मुंबई महानगरों में उनका वास्तुशास्त्र गतिमान है, इन दिनों मुंबई उनका निवास स्थल बन गया है। काबिले गौर है  कि ६८ वसंतदर्शी सम्पत सेठी चिकित्सा पेशे से जुड़े डाक्टर नहीं हैं, उनके वास्तुशास्त्रीय योगदान हेतु उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि २०१४ में उड़ीसा सरकार के राज्यपाल मुरलीधर चंद्रकांत भंडारे ने प्रदान की थी, आपको दोहरी गुणवत्ता (अंकशास्त्रीय भी) के लिए सौ से अधिक बार पुरस्कृत किया जा चुका है और ८० से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. संपत सेठी गुरू सप्तमी १३ जनवरी को बेंगलुरू: श्री राजेन्द्रसूरी जैन ज्ञान मंदिर ट्रस्ट मामुलपेट के तत्वावधान में श्री सीमन्धर स्वामी राजेन्द्र सूरी जैन श्वेताम्बर मंदिर में श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की १९२वीं जन्म जयन्ति एवं ११२वीं स्वर्गारोहण तिथि दिनांक १३ जनवरी रविवार को मनाई जायेगी।श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर अक्कीपेट में विराजित पन्यास प्रवरश्री कल्परक्षित विजयजी म.सा. की निश्रा हेतु संघ के सचिव नेमीचन्द वेदमुथा, कोषाध्यक्ष पारसमल कांकरिया, ट्रस्टी देवकुमार के. जैन आदि ने विनती की, पन्यास प्रवर ने अनुकुलता अनुसार पधारने की स्वीकृति दी। २०वीं शताब्दी के महान ज्योतिधर, अभिधान राजेन्द्र कोष के रचयिता, क्रियोद्धारक, प्रकांड मनीषी युग पुरूष इस धरती पर यदा-कदा ही अवरित होते हैं, ऐसे युग पुरूष दादा गुरूदेव की जन्मतिथि और देहलोक लीला दोनों एक ही दिन है, इसे एक देवी संयोग कहा जाता है जो अपने आप में विशिष्ट है, आचार्यश्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. दादा गुरूदेव के नाम से जाने जाते हैं व श्रद्धालु इस पावन दिन को बड़ी धूमधाम से गुरू सप्तमी के रूप में मनाते हैं। संघ अध्यक्ष मांगीलाल दुर्गाणी के अनुसार बेंगलुरू में भव्य कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर चल रही है।१३ जनवरी को सीमन्धरस्वामी राजेन्द्रसूरी मंदिरजी से भव्य वरघोड़ा निकलेगा, जो राजमार्गो से गुजरता हुआ किल्लारी रोड गुरू राजेन्द्र भवन पहुंचेगा, वहां गुणानुवाद सभा, स्वामी वात्सल्य, आयंबिल तप, दोपहर में पूजन, शाम को महाआरती आदि कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। मूर्तिपूजक संघ गांवगुडा का सम्मेलन सम्पन्न मुम्बई : श्वेताम्बर जैन ताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ गांवगुडा का २१वां स्नेह सम्मेलन मानस मंदिर शहापुर जैन तीर्थ में आयोजित हुआ। संघ अध्यक्ष अर्जुन नानावटी, संरक्षक हस्तीमल पामेचा, चौथमल सिंघवी, उपाध्यक्ष मांगीलाल पामेचा, मंत्री अशोक पामेचा, कोषाध्यक्ष भेरूलाल सिंघवी, संगठन मंत्री प्रकाश पामेचा, शांतिलाल पामेचा, हस्ती पामेचा, फूलचन्द लोढ़ा, सुरेन्द्र सिंघवी, प्रकाश सिंघवी आदि के प्रयास से आयोजित सम्मेलन में आचार्य अभय शेखर सूरीश्वर महाराज ने कहा कि सम्मेलन के माध्यम से धर्म, साधना, आराधना को आगे बढ़ाना चाहिए। गाँव से आए उदयलाल पामेचा, कालूलाल सिंघवी, रूपलाल पामेचा, पूनमचन्द पामेचा का सम्मान किया गया। आरती पामेचा ने मंगलाचरण किया। पार्श्व मण्डल, नागेश्वर मण्डल, वर्धमान मंडल, रत्नाकर मंडल आदि का सहयोग रहा। सम्मेलन में ग्राम विकास पर चर्चा हुयी। होली सम्मेलन पर भी सहमति बनी। शांतिनाथ बहू मण्डल ने नाटिका प्रस्तुत की। तपस्वियों, विद्यार्थियों, सहयोगियोंने प्रकाश चम्पालाल सिंघवी, फूलचन्द किशनलाल लोढ़ा, प्रकाश पामेचा का सम्मान किया। सम्मेलन में ताराचन्द सिंघवी, अर्जुन पामेचा, कन्हैयालाल पामेचा, कीर्ति पामेचा, जीवन धोका, नरेंद्र सिंघवी, दलपत पामेचा, भरत पामेचा, भरत सिंघवी, सुंदर सिंघवी, चौथमल नानावटी, प्रकाश नानावटी, सुभाष सिंघवी, सुंदर सिंयाल, दिनेश पामेचा, महेंन्द्र मुकेश पामेचा, भेरू सोहन लाल पामेचा, लोकेश सिंयाल, मांगीलाल सिंयाल, रमेश सिंघवी, किशन सिंघवी, हस्ती सुरेश सिंघवी, सुरेश पामेचा, विनोद पामेचा, अर्जुन पामेचा, गणेश पामेचा, मनसुख पामेचा, अशोक पामेचा, लालचन्द सिंघवी, जेठमल पामेचा, अर्जुन लाल सिंघवी, खेमराज सिंघवी, मांगीलाल पामेचा, गेहरीलाल पामेचा, प्रवीण पामेचा, भीमराज लोढ़ा आदि की उपस्थिति रही। मानव सेवा ही परम कर्तव्य है जिनका जिनका सम्पूर्ण जीवन सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, ऐसे व्यक्तित्व के धनी है पदमचंद जैन। आपका जन्म ८ मार्च १९५१ में आपके पैतृक निवास स्थान हापुड़ में माँ पदमाबाई के कुक्षी से हुआ। स्वभाव में शांति, गंभीरता और सेवा भाव आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है, आप जब ७ वर्ष के थे तभी आपके पिताजी का देहांत हो गया पर अपनी व्यवहार कुशलता व वाकपटुता के चलते आपने शिक्षा भी प्राप्त की और पिताजी का कारोबार भी संभाला। आपने समाजसेवा व लोकसेवा में हमेशा अग्रणी भूमिका निभायी है। अनगिनत लोगों की तन-मन-धन सेवा की है, आपके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों को देश-विदेश में भी सराहा गया है।समाजसेवा के साथ आपका अपना भवन निर्माण व ज्वेलरी शोरूम का कारोबार है, आप राजनीति में केंद्रिय ग्रामीण विकास मंत्रालय के कपार्ट विभाग के सदस्य रहे, जहां एनजीओ (राजस्थान) की मॉनिटरिंग का कार्य करते हैं, आपकी संस्था इंटरनेशनल जैन एंड वैश्य फाउंडेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वैवाहिक रिश्ते बनाना, रोजगार, गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति, औषधालय, विधवा पेंशन आदि सेवाएं उपलब्ध कराना, जिसमें आपका योगदान अतुलनीय है, साथ ही महावीर इंटरनेशनल, जैन सोशल ग्रुप एवं भारतीय जैन मिलन के सदस्य हैं। आप ‘जीतो’ के एफ सी पी भी है। आप अपनी सेवाओं में राजनैतिक प्रशासनिक न्याय विभाग से संबंधित समस्याओं का निराकरण करते है। आपके द्वारा लगभग ८ हजार वैवाहिक रिश्ते करवाये जा चुके है आपको रिश्तो का बेताज बादशाह के रूप में बैंकांक, हॉगकांग, सिंगापुर दुबई एवं भारत में बहुत से स्थानों पर सम्मानित किया गया है आप केवल जैन समाज के ही रिश्ते करवाते है आपके पास लगभग ५० हजार से अधिक जैन लड़के- लड़कियों का डेटाबेस है।आप १९७६ से १९९६ तक आप कांग्रेस पार्टी से जुड़े इस दौरान आप कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे, आप अखिल भारतीय श्वेताम्बर खरतरगच्छ के महासंघ के उत्तर भारत के मंत्री रहे। आपके परिवार में पत्नी-नीरा जैन व २ पुत्री व तीन पुत्र हैं, आपकी सफलता के पीछे नीरा जी का बहुत बड़ा योगदान रहा, आप एक नहीं कई प्रतिभाओं के धनी है, आपने कई लेख व कविताएं ‘जैन एकता’ पर लिखी हैं। आपको उर्दू शायरी का भी बहुत ज्ञान है।‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि मैं ‘जैन एकता’ का परम समर्थक हूँ, जब हमारा एक णमोकार मंत्र है, हमारे प्रमुख आराधक भगवान महावीर हैं, जैन समाज सबसे शिक्षित व समृद्ध समाज है, सभी पंथों के आचार-विचार व पुजा आराधना विधि भिन्न-भिन्न जरूर है, पर सभी की मंजिल भगवान महावीर की आराधना ही है अत: हम सभी जैनों को एक ही मंच पर आना होगा जिससे जैन समाज का सम्पूर्ण विकास संभव हो सके।आप ‘जिनागम’ पत्रिका के प्रमुख पाठक हैं जिसके संदर्भ में आपका कहना है कि ‘जिनागम’ पत्रिका जैन समाज की सम्पूर्ण धाराओं को जोड़ती है, जिसमें जैन समाज के सम्पूर्ण समाचार रहते हैं। आज बिजय जी की मेहनत रंग ला रही है।आपका यह मानना है कि भले ही आज का युग अंग्रेजी का है जहां सारे कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं पर हमारी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा भी किसी से कम नहीं, अंग्रेजी के बदले ‘हिंदी’ का ही उपयोग करना चाहिए, तभी देश का सम्पूर्ण विकास संभव है। – पदमचंद जैन, जैसलमेर निवासी-जयपुर प्रवासी व्यावहारिक जीवन में कट्टरता अनुचित है अभी हाल ही में हमने ३१ दिसम्बर को रात्री बारह बजे नये वर्ष का स्वागत किया। वास्तव में समुचे विश्व में खिश्चन समाज फैला होने से ३१ दिसम्बर समारोह मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में ३१ दिसम्बर का कोई महत्व नहीं है, किंतू विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ हिंदू, मुस्लीम, जैन, सिख, इसाई, बौद्ध आदि अनेक धर्म संप्रदाय, पंथ एक साथ रहते हैं और एक दूसरे के सुख और दु:ख में एक साथ भी खड़े मिलते है।हम यह कहेंगे की हमें नाताळ, गणेशोत्सव, इद से क्या लेना देना तो आप जिस गांव में रहते हो या जिस परिसर में रहते हैं वहाँ आपका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। रात्री में बारह बजे के बाद आपको हार्ट आदि शिकायत होती है, तो पड़ोसी ही कार लेकर दौडते हैं, कई मुसलमान भाई समय पर दौड़ कर आते हैं, गांव में यह संबंध देवता जैसे होते हैं।जैन समाज में चौबीस तिर्थंकर के अलावा अन्य भगवान की मान्यता नहीं है। गणपती-हनुमानजी को भी जैन शास्त्रो में स्थान नहीं हैं, किन्तु व्यावहारिक जीवन में जहाँ हम रहते हैं उस अनुसार चलना पड़ता है और जैन समाज के लोग इसे अच्छी तरह निभाते हैं। १९९१ में गणेशोत्सव के समय चिकलठाणा में जो सजावट तथा डेकोरेशन हुआ था, उसकी समिक्षा के लिये पत्रकार के नाते मेरी नियुक्ति की गई थी, मैंने अभ्यासपूर्ण तरीके सेसमिक्षा की थी और महाराष्ट्र पुलिस विभाग द्वारा मुझे प्रशंसा पत्र दिया गया था, गांव में रहते हुए यह सब करना पसंद है। छोटे गांव में सबसे मिल कर रहना पड़ता है, सबसे स्नेह रखना पड़ता है और गांव में तीन चार परिवार रहने के बावजूद भी आपका प्रभाव रहता है, यह जैन समाज की विशेषता है।राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता है: ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपनाये त्यौहार नहीं, है अपनी ये तो रीत नही, है अपना व्यवहार नहीं राष्ट्रकवि के ये अपने विचार हैं, किन्तु प्रतिदिन जीवन में कट्टरता को ढीला करके गांव में समाज में सबके साथ मिलकर चलना, इस पर गंभिरता से विचार करने की आवश्यकता है। गांव में पौला त्यौहार (बैलों का त्यौहार) बड़े धूम धाम से मनाया जाता है, गांव में जैन भाईयों के पास भी खेती होती है। खेती पर जीवन जीते हैं। पौला त्यौहार के दिन बैलों की पुजा करनी पड़ती है, मीट्टी के बैलों की भी पुजा करनी पड़ती है, यह गांव के जीवन का हिस्सा है। – अ‍ेम.सी. जैन एक बार फिर उम्मीदों पर खरा उतरा नाइस इंश्योरेंस अशोक डागलिया, सुरेश डागलिया, मेघराज पालरेचा, मांगीलाल डागलिया एवंकुश डागलिया, चिराग डागलिया व गणपत डागलिया को धन्यवाद का पत्र देते हुए धनलक्ष्मी ज्वेलर्स को मिला चोरी क्लेम का भुगतान नाइस इंश्योरेंस ने करवाया ४,१६,६१२ रुपये का क्लेम पास मुंबई: एक बार फिर से नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया, लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे हैं। मुंबई के धनलक्ष्मी ज्वेलर्स के कर्मचारी ईश्वरलाल पांडिया १४३.८७० ग्राम सोने के आभूषण एवं नकदी से भरा बैग लेकर धनजी स्ट्रीट से गोरेगांव, अंधेरी और मालाड में अन्य ज्वेलरों को अपना सैंपल माल दिखाने के लिए गए थे।शाम को ७.१५ बजे ऑफिस लौटते समय मालाड ब्रिज पर किसी ने उनका ज्वेलरी और नगदी से भरा बैग काट दिया और उसमें रखा सारा आभूषण और नगदी चोरी हो गया, ईश्वरलाल पांडिया इस वारदात से काफी सहम और डर गए, आनन-फानन में उन्होंने तुरंत अपने मालिक कुश मांगीलाल जैन को फोनकर पर पूरी घटना बताई और एफ आईआर दर्ज करवाई। एफ आईआर की कॉपी उन्होंने नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया को देकर क्लेम दर्ज करवाया। सौभाग्यवश उन्होंने नाइस इंश्योरेंस द्वारा न्यू इंडिया एश्योरेंस की ज्वेलर्स ब्लॉक पॉलिसी ली थी। नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क ने क्लेम संबंधी सभी कागजात जमाकर महज दो महीनों में क्लेम रुपये ४,१६,६१२/- रुपये की ७५ प्रतिशत राशि ३,१२,४५९/- रुपये तुरंत दिलवाई और बाकी २५ प्रतिशत १,०४,१५३/- रुपये पुलिस अंतिम रिपोर्ट आने पर दी जाएगी। कुश जैन के पिता मांगीलाल जैन ने ‘जिनागम’ को बताया कि हमे पूरा भरोसा था कि नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क हमें क्लेम दिलवाएगा, हम ३५ साल से इनसे जुड़े हुए हैं और हमारे मेडीक्लेम, एलआईसी एवं अन्य इंश्योरेंस के पहले भी दर्ज किये गए क्लेम को गणपत डागलिया एवं चिराग डागलिया ने संतुष्ट पूर्वक पास करवाया है। ऐसे प्रोफेशनल कंपनी से बीमा करवाकर हम हमेशा से चैन की नींद सो सकते हैं, इसलिए इनके द्वारा दी गई एक्सपर्ट सलाह को हमने हमेशा अमल किया और उसका हमें फायदा हुआ। ज्वेलरी के बढ़ते भाव के कारण कुछ सालों से ज्वेलरी चोरियां काफी बढ़ रही हैं और इसका एक मात्र इलाज बीमा करवाएं ताकि आप किसी अनहोनी से मुकाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहें, ‘जिनागम’ परिवार नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क के कार्यों की ह्रदय से सराहना करता है। जिंदगी का मिजाज बदलने वाले मेवाड़ पुत्र गुणवंत खिरोदिया व्यवसायी व समाजसेवी राजसमंद निवासी-मुंबई प्रवासी कुछ लोग जिंदगी के हिसाब से चलते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जिंदगी को अपने हिसाब से चलाते हैं, दुनिया उन्हीं को सलाम करती है। अपनी हिम्मत, मेहनत व व्यक्तित्व के बल पर समाज में विशेष पहचान बनाने वाले युवा समाजसेवी गुणवंत खिरोदिया किसी पहचान के मोहताज नहीं है, जिनका जीवन दुसरों के लिए मिसाल है वे आज सफल हैं, सबल हैं और सक्षम भी…राजस्थान के राजसमंद जिले स्थित गिलूंड कस्बे में गुणवंत जी का जन्म हुआ, नाथद्वारा से स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात बड़े भाई सुरेश खिरोदिया का हाथ बंटाने के लिए कपड़े के व्यवसाय से जुड़ गए। गुणवंत खिरोदिया अपने पिता सोहनलालजी खिरोदिया की मृत्यु से विचलित तो थे, लेकिन उनके दिए संस्कारों को सहेजकर उन्होंने खुद के भीतर झांका, तो मन ही मन उन्हें अपने भीतर जिंदगी को जीत लेने का ख्वाब आकार लेता दिखने लगा, दरअसल जिंदगी उन्हें अपने गांव में कपड़ा व्यापारी बनाना चाहती थी, लेकिन गुणवंत खिरोदिया ने जिंदगी से कहा कि चलो कहीं और चलते हैं, कुछ और करते हैं, तो जिंदगी भी उनके साथ चलने को तैयार हो ली, तो बस यहीं से गुणवंत खिरोदिया ने अपने मन को मजबूत किया और पिता के शुरू किए व्यवसाय को भाई सुरेश खिरोदिया को सौंप कर अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए वे सपनों के शहर मुंबई पहुंच गए और अपना बाजार की फ्रेंचाइजी लेने के साथ ही सफलता के रास्ते पर उन्होंने जो तेजी पकड़ी, वह कईयों के लिए सफलता की मिसाल बन गई। कल्याण, पनवेल और ऐरोली में उन्होंने अपने स्टोर शुरू किए, लेकिन गुणवंत खिरोदिया उन इंसानों में नहीं जो सफलता से संतुष्ट हो जाएं, वे दूसरों के सपनों को पूरा करना चाहते थे, अपने काम को सालों साल जिंदा रखकर कईयों के लिए मिसाल बनना चाहते थे और आकाश छूना चाहते थे, सो कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में आ गए, जहां अब वे आसमान छूती ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएं खड़ी कर रहे हैं, लोगों का घर का सपना पूरा कर रहे हैं और जिंदगी को नए रंग दे रहे हैं। सन २००७ में अपने साथी सुनील चौधरी के साथ शुरू की गई उनकी कंस्ट्रक्शन फर्म एससीजीके बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड एक सफल कंपनी के रूप में हमारे सामने स्थापित है, वे मुंबई के पास अंबरनाथ में जिंदगी की सारी सुविधाओं से सुसज्ज अफोर्डेबल हाउसिंग के शानदार प्रोजेक्ट चला रहे हैं। तीन सफल प्रोजेक्ट पूरे करने के बाद अब दो नए विशाल प्रोजेक्ट लॉच किए गए हैं, जिनमें क्लब हाउस, जॉगिंग ट्रैक, मंदिर और स्वीमिंग पूल जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से भरपूर रॉयल फ्लोरा में १२०० फ्लैट और रॉयल कैसल में २००० मॉर्डन युनिट्स बना रहे हैं, वे अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी माता मोहिनी देवी द्वारा दिए गए संस्कारों और पिता सोहनलालजी से मिली हिम्मत को देते हैं। खिरोदिया बताते हैं कि ‘घर’ हर किसी की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है, उसे शानदार बनाना भी हर किसी का सपने में शामिल होता है, एक निर्माता के रूप में यह काम करने का मौका ईश्वर ने मुझे दिया है, तो मैं उसे बेहतर ढंग से पूरा करने में लगा हूँ, उनकी सफलता में धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला खिरोदिया का महत्वपूर्ण योगदान है, वे हर कार्य में अपना पूरा सहयोग देती हैं। श्री खिरोदिया क्रिकेट के साथ पढ़ने, विदेश भ्रमण का शौक भी रखते हैं, वे अब तक कई देशों का भ्रमण कर चुके हैं, ‘तेरा तुझको अर्पण’ सिद्धान्त को मानते हुए कहते हैं कि समाज ने जो कुछ दिया हैं उसे समाज के लिए देने में अपार खुशी होती हैं। सपने देखना और देखे हुए सपनों को साकार करने के साथ उस सपने में हजारों लोगों को शामिल करना, खिरोदिया जी की जिंदगी का हिस्सा है। मेवाड़ महोत्सव की शुरूआत की, जहां हजारों लोग हर साल आपस में मिल-जुल कर अपने जीवन को नए रंग देते दिखते हैं। सामाजिक रूप से अत्यंत सक्रिय खिरोदिया जी ने अपनी माता मोहिनी देवी की पावन स्मृति में उदयपुर में पेसिफिक डेंटल कॉलेज, जयदृष्टि हॉस्पिटल, जिला अंधता निवारण समिति एवं महावीर इंटरनेशनल के सहयोग से अप्रैल २०१७ में एक विशाल चिकित्सा शिविर का आयोजन किया, जिसमें हजारों लोगों को इलाज का परामर्श एवं चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की गई। देखा जाए तो असल खुशी उन्हें समाज के बीच ही मिलती है। गुणवंत खिरोदिया मेवाड़ प्रवासी संघ और गिलूंड जैन मित्र मंडल के अध्यक्ष हैं तथा मेवाड़ नवयुवक मंडल मुंबई के प्रमुख हैं। जैन युवा संघ दिल्ली के संरक्षक तथा डोंबिवली उपसंघ के ट्रस्टी के रूप में भी सेवाएं दे रहे हैं।अंबरनाथ ईस्ट रोटरी क्लब के पूर्व अध्यक्ष, खिरोदिया जी के नेतृत्व में जैन युवा संघ दिल्ली, देश भर में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को घर-घर तक पहुंचाने के प्रयास में हैं, उस सपने को उन्होंने अपने घर से शुरू करते हुए सफल बनाने में मदद की है, इस...

भावों से ही बनती है दशा और दिशा

भाव-भावना भाव-भावना ही व्यक्ति के जीवन के अन्तर्मुखी दर्पण है, भावों से ही भावना बनती है, भावों से ही विचारों का जन्म होता है, भाव जगत ही व्यक्ति के जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। भाव ही जीवन को भव्य बनाता है और भाव ही जीवन को उधोगति का मेहमान बनाता है। भाव ही कर्म बन्धन और कर्म मुक्ति का मापदण्ड है। भावों से ही व्यक्ति प्रतिदिन न जाने कितनी बार गिरता, उठता है, मन मालिन्य करता है और न जाने कितनी बार मन में उठने वाले विचारों का शोधन करता है, संवर्धन करता है और दिव्यता की ओर प्रयाण करता है। प्रतिक्षण जीवन में भावों का उतार-चढ़ाव निरन्तर जारी रहता है, न जाने कब व्यक्ति भावों से राक्षस बन जाना है, कब विषय वासना के चक्रव्यूह में फंस जाता है, कब क्रोध, मान, लोभ छल-कपट से घिर जाता है, वहीं दूसरी ओर भावों से ही करूणा, दया, आस्तिकता, अपनत्व, सद्भाव की रश्मियों से प्रकाशित होने लगता है। भावों से व्यक्ति दृढ़ प्रतिज्ञ, संकल्पी इच्छाशक्ति का धनी बनकर अपनी मंजिल को पाने के लिए सतत् परिश्रम करता है। भाव जगत की श्रेष्ठता व साधना की परिपक्वता का ही दूसरा नाम मुक्ति है, मैं स्वयं अपने भावों को निहारता हूं तो महसूस करता हूं कि भावों की चंचलता जब कभी निकृष्टता की ओर प्रयाण करने हेतु तत्पर होती है तो भावों की पवित्रता, भावों की शुचिता उसे रोकती है और आत्मा के किसी कोने से आवाज आती है, रूक जा, ठहर जा, भाव जगत के बिगड़ने के पहले संभल जा। भाव जगत को कई बार जब क्रोध घेर लेता है, क्रोध की तरंगे भाव जगत में प्रविष्ट हो जाती हैं तो सुज्ञ, परिपक्व, एवम् चिन्तनशील व्यक्ति भी अपनी सूझ-बूझ खो देता है। विभाव दशा उसे घेर लेती है, अत: भाव जगत में आने वाली विकृतियों को रोकना ही तो इन्द्रिय विजेता बनने की दिशा में अग्रसर होना है। मेरे स्मृति पटल पर महापुरूषों से सुना हुआ एक दृष्टांत उभरकर आ गया। समुद्र में रहनेवाला विशाल व डरावना मगरमच्छ जब अपने विशालकाय मुंह को खोलकर रहता है तो समुद्र में उमड़ने वाली लहरों के साथ सैकड़ों मछलियां उसके मुंह में प्रवेश कर जाती है और पुन: सुरक्षित बाहर आ जाती है। मगरमच्छ अपनी प्रशान्त अवस्था में जल में विचरण करता रहता है, यह क्रम चलता रहता है। जूं के समान एक अत्यंत छोटा प्राणी जिसे तन्दुल मत्स्य कहते हैं वह विशालकाय मगरमच्छ के भौंहों की बालों के बीच बैठा रहता है। मगरमच्छ के खुले मुंह में मछलियों के प्रवेश करने और निकलने से अनजान बने रहने को देखकर तन्दुल मत्स्य सोचता है कि यह मगरमच्छ कितना बेवकूफ है। सैकड़ों मछलियां इसके मुंह में पानी के बहाव के साथ प्रवेश करती हैं और पुन: बहाव के साथ निकल जाती हैं, यह मगरमच्छ अपनी मस्ती में रहता है|  इतनी सारी मछलियां जो उसे सहज ही खाने को मिलती है, उन्हें वह खाता नहीं, मछलियां उसके मुंह से बाहर आ जाती हैं। काश मैं इसकी जगह होती! तो मैं सारी मछलियों को निगल जाती, खा जाती। तन्दुल मत्स्य अपनी अत्यंत छोटी शारीरिक बनावट के अनुसार एक छोटी मछली को भी नहीं खा सकती, लेकिन तन्दुल मत्स्य केवल सभी मछलियों को खा जाने के लिए भाव बनाती है। विशालकाय मगरमच्छ को बेवकूफ मानती है। महापुरूषों ने बतलाया कि केवल भावों में ही तन्दुल मत्स्य सैकड़ों मछलियों को खाने का भाव बनाती है जिसके कारण उसका भाव जगत हिंसा, कुरता से भर जाता है और वह अपना भव केवल भावों से बिगाड़ लेती है तथा नरकों का मेहमान बन जाती है। मैं सोचने लगा कि भाव जगत की शुचिता, पवित्रता ही हमारे जीवन को शुभ बनाती है, प्राय: व्यक्ति प्रत्येक मांगलिक कार्य के लिए पंडितों से शुभ मुहूर्त पूछता है और तदनुसार कार्य करता है। मैंने अनुभव किया है कि ज्योतिष शास्त्रों द्वारा दिया गया शुभ मुहूर्त में भी यदि कार्य के सम्पादन के समय हमारे भावों में समता, सहजता, प्रमाणिकता, कर्तव्यबोध नहीं रहा तो सारा मुहूर्त निष्फल हो जावेगा, भावों की विभाव दशा शुभ मुहूर्त को भी विकलांग बना देगी। कुछ वर्षों पूर्व समाचार पत्रों में पढ़ा था कि नगर के कुछ मुहल्लों में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ गई है। नगरपालिका इन आवारा कुत्तों को जहर नहीं दे रही है। संवाददाता इसका समाचार बनाते थे। कुत्तों को जहर देकर मारने का भाव आया, समाचार बनाया, इन समाचारों को पढ़कर हमारा भाव जगत इन आवारा कुत्तों की जिन्दगी समाप्त करने के भावों से ही कुरता के भावों से भर गया, न हमने उन कुत्तों को देखा, न ही हमने जहर दिया, केवल कुरता के भाव आने से न जाने हमने भव बिगाड़ लिये। कर्म बन्धनों का शिकंजा हम पर कस गया। श्रीमति मेनका गांधी का पशुओं, वन्य प्राणियों, पक्षियों के जीवन के प्रति जो करूणा भाव है, पशु-पक्षियों की पीड़ा को भी समझने की संवेदना है उसके कारण अब कुत्तों की नस्लबंदी की जाती है, जहर देकर मारने का महापाप नही किया जाता। भाव जगत जब कुरता, वासना, लोभ से भर जाता है तो व्यक्ति अपने ही परिजनों को मौत के घाट उतार देता है। कंस ने कृष्ण को मारने हेतु न जाने अपने भाव जगत को इतना कुर बना दिया कि अपनी ही बहन देवकी को बन्दी बनाकर कारागार में बन्द कर उसकी सन्तान को मारने का महापाप करने लगा |समाचारों को पढ़कर, घटनाक्रमों को सुनकर, सारी परिस्थितियों को समझे बिना, सुनी-सुनाई बातों पर, जिससे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं, व्यक्ति चर्चा-परिचर्चा में प्रतिक्रिया करते हुए कहता है कि इसे फांसी पर लटका दिया जाना चाहिये, उसे जिन्दा जला देना चाहिये, मेरा बस चले तो उसे ऐसा मजा चखाउंâ कि उसे नानी याद आ जाए, इन सारी प्रतिक्रियाओं से हमारा भाव जगत बिगड़ता है, दूषित होता है तथा हमारे स्वभाव को भी उग्र बनाता है। मैं सोचने लगा कि मैंने भी कई बार आवेश में, क्रोध में, संवाद में अप्रियकर वाणी का प्रयोग किया, उत्तेजना से वातावरण को दूषित किया, काश् मैं भी भाव जगत को सुधार लेता तो मैं भी समता पथ का पथिक बन जाता। हम वीर प्रभु से प्रार्थना करें कि हे प्रभु! हमारे भावों को पवित्र बनाए रखना ताकि हमारा भव न बिगड़े। कभी-कभी हमारी ज्यादा भावुकता भी हमें भटका देती है। हे प्रभु! हमारा भाव जगत जब भी विभाव जगत में जाने लगे हमें सचेत कर देना, सावधान कर देना, रोक देना। हे प्रभु! हमारा भव बिगड़ने से पहले हमें बचा लेना, हमें बचा लेना। -गौतम पारख जैनराजनांदगांव, छत्तीसगढ जैन साधु के लिए भिक्षा विधि जैन साधु (श्वेताम्बर स्थानकवासी) पैदल एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं वे अपने हाथ से खाना नहीं बनाते, वे जिस गांव में जाते हैं वहां जो शाकाहारी घर होते हैं उनके यहां से जैन साधु अपने नियम के अनुसार भोजन-पानी लेते हैं, जिनकी भिक्षा विधि इस प्रकार है:जैन साधु की शुद्ध भिक्षा विधि:१. जैन साधु सादा पानी नहीं पीते, वे जिस तरह का पानी लेते हैं उसकी विधि इस प्रकार है:१) जिस पानी से चावल, दाल इत्यादि धोयें (धोवन पानी) वह पानी फेंके नहीं एवं सुखे बर्तन में जमीन पर सुखी जगह पर रख सकते हैं।२) चावल का मांड (पसीया) सुखे बर्तन में सुखी जगह जमीन पर रखा जा सकता है।३) सुबह के बासी बर्तन, ग्लास-लोटा वगैरह यदि राख से धोते हों, उसका पहला पानी अलग सुखी जगह रख सकते हैं।४) बर्तन धोने के लिए सर्पâ की जगह राख ले सकते हैं, राख के उपयोग से पानी की बचत होती है।५) प्रतिदिन नियमित समय पर जितना भोजन बनता है उस बने हुए भोजन को नमक, पानी, विद्युत उपकरण, अग्नि, कच्ची सब्जी, फल से दूर रखना और सुखी जगह पर रखना।२. क्या दे सकते हैं:१) रोटी, सब्जी, दाल, चावल, अचार, गुड़ इत्यादि चावल का धोया हुआ पानी, दाल का धोया हुआ पानी, चावल का मांड।३. क्या नहीं करना:१) साधुओं के लिए जल्दी एवं ज्यादा नहीं बनाना।२) साधुओं के लिए नई चीज नहीं बनाना।३) साधुओं के लिए बर्तन धोने में रोजाना की अपेक्षा ज्यादा पानी नहीं लेना।४) जिस समय बर्तन नहीं धोने हो उस समय साधु के लिए राख आदि से बर्तन नहीं धोना, साधुओं के लिए पानी गरम नहीं करना।४. साधुओं को भिक्षा देते समय ध्यान में रखें:१) साधुओं को भोजन देने के लिए हाथ नहीं धोना।२) सेल की घड़ी पहनी हो या मोबाइल पास में हो तो साधु को भोजन, धोवन पानी एवं गरम पानी नहीं देना।३) साधुओं को भिक्षा देते समय बिजली, पंखा आदि का स्विच बन्द या चालु नहीं करना।४) गीले हाथों से धोवन पानी या भोजन नहीं देना।५) साधुओं को भिक्षा देते समय वनस्पति एवं सादे पानी से अपने आपको दूर रखें।६) जलता हुआ गैस व चुल्हे पर रखी वस्तु नहीं देना एवं चालु गैस चुल्हे को छुना नहीं।७) घुटने की ऊचाई से नीचे से साधुओं को भोजन देना एवं साधुओं को देते समय कोई भी चीज एक दाना या एक बुन्द भी घुटने के ऊपर से न गिरे इसका ध्यान रखें।८) जैन साधु जहॉ खाने आदि का सामन पड़ा हो उसे देखे बिना भिक्षा नहीं ले सकते, अत: उन्हे सम्मान पूर्वक रसोई में ले जाना तथा जल्दबाजी या हड़बड़ी किये बिना उन्हें इतना ही देना जिससे पीछे वापस बनाना न पड़े।साधुओं को उनके नियमानुसार शुद्ध आहार एवं पानी की भिक्षा देकर महान-महान पुण्यवानी का उपार्जन किया जा सकता है। – महेश नाहटा, जैननगरी

गणतंत्र दिवस २६ जनवरी

२६ जनवरी २६ जनवरी, १९५० भारतीय इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दिन के रुप में माना जाता है। इसी दिन भारतीय संविधान जीवंत हुआ। उसके बाद हमारा देश संप्रभु देशों में शामिल हो गया। एक गणतांत्रिक शक्ति के रुप में हमारा भारत दुनिया में रुपायित हुआ।हालांकि भारत ने १५ अगस्त, १९४७ को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। भारत का संविधान २६ जनवरी, १९५० को प्रभाव में आया। संक्रमण १९४७ से १९५० तक की अवधि के दौरान किंग जार्ज षष्ठम राज्य के सिर था। सी. राजगोपालाचारी ने इस अवधि के दौरान भारत के गवर्नर जनरल के रुप में सेवा की। २६ जनवरी १९५० के बाद, राजेन्द्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति के रुप में निर्वाचित किये गये थे। आज गणतंत्र दिवस देश भर में और विशेष रुप से राजधानी, नई दिल्ली, जहाँ समारोह राष्ट्रपति द्वारा बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। राजधानी स्थित विभिन्न स्कूलों से बच्चे-बच्चियों का भी मोहक प्रदर्शन नजर आता है। परेड में देश के विभिन्न राज्यों से शानदार प्रदर्शन किये जाते हैं, जिनमें विभिन्न वर्गों द्वारा सांस्कृतिक एकता झलकती है। परेड और जुलूस राष्ट्रीय टेलीविजन द्वारा प्रसारित होते हैं और देश के हर कोने में स्थित यानी करोड़ों भारतीयों को दिखायी पड़ते हैं। इस दिन लोगों की देशभक्ति देश के हर भाग में दिखती है। देश में हर कार्यालय व संस्था में राष्ट्रीय छुट्टी होती है। इस अवसर पर प्रात:काल में भारत के प्रधानमंत्री इंडिया गेट पर ‘अमर जवान ज्योति’ पर पुष्पांजलि देते हैं उन सभी सैनिकों को, जो देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देते हैं। राष्ट्रपति जो सशस्त्र सेनाओं का सुप्रीम कमांडर भी है, उनके काफिले के साथ आता है। उन्हें २१ तोपों की सलामी प्रस्तुत की जाती है। राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और राष्ट्रीय गान गाया जाता है। परेड में भारतीय परेड के दौरान सैन्य दल (वायु, समुद्र और जमीन) सशस्त्र बलों के सभी (तीन) प्रभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। वहाँ पुलिस दल का भारी परेड, होम गार्ड, सिविल डिफेंस और राष्ट्रीय कैडेट कोर भी शामिल होता है। सैन्य परेड एक रंगारंग सांस्कृतिक परेड के द्वारा पीछा करते हैं। विभिन्न राज्यों से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झांकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। देश भर से आये स्कूली बच्चों का परेड काफी प्रभावपूर्ण होता है। परेड का सबसे आकर्षक भाग विमानों द्वारा कुशल उड़ानबाजी होती है। जो भारतीय वायु सेना द्वारा प्रस्तुत होती है। लड़ाकू विमान अपने बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इस तरह कई राष्ट्रोचित तैयारियों व परंपराओं के लिए गणतंत्रता दिवस के मूल्यों और उसकी मर्यादा को रेखांकित और सम्मानित किया जाता है। माता-पिता की कृपा को याद करो, शिकायतें नहीं रतलाम: मुनिश्री प्रमाण सागरजी महाराज ने कहा कि अपनों को यूज एंड थ्रो मत करो, माता-पिता सबसे पहले वंदनीय है ना कि भगवान और गुरु। मुनिश्री ने पूछा कि जहां तक पहुंचे हो किसकी कृपा है कभी सोचा है? माता-पिता चरण वंदन के लिए कैसे संकोच? जो जीते जी मां-बाप की उपेक्षा करे व महाअभागे, माता-पिता का सम्मान कैसे करते हैं, रामायण से सीखो। प्रभुराम को वनवास मिला, भरत को राज्य, पिता के प्रण सुरक्षित रहे, इसलिए रामचंद्र जी वनवास गए, ये है हमारे भारतीय आदर्श। मां-बाप हमारे संस्कारदाता हैं, उनके उपकारों से रोम-रोम दबा हुआ है, एक-एक कतरा खून माता-पिता का है, इसे मत भूलो, वर्ना पतन होगा। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में माता-पिता, जीव का दाता और गुरु के उपकार को कभी नहीं भुलाया जा सकता, हर दिन जब आंख खुले तो माता-पिता के उपकार को याद करो, जन्म के साथ संस्कार दिए, समाज ने सक्षम बनाकर खड़ा किया, पिता की डांट, पक्षपात, दुव्र्यवहार, रोक-टोक को याद मत करो, मां ने जन्म दिया, ये लंबी साधना है जो मां साधती है, आज माता-पिता भार लगने लगे हैं, अपने घर में उनके लिए जगह नहीं, ये नीचता का चरम है, अभागे कृतघ्न का कभी उद्धार नहीं होता। मां-बाप का नाम आते ही मन गदगद हो जाना चाहिए, मां की इच्छा के आगे कुछ नहीं, कहां जा रही है पीढ़ियां? मुनि श्री ने कहा कि जन्म के बाद जीवन दिया, याद करो बीमारी में सारी रात जागकर बिताई, तुमने गोद गीली की, पर विडंबना है अब माँ-बाप की आंखें गीली कर रहे हो, माँ-बाप के कर्ज को याद रखो, यह चुकाना असंभव है, समस्त रजकण और समुद्र के जल-कण को एकत्रित भी कर लिया जाए तो उनका कर्ज उतारना असंभव है। मुनि श्री ने कहा कि माता-पिता की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बनो, बाधक नहीं। आचार व्यवहार से उनका यश बढ़ाओ। माता-पिता की यशोगाथा जीते जी पैâलाओ और वे चले गए हंै तो अपनी सामथ्र्य के अनुरूप कोई अच्छा काम करो, जीवन सफल होगा। गन्ने के रस के औषधीय गुणमुनि गन्ने के रस में स्वाद के साथ-साथ सेहत भी है, यह आपको कई बीमारियों से सुरक्षित रखने के साथ ही आपकी त्वचा को भी निखारता है। गन्ने का रस बहुत ही सेहतमंद और गुणकारी पेय है, इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नेशियम और फॉस्फोरस जैसे आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं,इनसे हड्डियाँ मजबूत बनती हैं और दाँतों की समस्या भी कम होती है, गन्ने रस के ये पोषक तत्व शरीर में खून के बहाव को भी सही रखते हैं, वही इस रस में कैसर व मधुमेह जैसी जानलेवा बीमारियों से लड़ने की ताकत भी होती है।कैसर से बचाव: गन्ने के रस में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और मैग्नेशियम की मात्रा के स्वाद होते कैसर से बचाते हैं। गन्ने को रस कई तरह के कैसर से लड़ने में सहायक हैं। प्रोस्टेट और स्तन (ब्रेस्ट) कैसर से लड़ने में भी इसे कारगर माना जाता है। पाचन को ठीक रखता है: गन्ने के रस में पोटैशियम की अधिक मात्रा होने की वजह से यह शरीर के पाचनतंत्र के लिए बहुत फायदेमंद है, यह पाचन सही रखने के साथ-साथ पेट में संक्रमण होने से भी बचाता है, गन्ने का रस कब्ज की समस्या को भी दूर करता है। ह्य्दय रोगों से बचाव: यह रस दिल की बीमारियों जैसे दिल के दौरे के लिए भी बचावकारी है। गन्ने के रस से शरीर में कॉलेस्ट्रोल और ट्राईग्लिसराइड का स्तर गिरता है, इस तरह धमनियों में फैट नहीं जमता और दिल व शरीर के अंगों के बीच खून का बहाव अच्छा रहता है। वजन कम करने में सहायक: गन्ने का रस शरीर में प्राकृतिक शक्कर पहुँचाकर और खराब कॉलेस्ट्रोल को कम करके आपका वजन कम करने में सहायक होता है, इस रस में घुलनशील फाइबर होने के कारण वजन संतुलित रहता है। डायबिटीज का इलाज: गन्ना स्वाद में मीठा और प्रकृतिक शुगर से भरपूर होता है, इसमें कम ग्लाइसीमिक इंडेक्स की वजह से मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा होता है।त्वचा में निखार लाता है: गन्ने के रस में अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड (AHAS) पदार्थ होता है, जो त्वचा सम्बन्धित परेशानियों को दूर करता है और इसमें कसाव लेकर आता है। AHA मुँहासे से भी राहत पहुँचाता है, त्वचा के दाग कम करता है, गन्ने के रस त्वचा को नमी देकर झुर्रियाँ कम करता है, गन्ने के रस को त्वचा पर लगाएँ और सूखने के बाद पानी से धो लें, बस इतना प्रयास करने पर ही आपकी त्वचा खिली-खिली और साफ नजर आएगी।

आचार्य शिव मुनिजी और राष्ट्र-संत ललितप्रभजी का लाड़वी गांव में हुआ मंगल मिलन

जैन एकता का हुआ शंखनाद सूरत: श्रमण संघ के आचार्य शिव मुनि जी महाराज ससंघ का राष्ट्र-संत ललितप्रभ जी महाराज से लाड़वी गांव में मंगल मिलन हुआ, इस अवसर पर लाडवी गांव में दुध डेरी के सामने स्थित सुगनचंद बोल्या आवास पर सामूहिक प्रवचनों का आयोजन रखा गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने लाभ लेकर मिलन को आनंदमय और सद्भावमय बनाया|इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्र-संत ललितप्रभजी महाराज ने कहा कि ऋतुओं के मिलन पर प्रकृति मुस्कुराती है और संतों के मिलन से संस्कृति मुस्कुराती है, जब अलग-अलग परम्परा के संत आपस में एक मंच पर बैठकर प्रेम और सद्भाव की बातें करते हैं तो धार्मिक एकता को बल मिलता है और सामाजिक एकता घटित होती है, हमें तख्त पर भी एक, होना चाहिए और वक्त पर भी एक। हमने २५०० साल टूटकर खोया ही खोया है, मात्र २५ साल के लिए एक हो जाएं तो पूरी दुनिया में धर्म का डंका बजा सकते हैं। उन्होंने कहा कि गोरा रंग दो दिन अच्छा लगता है, ज्यादा धन दो महिने अच्छा लगता है, पर अच्छा व्यक्तित्व जीवनभर अच्छा लगता है, अगर हम सुंदर हैं तो इसमें खास बात नहीं है, क्योंकि यह माता-पिता की देन है, पर अगर हमारा जीवन सुंदर है तो समझना यह खुद की देन है, उन्होंने कहा कि जिस्म को ज्यादा मत संवारो उसे तो मिट्टी में मिल जाना है, संवारना है तो अपनी आत्मा को संवारो, क्योंकि उसे ईश्वर के घर जाना है, उन्होंने कहा कि इस दुनिया में कुछ लोग बिना मरे मर जाते हैं, पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के चलते मरने के बाद भी अमर हो जाते है, हम या तो सौ किताबें लिखकर जाएँ ताकि हमारे जाने के बाद भी लोग हमें पढ़कर याद कर सके या फिर ऐसा जीवन जीकर जाएँ कि हम पर सौ किताबें लिखी जा सके। प्रेम और उदारता भरा जीवन जिएँ-संतप्रवर ने कहा कि प्रेम और उदारता भरा जीवन जिएँ, हम औरों का खाकर नहीं, वरन् औरों को खिलाकर खुश होवें, उन्होंने बहुओं से कहा कि पीहर से कुछ सामान आए तो उसे अलमारी में रखने की बजाय घर के आंगन में रखें, अंदर रखने वाली अलमारी की मालकिन बनती है और आंगन में रखने वाली पूरे घर की मालकिन बनती है, उन्होंने सासुओं से कहा कि अगर कभी बहू के सिर से पल्लू खिसक जाए तो माथा भारी करने की बजाय, उसमें बेटी को देखने का आनंद ले लें। आचार्य शिव मुनिजी ने श्रद्धालुओं से कहा कि हमें राष्ट्र-संत से मिलकर बेहद खुशी हो रही है, धार्मिक और सामाजिक एकता के लिए इन्होंने जो काम किये हैं उसे आने वाला कल सदा याद रखेगा और गौरव करता रहेगा, अब समाज में ऐसे संतों की जरूरत है जो समाज को जोड़े, समाज को एक करे, टूटने से कीमत खतम हो जाती है, पर एकता रखने से औकात बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध जैसे लोग धरती से कभी के चले गए, पर उनके महान जीवन और महान विचारों की खुशबू आज भी लोगों को सुवासित कर रही है, क्योंकि उन्होंने मानव-मानव को जोड़ा, उन्हें प्रेम और अहिंसा से जीना सिखाया, याद रखें, औरों के दिल में जगह वैभवपूर्ण जीवन जीने से नहीं, प्रेम और त्यागपूर्ण जीवन जीने से बना करती है| रखें, चौराहे पर एक तरफ विश्व विजेता सिकन्दर की मूर्ति हो  और दूसरी और निर्वस्त्र महावीर की मूर्ति हो, श्रद्धा से सिर तो महावीर के चरणों में ही झुकेगा, दुनिया में वैभव महान होता है, पर त्याग और सादगी से ज्यादा कभी महान नहीं होता, उन्होंने अमीर लोगों से कहा कि अगर आप अपनी संतानों की वैभवपूर्ण शादी करेंगे तो दुनिया चार दिन याद रखेगी, पर उसके उपलक्ष में बीस गरीब भाइयों को पाँवों पर खड़ा करने का सौभाग्य लेंगे तो दुनिया हमेशा याद रखेगी, अगर आप अपना धन केवल बेटे-बेटी को देकर जाएँगे तो केवल दो व्यक्ति ही खुश होंगे, पर अनाथालय, वृद्धाश्रम, स्कूल, हॉस्पिटल जैसा कोई सत्कर्म कर देंगे तो सारा शहर खुश हो जाएगा। अहंकार हटाइए, विनम्रता लाइए-आचार्यप्रवर ने कहा कि अहंकार शूल है और विनम्रता फूल है, हम केवल बड़े न बनें, वरन् बड़प्पन भी दिखाएँ, याद रखें, जो घड़ा झुकने को तैयार नहीं होता, वह कभी भर नहीं पाता, उन्होंने कहा कि हम कितने ही धनवान, रूपवान, ज्ञानवान, बलवान, सत्तावान क्यों न हों, जिंदगी का अंतिम परिणाम तो केवल दो मुठ्ठी राख ही है फिर हम किस बात का अहंकार करें, कार्यक्रम में शिरीसमुनि जी आदि ठाणा ८ और महासति कंचनकंवर श्रीजी महाराज आदि ठाणा ३ और महासति रूचिकाश्री जी महाराज आदि ठाणा ३ भी उपस्थित थे, इस अवसर पर गुरुजन और श्री संघ ने कार्यक्रम के लाभार्थी सुगनसिंह, राजेन्द्रकुमार, संजयकुमार, चेतनकुमार बोलिया परिवार का सम्मान किया गया  प्रसिद्ध वक्ता पण्डित श्री सौभाग्यमलजी महाराज मालव केसरी प्र. वक्ता पं. श्री सौभाग्यमलजी म. इस काल के प्रसिद्ध जैन सन्तों में से एक हैं। आप पं. मंत्री मुनि श्री किशनलालजी म. के ज्येष्ठशिष्य हैं, नीमच के समीप स्थित सरवाणिया ग्राम में केवलचंदजी और गेंदमलजी फांफरिया दो भाई रहते थे, केवलचंदजी के पाँच पुत्र थे- रिखबचंदजी, चंपालालजी, पन्नालालजी, चौथमलजी और मोतीलालजी। क्रमश: तीन पुत्र नि:संतान थे। चौथमलजी के तीन पुत्र हुए, चौथमलजी की धर्मपत्नी केशरबाई (मोतीबाई) की कुक्षि से सं. १९५५ में पू. श्री सौभाग्यमलजी म. का जन्म हुआ था, आपके दो बड़े भाई-नानालालजी और गेंदमलजी क्रमश: मोरवणग्राम और रतनपुर की खेड़ी में गोद गये थे। बालक सौभाग्यमलजी की छोटी अवस्था में ही उनकी माता का देहान्त हो गया था। श्री चौथमलजी ने अपनी पूंजी सट्ठे में गँवा दी, अत: वे लघु बालक सौभाग्य को संग लेकर, आजीविका की खोज में मन्दसौर आये, परन्तु वहाँ उनकी इच्छा पूरी न हो सकी, इसलिए वे जावरा आये, यहाँ भी उन्हें निराश होना पड़ा, अब चौथमलजी रतलाम आये, वहाँ पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी म. की सम्प्रदाय के प्रभावशाली आचार्य पूज्य श्री श्रीलालजी म. चातुर्मासार्थ विराजमान थे। अत: वहाँ दर्शनार्थिंयों के लिए भोजन शाला खोली गई थी, चौथमलजी को वहाँ नौकरी मिल गई। पिता-पुत्र आनन्द से रहने लगे, परन्तु अभी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा था। चौथमलजी रोग से पीड़ित हो गये, वहाँ के साधर्मी बन्धुओं ने उनका उपचार करवाया, वे स्वस्थ हुए, पुन: कार्य में लग गये, परन्तु कुछ समय बाद ही रोग ने पुन: आक्रमण किया, इस बार चौथमलजी स्वस्थ न हो सके और अपने लघु पुत्र को असहाय छोड़कर, इस जगत से सदा के लिए रवाना हो गये। अबोध सौभाग्य में अभी यह समझने की शक्ति नहीं थी, कि मैं निराधार हो गया हूँ। रतलाम के प्रसिद्ध श्रावक इन्दरमलजी कावड़िया ने अपने यहाँ बालक सौभाग्य को प्रेम से रखा। परन्तु एक दिन बालक को एक ब्राह्मण ने फुसलाकर अपने संग ले लिया, वह बालक को लेकर खाचरोद आया और बालक को वहीं छोड़कर अचानक न जाने कहाँ पलायन कर गया। बालक को भूख लगी, वह इधर-उधर देखने लगा, ऐसी स्थिति में उसे खाचरोद के प्रतिष्ठित गृहस्थ मियाचन्दजी खींवसरा ने देखा, उन्होंने परिस्थिति को जाना, उन्होंने बालक से उसका परिचय पूछा, पर वह क्या परिचय देता, वह इतना ही बोला- ‘मने भूख लागी’ सेठजी ने बाजार से कुछ सामग्री खरीद कर उसकी भूख शांत की, उसका नाम जानकर उन्होेंने जान लिया कि यह किसी जैन का लड़का है, वे बालक को पुलिस थाने पर ले गये, वहाँ पंचनामा करवाया और बालक सौभाग्य को आपनी छत्रछाया में ले लिया। वे उन्हें अपने घर ले आये, उनके घर के बालकों के साथ सौभाग्यमलजी का पालन-पोषण होने लगा। सौभाग्यमलजी बचपन में बड़े नटखट थे और पढ़ने की रुचि भी नहीं थी, वे प्राय: अपने नटखटपन के चमत्कार दिखाया करते थे। कभी गुपचुप मलाई खा जाते तो कभी कुछ सामग्री बाजार से लाते तो उसमें से भी खा लेते, अत: उसके परिणाम स्वरूप दण्ड भी मिलता था, फिर भी घर में पुत्रवत् ही प्यार मिलता रहा। आप बारह वर्ष के लगभग की आयु के थे, तब आपको पूज्य श्री नन्दलालजी म. के दर्शन हुए। आप श्री किशनलालजी म. के द्वारा सं. १९६७, वैशाख कृष्णा ३ को श्री मियाचन्दजी खींवसरा की अनुज्ञा से दीक्षित हो गये। सेठजी के सुपुत्र चान्दमलजी आदि का आप पर अति प्रेम था। मियाचन्दजी ने इस शर्त से दीक्षा की अनुमति दी थी कि दीक्षा गुपचुप दी जाये, उन्हें दीक्षा की आज्ञा देने के लिये श्री मनकूँवरजी महासती और महताबकूँवरजी म. ने भी समझाया था, अत: शर्त के अनुसार स्थानक में नीचे उदयचंदजी मुनि की दीक्षा हुई और ऊपर की मंजिल में श्री किशनलालजी म. ने सौभाग्य को दीक्षा दी, दीक्षा के बाद ही आपको विद्याध्ययन की रुचि हुई, आपने जो भी शिक्षा पाई, वह दीक्षित अवस्था में ही पाई।

गुरू वल्लभ भक्तों का स्नेह मिलन मुंबई में सम्पन्न

मुंबई के गुलालवाडी मुंबई के गुलालवाडी में गोडवाल ओसवाल जैन संघ, मुंबई के तत्वावधान में पंजाब केशरी गुरू वल्लभ समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति श्रुतभास्कर आचार्य श्रीमद विजय धर्मधुरंधर सूरीश्वर जी म.सा. एवं उपाध्याय अनंद चंद्र विजयजी म.सा. आदी ठाणा की शुभ निश्रा में हरिचंद रूपचंद वाडी, पांजरापोल में प्रारंभ हुआ।समारोह के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध उद्योगपति घीसुलाल बदामिया अतिथि पोपटलाल सुंदेशा, वक्तावरमल रांका समारोह अध्यक्ष कनकराज लोढा, कनक परमार द्वारा दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। बालक -बालिकाओं द्वारा नृत्य गीत प्रस्तुत किया गया। नरेंद्र जैन ने गुरू स्तुति गान किया। मधु रांका, चंद्रा मेहता, मोहनलाल लुणावा, प्रतापभाई खूबीलाल राठौड़, कनक परमार आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। मुनि श्री इंद्रजीत विजय जी म. सा. ने प्रवचन में कहा कि गुरू देवों के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे गुरू भक्तों के मिलन समारोह हमेशा होते रहने चाहिए, समारोह में अतिथियों द्वारा पूज्य गुरूभगवंतों को कांबली ओढाई गयी, एवं सभी महानुभावों का सम्मान किया गया। संपूर्ण कार्यक्रम का मंच संचालन कवि युगराज जैन ने अपनी काव्य शैली में महत्वपूर्ण बातों की तरफ ध्यान वेंâद्रित कराया। कवि युगराज जैन द्वारा लिखित ‘शूल तो चुभेंगे ही’ पुस्तक का विमोचन हुआ। पूज्य गच्छाधिपति गुरूदेव ने कहा मोहन कनक खूबीलाल ने जो नालासोपारा के कार्य की बात कही है उस पर विचार करें, संकल्प करें आज की सभा को संकल्प सभा बनायें, हम संकल्प करें कि गुरू के अधूरे कार्यों को पूरा करने का मुझे पूरा भरोसा है, गुरूभक्त अगर ठान ले तो बहुत कुछ कर सकते हैं। घीसुलाल बदामिया ने पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया, सभी के सामने श्री खुबिलाल जी को आशीर्वाद दिया कि इस कार्य को आगे बढ़ाएं, उसके बाद गुरूदेव ने प्रार्थना का शुभारंभ किया।श्री वल्लभगुरू के चरणों में नित उठ शीश नमाता हूँ, इस समय इस समारोह में अनेकांत संस्थाओें ने भाग लिया, श्री पाश्र्वनाथ जैन विद्यालय वरकाणा, श्री मरूधर बालिका विद्यापीठ, विद्यावाडी, श्री पाश्र्वनाथ उम्मेद जैन शिक्षण संघ, फालना, श्री आत्मानंद जैन सभा मुंबई, आत्मवल्लभ साधर्मिक उत्कर्ष मंडल मुंबई, वरकाणा जैन मित्र मंडल वरकाणा, मीटर गेज प्रवासी संघ मुंबई, मनमोहन ग्रुप आदि के अध्यक्ष व पदाधिकारी उपस्थित थे। जैन कॉन्फ्रेंस के आगामी शपथ विधी समारोह पर पधारने हेतु निवेदन श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर जैन कॉन्फ्रेंस , नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पदाधिकारी, प्रांतीय अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों का वर्ष २०१८-२०२० कार्यकाल का शपथविधी समारोह महाराष्ट्र स्थित अहमदनगर में श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस , नई दिल्ली के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारस मोदी जैन, पदाधिकारीगण, नवनिर्वाचित ‘प्रांतीय अध्यक्ष’ एवं सभी ‘‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों’’ का शपथविधी समारोह मंगलवार, दिनांक १५ जनवरी २०१९ को दोपहर २:०० बजे से आचार्य सम्राट, राष्ट्रसंत, गुरूदेव परम पूज्य श्री आनंदऋषिजी म.सा. की कर्मभूमि/समाधि स्थल ‘‘अहमदनगर’’ में होने जा रहा है। बुधवार, १६ जनवरी २०१९ को प्रात: ७:०० बजे अहमदनगर से बस द्वारा चिंचोड़ी-मिरी में दर्शन करके दोपहर करीबन २:०० बजे जालना में कर्नाटक गजकेशरी, खद्दरदारी गुरूदेव परम पूज्य श्री गणेशीलालजी म.सा. की समाधि पर दर्शन एवं जाप का आयोजन किया गया है। कॉन्फ्रेंस द्वारा निवेदन किया गया है कि शपथविधि समारोह में अवश्य पधारें। आगमन एवं प्रस्थान की पूर्व सूचना फोन द्वारा अथवा एस.एम. एस. द्वारा श्री गणेशजी सांखला जैन-नासिक को उनके भ्रमणध्वनि क्र. ०९८२२३११००८ तथा श्री नितिनजी चोपड़ा जैन -पुणे को उनके भ्रमणध्वनि क्र. ०९८२२४०७४४७, ०७०५८००११२२ पर एवं श्री सुदेशजी भंसाली जैन-पुणे को उनके भ्रमणध्वनि क्र. ०९८२२०४९००० पर दी जा स्थिती है 

पाश्र्व प्रभु के जन्म-दीक्षा कल्याणक पोष सुदी दशमी पर

बेंगलोर में २३ लाख महाभिषेक १००८ अट्ठम तप की रथयात्रा बेंगलोर: श्री पाश्र्वप्रभु जन्म-दीक्षा कल्याणक महोत्सव समिति के तत्वाधान में मालव मार्तण्ड पू.आ.श्री मुक्तिसागरसूरीजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में एक विराट, अनूठा, अभूतपूर्व अनुष्ठान, वाराणसी नगरी का राजदरबार, लाल वस्त्रो में सज्ज १००८ जोड़े १००८ प्रतिमाजी पर प्रत्येक के १००८-१००८ अभिषेक २३०० प्रभु भक्तों द्वारा भव्य आयोजन किया गया हैं।योजना बद्ध तरीके से आयोजन को सफल बनाने के लिए अलग-अलग समितियां बनाकर कार्य भार सौंपा गया हैं, महामहिम राज्यपाल, अनेक राजनेता, नामीगिरामी उद्योगपति इस दृश्य के गवाह बनेंगे। आचार्य श्री मुक्तिसागर सूरीजी ने पूरे बेंगलोर को जोड़ने हेतु कर्नाटक में होने वाले प्रथम बार इस आयोजन हेतु २५ संघों में रथ यात्रा लेकर जहॉ-जहॉ पधारे वहाँ गर्म जोशी से स्वागत हुआ। आचार्य श्री मुक्तिसागरसूरीजी ने प्रवचनों दौरान कहा कि जगत का प्राणी मात्र भय ग्रस्त हैं। पाश्र्वप्रभु की भक्ति सभी प्रकार के भयों का नाश करती हैं। जीवन में सभी दु:ख, दर्द व पीड़ा की जड़ पुण्य की कमी हैं और परमात्मा भक्ति से ही पुण्य की वृद्धि होती है। आचार्य श्री की निश्रा में अक्कीपेट में बाजते-गाजते परमात्मा की जयकार के साथ छोटी बालिकाओं के कर कमलों एवं लाभार्थी अभय सुरेश देवकुमारजी गादिया द्वारा जाजम बिछाई गई, जिसमें श्रद्धालुओं ने धन को नहीं धर्म को महत्व दिया। आचार्य श्री ने कहा धन संसार में भ्रमण कराता है, धर्म संसार से पार लगाता हैं। हर संघों में ऊँ नमो भगवते, श्री पाश्र्वनाथाय के सामुहिक जाप गतिमान रहे। आचार्य श्री ने आयोजन में जुड़ने हेतु आहवान करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन रूपी बाग को महकाने के लिए प्रभु भक्ति रूपी फूल खिलाने जरूरी हैं, इस नश्वर जीवन की जमा पूंजी ही देव गुरू की भक्ति है, समय-समय पर समिति के पदाधिकारीगण कार्यकर्ता का पूर्ण सहयोग रहा। – देवकुमार के. जैन ‘आरोग्य दानं’ योजना से हजारों मरीजों को मिलेगी निशुल्क दवा, अनुपयोग दवाइयों का संग्रह कर जरूरतमंद को देगा संगठन – विनायक लुनिया इंदौर/उज्जैन/कोलकाता/मुंबई/नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी स्व. श्री अशोक जी लुनिया द्वारा स्थापित आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के बैनर तले देश भर के २० राज्यों के १०० से अधिक शहरों में जरूरतमंद मरीजों के लिए ‘आरोग्य दानं’ नामक योजना का शुभारम्भ १ जनवरी २०१९ से किया गया है। संगठन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष पत्रकार विनायक अशोक लुनिया ने बताया की आज देश भर में करोड़ों की तादात में मरीज हैं जिनमें से एक बड़ा तबका आर्थिक रूप से कमजोर है जो आवश्यक दवाओं के अभाव में बीमारी से जूझता है, जिसके सन्दर्भ में हमारे देश की सरकार द्वारा भी विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है किन्तु आज भी हमारे देश में गरीबी के कारण मरीज इलाज और दवाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन एवं जैन मीडिया सोशल वेलफेयर सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में वरिष्ठ पत्रकार सचिन कासलीवाल के नेतृत्व में ‘आरोग्य दानं’ योजना का शुभारम्भ कर संचालन करने जा रहे हैं, उक्त योजना को जन-जन तक पहुँचाने के लिए देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी अनेकों समाजसेवी संस्थान भी अपना अहम् भूमिका निभाएगी। कैसे होगा संचालन : संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनीष कुमट ने बताया कि दवा संग्रहण एवं वितरण ३ स्तर पर किया जायेगा, वहीं दवाइओं के वितरण के लिए भी त्रिस्तरीय निर्धारित किया गया है।दवा संग्रह१- घरों से कार्यकर्ताओं के सहयोग से अनावश्यक दवाओं का संग्रह करना।२- दवा बाजार के व्यापारियों सें दवायें दान लेना।३- दवाइयों के प्रतिनिधियों से सैंपल की दवाये निशुल्क प्राप्त करना।दवा का वितरण१- शासकीय अस्पतालों में जरुरतमंद मरीजों को टीम के डॉक्टरों के माध्यम से दवा को जाँच कर उपलब्ध करवाना।२- शहर में विभिन्न निशुल्क औषधालय केंद्र का शासकीय नियमानुसार संचालन के माध्यम से।३- लम्बे समय तक चलने वाले दवाओं को सूचीबद्ध कर मरीजों को घर पर निशुल्क रूप से दवा उपलब्ध करवाना।ऐसे होगा संग्रहणजैन मीडिया सोशल वेलफेयर सोसाइटी के राष्ट्रीय महासचिव अतुल जैन ने बताया कि प्रत्येक शहर में ३ स्तर पर दवा का संग्रहण होगा।१- प्रत्येक २० से अधिक दवा संग्रहण सेंटर खोले जायेंगे, जिन सेंटरों में स्थानीय नागरिक दवा दान कर रसीद प्राप्त करेंगे, प्राप्त दवाओं को स्थानीय डॉक्टर की निगरानी वाली गठित टीम द्वारा दवा की एक्सपायरी को जांचा जायेगा व् अलग- अलग श्रेणी में संग्रहीत किया जायेगा।२- प्रत्येक शहर में १० सदस्यों की एक टीम दवा बाजार स्थित दवा के थोक व्यापारियों से दवाओं को संगठन में सहयोग स्वरुप प्राप्त करेगा।३- १० सदस्यों की टीम शहर में मौजूद दवा प्रतिनिधि से संपर्क कर उनसे सैंपल के दवा दान स्वरुप प्राप्त करेंगे।इनके निगरानी में होगा वितरणसंगठन के राष्ट्रीय संगठन महासचिव अमित आदित्य सान्याल ने बताया की प्रत्येक शहर में स्थानीय डॉक्टर एवं स्वास्थ कर्मियों की टीम के द्वारा होगा दवाओं का वितरण।जिलाधीश से लेंगे सहयोगसंगठन के संस्थापक सदस्य एवं अंतराष्ट्रीय तबला वादक आदित्य नारायण बैनर्जी ने बताया कि प्रत्येक शहर में प्रारम्भ किया जाने वाले सेंटर के लिए शहर के जिलाधीश कलेक्टर को सुचना देकर उनसे संचालन एवं वितरण के लिए स्वस्थ विभाग का सहयोग लिया जायेगा।इन राज्यों में होगा योजनाओं का संचालनमध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, कर्णाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, चण्डीगढ़, दिल्ली, पुदुच्चेरी में योजनाओं का संचालन संगठन के कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारीगण द्वारा किया जायेगा। – आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशनभ्रमणध्वनि: ८३१९०३११०५

जरूरतमंद बच्चों को जेल में गर्म कपड़े बांटे गए

लुधियाना भगवान महावीर सेवा संस्थान द्वारा सुश्रावक स्वर्गीय श्री तरसेम लाल जैन जी की पूण्य समृति में बच्चों को जेल में स्वैटर, मफ्फलर, बर्तन आदि के साथ-साथ हिन्दी, पंजाबी के रोजाना पढ़ने वाले अखबारों को भी लगवाया गया।सी.जी.एम. डॉ. गुरप्रीत कौर की प्रेरणा से आयोजन का लाभ जैन सतीश हौजरी परिवार के सुरेश- रजनी जैन, विनय-जयती जैन, हरियाली जैन, महक जैन ने लिया, कार्यक्रम को संबोधन करते हुए सी.जी.एम. मैडम ने कहा कि जैन परिवार अपने बजुर्गों की पूण्य समृति में बच्चों को सर्दी से बचने के लिए उनको जरूरत का सामान देकर पूण्य का काम कर रहा है, आज ऐसे दानवीर परिवारों एवम् समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से जरूरतमंद लोगों की जो मदद की जा रही है, उसकी अद्भूत पहचान है यह दानवीर परिवार और संस्थान। संस्था के प्रधान राकेश जैन ने बताया कि संस्था २००४ से समाज सेवा के क्षेत्रों में पोलियो ग्रस्त रोगियों के फ्री ऑपरेशन, दिव्यांगो को बनावटी अंग, ट्राई साईकिल, व्हील चेयर, कानों की ऊँचा सुनने वाली मशीन, आँखों के ऑपरेशन, बच्चों की पढ़ाई में मदद, हस्पताल में दाखिल मरीजों की दवाइयों की मदद के साथ-साथ जरूरतमंद परिवारों को राशन आदि की सहायता दी जा रही है, इस मौके पर भगवान महावीर सेवा संस्थान के प्रधान राकेश जैन, उपप्रधान राजेश जैन, रमा जैन, डा. जतिन्द्र कौर, अद्भुत गुप्ता (यू.एस.ऐ.), अवनीत कौर (सुपरीटेंडैंट), अजय बत्ता, राज कुमार, अमन, युगराज, संजय सेतीया आदि गणमान्य उपस्थित थे। विश्व विख्यांत जैन विद्वान डॉ.भारील्लजी ने पत्रकार एम.सी. जैन को पुस्तकें प्रदान की चिकलठाणा (महाराष्ट्र): जैन समाज के उच्च कोटी के विद्वान विद्यावारिधी, महामहोपाध्याय, विद्यावाचस्पती, वाणी विभूषण आकर्षक शैली के प्रवचनकार, आध्यात्मिक जगत के सम्राट तथा जैन धर्म एवम् आगम के प्रचार के लिये ३५ बार विदेशों में गये मा. श्री. डॉ. हुकुमचंदजी भारील्ल ने महाराष्ट्र के देवळाली-नासिक दिगम्बर जैन मंदिर में ४ नवम्बर २०१८ को राष्ट्रीय हिंदी साप्ताहिक ‘‘जैन गजट’’ के राष्ट्रीय प्रतिनिधी, मराठी-हिंदी लेखक एम. सी. जैन को ‘‘क्रम बद्ध पर्याय’’ ‘‘धर्म के दशलक्षण’’, ‘‘नियम सार’’ अहिंसा पुस्तक भेंट दी, इस अवसर पर सौ. भारील्ल, सौ. हेमालताजी, प्रा. डॉ. राजेश पाटणी, डॉ. प्रीती पाटणी, अविनाश टडैया आदि उपस्थित थे। जीतो मोटीवेशनल लैक्चर आयोजित करती रहेगी – भूषण जैन लुधियाना: अंतराष्ट्रीय संस्था जैन इन्टरनैशनल ट्रैड ओरगनाईजेशन की लुधियाना ईकाई जीतो लुधियाना चैप्टर, जीतो यूथ विंग एवम महिला इकाई के सामुहिक प्रयास से गुरू नानक देव भवन के मिनी हॉल में ‘कामयाबी की तरफ कैसे हो अग्रसर’ के लिए सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन, महामंत्र नवकार के समुहिक उच्चारण के साथ शुरू किया गया, कार्यक्रम के मुख्य वक्ता मुम्बई से पधारे अन्तराष्ट्रीय, keynote sapeekar बसेश गाला (founder & M.D.39 solution group) ने अपने सम्बोधन में बिजनेस को टैंशन फी कैसे किया जाये, कैसे इसकी ग्रौथ बढ़ाई जाये अपनी ग्रौथ के साथ-साथ ओरगनाईजेशन की भी ग्रौथ कैसे बढ़े, जनरेशन गेप को कैसे कम करें, इसी के साथ अपने काम के साथ-साथ मौज मस्ती कैसे हो आदि विषयों के साथ-साथ दान देने पर आपके व्यापार और आपकी मानसिकता पर कैसे असर होता है आदि विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने के साथ प्रश्न-उत्तर सत्र में युवाआें ने खासकर भाग लिया और अपने प्रश्नों का संतुष्ट उत्तर पा कर हॉल को तालियों के साथ गुंजायमान कर दिया। चैप्टर चेयरमैन भूषण जैन, महामंत्री राजीव जैन ‘चमन’ एवम् समस्त कार्यकारणी ने बसेश गाला को शाल औढ़ा कर धन्यवाद देते हुए कहा कि आज २३० के करीब उद्योगपतियों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेकर अपने समय को सार्थक किया और भरपूर जानकारी अर्जित की, आगे भी जीतो ऐसे मोटीवेशनल लैक्चर आयोजित करती रहेगी, इस कार्यक्रम में कोमल कुमार जैन, अमित जैन, कुशल जैन, रमेश जैन, रजनीश जैन, सुधीर जैन, सुरेश जैन, तरूण जैन, राकेश जैन, सुभाष जैन, सोनिया जैन, भाणु जैन, सिरत ओसवाल, निखील जैन, साहिल जैन, रमयक जैन आदि अन्य गणमान्य उपस्थित थे। राजीव जैन ‘चमन’, जीतो लुधियाना चैप्टरमोः ९८७६३-२२२८३ संस्थापक अध्यक्ष साँकलचंदजी संघवी द्वारा संघवी ए३ ग्रुप के कॉर्पोरेट कलेंडर-२०१९ का अनावरण मुंबई: संघवी ग्रुप की ३५ वर्षों की व्यावसायिक तथा सामाजिक उपलब्धियों पर आधारित संघवी ए३ग्रुप के कैलेंडर – २०१९ का उद्घाटन हाल ही में संघवी ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष साँकलचंदजी संघवी द्वारा किया गया। कैलेंडर में संघवी ग्रुप के सुनहरे ३५ वर्षों की यात्रा को दर्शाया गया है। संस्थापक अध्यक्ष साँकलचंदजी संघवी के प्रबल नेतृत्व में, १९८३ में संघवी ग्रुप ने एयर इंडिया के कर्मचारियों के लिए फ्लैट विकसित करना शुरू किया था, इस यात्रा में उनके साथ उनके चारों पुत्र जुड़ गए और संघवी ग्रुप ने एक ऐसी उड़ान भरी, जिसमें मूल्यों के साथ समझौता किये बिना सफलता के शिखर तक पहुंचे, उन्होंने मुंबई, मुंबई उपनगर, लोनावला, नाशिक में, अफोर्डेबल, लक्ज़री, पुनर्विकास, सेकंड होम्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ४६ से भी अधिक प्रोजेक्ट्स बनाकर १७००० ग्राहक परिवारों के चेहरों पर मुस्कान दी। इस अवसर पर संघवी ए३ ग्रुप के CMD शैलेश संघवी ने कहा कि ‘हम आज जो हैं, वह श्री साँकलचंदजी संघवी, मेरे तीनों भाई, पृथ्वीराजजी संघवी, रमेशजी संघवी तथा राकेश संघवी, संपूर्ण संघवी परिवार, हमारे ग्राहक, हितधारक, सहयोगी और टीम के सदस्यों के कारण हैं जिनके ३५ वर्षों के सराहनीय साथ के लिए सभी का आभारी हूँ।

चिकपेट मंदिरजी में मनाई सातवीं वर्षगांठ, आठवां हुआ ध्वजारोहणम

चिकपेट मंदिरजी में मनाई सातवीं वर्षगांठ, आठवां हुआ ध्वजारोहणम बेंगलोर: चिकपेट स्थित श्री आदिराज जैन श्वेताम्बर मंदिर की सातवीं वर्षगांठ पर आठवां ध्वजारोहण कार्यक्रम आचार्य श्री चन्द्रभूषण सूरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री जिनसुन्दरसूरीजी म.सा., साध्वीजी श्री संवेगरत्नाश्रीजी म.सा. की निश्रा में मनाया गया। अमर ध्वजा लाभार्थी श्रीमती भंवरीबाई घेवरचंदजी सुराणा, दिलीप-अर्चना, आनंद-मोनिका सुराणा परिवार ने गाजे-बाजे के साथ चिकपेट मंदिर पहुॅचे।सत्तरभेदी पूजा महत नौवीं पूजा में विधि-विधान एवं आचार्यों के वासक्षेप द्वारा हर्षाल्लास से ऊँ पुण्याहां पुण्याहां प्रियताम प्रियताम आदि मंत्रोच्चार के जयघोष के साथ मंदिरजी के शिखर पर ध्वजारोहण शुभ मुर्हत में किया गया। आचार्य श्री चन्द्रभूषण सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि ध्वजारोहण का लाभ सुराणा परिवार ने लिया, पुण्यशाली परिवार को ही ऐसे लाभ मिलते हैं, साथ ही ध्वजारोहण के समय उपस्थित श्रद्धालुओं को भी पुण्य मिलता हैं। आचार्य श्री जिनसुन्दरसुरीजी ने कहा आज के वास्तुपाल-तेजपाल जैसे दिलीपभाई-आनन्दभाई को सम्बोधित करते हुए प्रेरणा दी कि जब तक संयम न मिले तब तक कोई वस्तु का त्याग करे खुद संयम न ले सकें तो १०८ दीक्षार्थी को दीक्षा दिलवाएं, सभी ने एक वस्तु के त्याग का पच्चखान लिया। संघ अध्यक्ष प्रकाशजी राठोड ने सबका स्वागत किया। सचिव अशोक संघवी ने विचार व्यक्त किए, इस अवसर बाबुलालजी पारेख, गौतमजी सोलंकी, भंवरलालजी कटारिया, देवकुमार के. जैन सहित अनेक ट्रस्टीगण श्रद्धालु उपस्थित थे। पूजा श्री विजयलब्धि जैन संगीत मंडल द्वारा व्यवस्था श्री आदिनाथ जैन सर्वोत्तम सेवा मंडल द्वारा विधि विधान सुरेन्द्र सी.शाह गुरूजी, प्रवीण गुरूजी द्वारा करवाया गया। – देवकुमार के. जैन कर्नाटक में मिली अद्भुत एवं अलौलिक जैन प्रतिमा हलिंगली (कर्नाटक): हलिंगली में खुदाई के दौरान प्राचीन जैन प्रतिमा प्राप्त भगवान आदिनाथजी व भगवान महावीर जी की संयुक्त आधा बैलमुख व आधा शेरमुख चिन्ह युक्त लगभग दूसरी या तीसरी सदी की भारत में पहली बार इस तरह की ‘आदिवीर’ भगवान की प्राचीन प्रतिमा मिली है, इससे पूर्व में भी यहां से प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त हो चुकी है। संभवत: यहां प्राचीन समय में विशाल जिनालय होगा, इसी स्थान से एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ था जिसमें आचार्य भद्रबाहु के साथ चंद्रगुप्त मौर्य उत्तर से दक्षिण भारत की और विहार करते समय चातुर्मास किए जाने का उल्लेख है। सूचना प्रदाता-संजय जैन आचार्य कुलरत्नभूषण महाराज के अनुसार इसके पहले भी यहां पर १६ पुरानी प्रतिमा मिल चुकी हैं और वो सारी प्रतिमा आचार्य श्री कुलरत्न भूषण अतिशयकारी प्रतिमा है जिसको आदिवीर भगवान के नाम से जाना जाता है। जय हो आदिवीर भगवान की! जय हो कुलरत्न भूषण मुनिराज की! झारखंड के मुख्यमंत्री जैन मुमुक्षुओं को आशीर्वाद देगें मुंबई: झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवरदास ने जैन धर्म के ४० अनुयायियों (मुमुक्षु) को अपने आवास पर आमंत्रित किया, वे अनुयायी जैन धर्म के अनुसार संसार को त्यागकर मार्च २०१९ में मुंबई में सामूहिक दीक्षा लेंगे। झारखंड के मुख्यमंत्री की जैन धर्म के अनुयायियों के साथ संयुक्त रूप से बैठक करीब २ घंटे चली, जिसके बाद उन्होंने सभी अनुयायियों का सम्मान किया। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने धर्म के प्रमुख सिद्धांतों, संयम, तप, त्याग की सराहना की, जो दीक्षा की बुनियाद है, उन्होंने ४० मुमुक्षुओं का सम्मान करते हुए झारखंड सरकार की ओर से बधाई पत्र और सफ़ेद रंग की साटन की वेशभूषा दी, उन्होंने जैन धर्म के अनुयायियों को झारखंड सरकार की ओर से सामूहिक दीक्षा लेने के लिए और उनके गुरुदेव जैनाचार्य जिनचंद्र सूरी जी और जैनाचार्य श्री योगतिलक सूरीजी को शुभकामनाएं दी, सभी दीक्षार्थियों (मुमुक्षुओं) के लिए मुख्यमंत्री के आवास पर भोजन तैयार किया गया था, भोजन को जैन धर्म सिद्धांतों के अनुसार परोसा गया। आध्यात्म परिवार की ओर से शासनरत्न हितेश भाई मोटा ने झारखंड सरकार और मुख्यमंत्री को पवित्र तीर्थ श्रीसमेतशिखरजी की पवित्रता बनाए रखने के लिए धन्यवाद दिया। जैन धर्म की दीक्षा और धर्म के प्रति अत्यधिक सम्मान प्रदर्शित करने और जैनधर्म की विचारधारा का संज्ञान लेने के लिए उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया, द्वय गुरुवर ने मुख्यमंत्री को मुंबई में १३ मार्च २०१९ को होने वाली ४० सामूहिक दीक्षा में भाग लेने और अपना आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया। बेंगलोर में जे.सी.आई द्वारा बहुमान बेंगलोर: बसवनगुडी स्थित ऋषभ गोयम कृपा पर जूनीयर चेम्बर इन्टरनेशनल (जे.सी.आई) बेंगलोर द्वारा डायरेक्टर सुरेशकुमार देवकुमारजी गादिया का बहुमान कर मोमेन्टों भेंट दिया गया। जे.सी. आई. में गत वर्ष के दौरान कम्यूनिटी डेवलपमेन्ट, बिजनेश डेवलपमेन्ट, न्डिवीयन डेवलपमेन्ट कार्यक्रमों के दौरान जिन-जिन बोर्ड मेम्बरों का सहयोग सराहनिय रहा, उनको प्रोत्साहन हेतु बहुमान कर मोमेन्टो दिया जाता है, इस अवसर पर देवकुमार के. जैन, जे.एफ.सी. अध्यक्ष मुकेश भंडारी, जेसीआई (सीडी) उपाध्यक्ष राकेश मेहता, जेसीआई (लोभ) उपाध्यक्ष ऋषभ पनानी, डाईरेक्टर अंकीत जैन सहित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। – देवकुमार के. जैन विलुप्त होता जैन इतिहास अढाई दिन का झोपड़ा- राजस्थान, अजमेर में स्थित मस्जिद, इसका निर्माण मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने वर्ष ११९२ में किया था, जिसके लिए एक भव्य जैन मंदिर तोड़ा गया था। कुतुबमीनार-ईसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ में शुरू करवाया था, इसके पूर्व दरवाजे पर एक पर्शियन लेख है जिसमें लिखा है कि २७ हिंदू और जैन मंदिर तोड़कर कुतुब मीनार बनाया गया है। टिपू सुलतान द्वारा केरल पर आक्रमण कर ध्वस्त किया गया जैन मंदिर, गांव- पन्नमारम, जिला- वायनाड, केरल। जामा मस्जिद- दौलताबाद स्थित एक मस्जिद, इसका निर्माण १३१८ में जैन मंदिर तोड़कर किया गया था। देवल मस्जिद, निजामाबाद-९ वीं सदी में मूहम्मद बिन तुगलक द्वारा जैन मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद जैन धर्म का सुरक्षात्मक भविष्य के लिए जैन एकता जरूरी -बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’ गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ तप प्रतापगढ़ शहर में जैन श्राविका ने १३१ दिन तक उपवास कर अपना नाम गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्जा करवाया, प्रतापगढ़ में चिपढ़ परिवार की बहू मोनिका ने ४ माह और ११ दिनों तक कुछ नहीं खाया, वे सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले गर्म पानी पर आश्रित रही, इस रिकॉर्ड तपस्या के लिए उनका नाम गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज किया गया है, इसके पहले यह कीर्तिमान रतलाम की निर्मला नाहर के नाम था, जिन्होंने १२५ उपवास की तपस्या की थी।विभिन्न सामाजिक संगठनों और धार्मिक संगठनों की ओर से तपस्वी ३२ वर्षीय मोनिका का अभिनंदन किया गया। साधुमार्गी जैन श्रावक संघ की ओर से आयोजित किए गए कार्यक्रम में बड़ी संख्या में रतलाम, नीमच, मंदसौर, दिल्ली, मुंबई, जयपुर आदि स्थानों से आए जैन धर्मावलंबियों ने भाग लिया। तप अभिनंदन समारोह के कार्यक्रम में अतिरिक्त जिला कलक्टर हेमेंद्र नागर, नगर परिषद सभापति कमलेश डोसी सहित कई जैन संघों के प्रतिनिधि मौजूद थे। अतिरिक्त जिला कलक्टर हेमेंद्र नागर ने इस मौके पर कहा कि संख्या गिनना भी भारी लगता है ऐसे मे मोनिका की ओर से इस प्रकार के तप की आराधना करना वास्तव में तपस्या की पराकाष्ठा है। गौरतलब है कि जैन धर्म में तपस्या का विशेष महत्त्व है १०,२०,३० दिनों की उपवास की तपस्या कई श्रद्धालु करते रहते हैं, लेकिन इतनी लंबी तपस्या अपने आप में एक कीर्तिमान है।आस्था का प्रभाव : इस मौके पर मौजूद गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्डस के प्रतिनिधी मनोज शुक्ला ने कंपनी की ओर से प्रमाण पत्र दिया, उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस के मुताबिक इस तरह निराहार रहकर तपस्या करना शरीर को काफी कमजोर करता है, लेकिन इसे आस्था और धर्म का प्रभाव ही कहा जा सकता है कि इतने दिन भूखे रहकर भी स्वस्थ रहा जा सकता है।

भारतीय भाषायी संस्कृति के प्रेमी

श्रमणाकाश के ध्रुवतारे वर्तमानयुग के ज्येष्ठ-श्रेष्ठ जैनाचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी मुनिराज का पावन व्यक्तित्व पूर्व नाम : श्री विद्याधर अष्टगेजन्म स्थान : सदलगा, जिला बेलगाँव (कर्नाटक)जन्म तिथि : शरदपूर्णिमा, १० अक्टूबर १९४६पिता : श्री मल्लप्पा अष्टगेमाता : श्रीमती श्रीमन्ती अष्टगेमातृभाषा : कन्नड़शिक्षा माध्यम : कन्नड़मुनि दीक्षा : आषाढ शुक्ल पंचमी, ३० जून १९६८ अजमेर (राज.)दीक्षागुरू : महाकवि दिगम्बराचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराजआचार्य पद : २२ नवम्बर १९७२, नसीराबाद अजमेरभाषा ज्ञान : कन्नड़, मराठी, हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, अंग्रेजी, बंगलावैशिष्ट्य : धर्म-दर्शन विज्ञ, साहित्यकार, सिद्धान्तवेत्ता, आध्यात्मिक प्रवचनकार, भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ, राष्ट्रीय चिन्तक, जैन मुनि संहिता के तपस्वी साधकसफल प्रेरक : आपकी प्रेरणा से माता-पिता, दो छोटे भाई, दो छोटी बहिनें भी मोक्षमार्ग के साधक बने एवं सहस्त्राधिक उच्चशिक्षित बाल ब्रह्मचारी, शिष्य-शिष्याएँ मोक्षमार्ग में संलग्न हुए। आचार्य श्री विद्यासागर अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर की दार्शनिक पीठिका पर अनेक जैनाचार्यों ने समय-समय पर जीवन विज्ञान से सम्बन्धित अनेक विध काव्य, कलाविधाओं से संपोषित साहित्य रचकर भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान दी है। उसी परम्परा में २०वीं-२१वीं शताब्दी के साहित्य जगत में एक नये उदीयमान नक्षत्र के रूप में जाने-पहचाने जाने वाले शब्दों के शिल्पकार, अपराजेय साधक, तपस्या की कसौटी, आदर्श योगी, ध्यानध्याता-ध्येय के पर्याय, कुशल काव्य शिल्पी, प्रवचन प्रभाकर, अनुपम मेधावी, नव-नवोन्मेषी प्रतिभा के धनी, सिद्धांतागम के पारगामी, वाग्मी, ज्ञानसागर के विद्याहंस, प्रभु महावीर के प्रतिबिंब, महाकवि, दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी की आध्यात्मिक छवि के कालजयी दर्शन, दर्शक को आनंद से भर देता है। सम्प्रदाय मुक्त भक्त हो या दर्शक, पाठक हो या विचारक, अबाल-वृद्ध, नर-नारी उनके बहुमुखी चुम्बकीय व्यक्तित्व-कृतित्व को आदर्श मानकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने आपको धन्य मानते हैं। माता-पिता की द्वितीय सन्तान किन्तु अद्वितीय कन्नड़ भाषी बालक विद्याधर की होनहार छवि को देख पिताजी ने कन्नड़ भाषा के विद्यालय में पढ़ाया। हिन्दी-अंग्रेजी भी सीखी, आत्मा के दिव्य आध्यात्मिक संस्कार वयवृद्धि के साथ-साथ स्वयं जागृत होने लगे। ९ वर्ष की उम्र में जैनाचार्य शान्तिसागर जी के कथात्मक प्रवचनों से वैराग्य का बीजारोपण हुआ और धर्म-अध्यात्म में रूचि बढ़ती गई तथा २० वर्ष की उम्र में घर-परिवार के परित्याग का कठिन असिधारा व्रत ले निकल पड़े शाश्वत सत्य का अनुसन्धान करने के लिए़… राजस्थान प्रान्त के अजमेर जिले के उपनगर मदनगंज-किशनगढ़ में सन् १९६७ मई/जून माह में नियति ने भ्रमणशील पगथाम लिए और पुरूषार्थी युवा ब्रह्मचारी गौरवर्णी ज्ञानपिपासु विद्याधर अष्टगे को मिला दिया ज्ञानमूर्ति चारित्र विभूषण महाकवि महामुनिराज से। ज्ञानसागर जी गुरूभक्ति-समर्पण से गुरूकृपा का प्रसाद पाकर ३० जून १९६८ को अजमेर में सर्व पराधीनता को छोड़ दिगम्बर मुनि बनकर शाश्वत सत्य की अनुभूति में तपस्यारत हो गए। जो धरती/काष्ठ के फलक पर आकाश को ओढ़ते हैं। यथाजात बालकवत् निर्विकारी, अनियत विहारी, अयाचक वृत्ति के धनी, भक्तों के द्वारा दिन में एक बार दिया गया बिना नमक-मीठे के, बिना हरी वस्तु के, बिना फल-मेवे के सात्विक आहार दान ही लेते हैं, वो भी मात्र ज्ञान-ध्यान-तप-आराधना के उद्देश्य से। अहिंसा धर्म की रक्षार्थ अहर्निश सजग, करूण ह्य्दयी मुनिवर श्री जी संयम उपकरण के रूप में सदा कोमल मयूर पिच्छी साथ रखते हैं, जिससे अपनी क्रियाओं में मृदु परिमार्जन करके जीवनदया पालन से सह-अस्तित्व का आदर्श उपस्थित कर रहे हैं एवं शुचिता हेतु नारियल के कमण्डल के जल का उपयोग करते हैं, इसके अतिरिक्त तृणमात्र परिग्रह भी नहीं रखते। आपकी स्वावलम्बी, निर्मोही, समता, सरलता, सहिष्णुता की पराकाष्ठा के जीवन दर्शन प्रत्येक दो माह में दाढ़ी-मूंछ-सिर के केशों को हाथों से घास-फुंस के समान उखाड़कर अलग करते हैं। आप अस्नानव्रत संकल्पी होने के बावजूद, ब्रह्मचर्य की तपस्या से आपने तन-मन वचन सदा पवित्र-सुगन्धित दैदीप्यतान रहते हैं। आपकी साधना-ज्ञान-चिन्तन गुरू के द्वारा दिए गए नाम-पद के सार्थक संज्ञा के पर्याय बन गए हैं। अलौकिक कृतित्व: ऐसे दिव्य आचार-विचार-मधुर व्यवहार से आचार्य शिरोमणि की जीवन रूपी किताब का हर पन्ना स्वर्णिम भावों एवं शब्दों से भरा हुआ है, जिसे कभी भी कहीं भी कितना ही पढ़ो व्यक्ति थकता नहीं, उनको पढ़ने वाला यही कहते पाया जाता है कि आचार्य श्री जी के दिव्य दर्शन करते वक्त नजर हटती नहीं-उठने का मन नहीं करता, ऐसा लगता है मानो प्रभु महावीर जीवन्त हो उठे हों। यही कारण है कि आपके दिव्य तेजोमय आभा मण्डल के प्रभाव से उच्च शिक्षित युवा-युवतियाँ जवानी की दहलीज पर आपश्री के चरणों में सर्वस्व समर्पण कर बैठे, जिनमें भारत के १० राज्यों के युवक-युवतियों में करीब १२० दिगम्बर मुनि, १७२ आर्यिकाएँ (साध्वियाँ), ६४ क्षुल्लक (साधक), ३ क्षुल्लिका (साध्वियाँ), ५६ ऐलक (साधक) को दीक्षा देकर मानव जन्म की सार्थक साधना करा रहे हैं। इनवे अतिरिक्त आपके निर्देशन में  सहस्त्राधिक बाल ब्रह्मचारी भाई-बहन साधना के क्रमिक सोपानों पर साधना को साध रहे हैं एवं आपश्री  के निर्यापकाचार्यत्व में ३० से अधिक साधकों ने जीवन की संध्या बेला में आगमयुक्त विधि से सल्लेखना पूर्वक समाधि धारण कर जीवन के उद्देश्य को सार्थक किया है। महापुरूष का सार्वभौमिक कृतित्व:- ज्ञान-ध्यान-तप के यज्ञ में आपने स्वयं को ऐसा आहूत किया कि अल्पकाल में ही प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंश-हिंदी-अंग्रेजी-मराठी-बंगाली-कन्नड़ भाषा के मर्मज्ञ साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए।अपने प्राचीन जैनाचार्यों के २५ प्राकृत-संस्कृत ग्रन्थों का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद कर पाठक को सरसता प्रदान की है-१. समयसार (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद२. प्रवचनकार (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद३. नियमसार (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद४. पञ्चास्तिकाय (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद५. अष्टपाहुड (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद६. बारसाणुवेक्खा (प्राकृत आ. कुन्दकुन्द स्वामी कृत) पद्यानुवाद७. समयसार कलश (संस्कृत, अमृतचंदाचार्य कृत) पद्यानुवाद८. इष्टोपदेश प्र. (संस्कृत, आ. पूज्यपाद कृत) बसंततिलका पद्यानुवाद९. इष्टोपदेश द्वि. (संस्कृत, आ. पूज्यपाद कृत) ज्ञानोदय पद्यानुवाद१०. समाधिशतक (संस्कृत, आ. पूज्यपाद कृत) पद्यानुवाद११. नव भक्तियाँ (संस्कृत, आ. पूज्यपाद कृत) पद्यानुवाद१२. स्वयंभूस्त्रोत (संस्कृत, आ. समन्तभद्र कृत) पद्यानुवाद१३. रत्नकरण्डक श्रावकाचार ((संस्कृत, आ. समन्तभद्र कृत) पद्यानुवाद १४. आप्त मीमांसा (संस्कृत, आ. समन्तभद्र कृत) पद्यानुवाद१५. आप्तपरीक्षा (संस्कृत, आ. समन्तभद्र कृत) पद्यानुवाद१६. द्रव्य संग्रह प्र. (प्राकृत, आ. नेमिचन्द्र कृत) बसंततिलका पद्यानुवाद१७. द्रव्य संग्रह द्वि. (प्राकृत, आ. नेमिचन्द्र कृत) ज्ञानोदय पद्यानुवाद१८. गोम्मटेश अष्टक (प्राकृत, आ. नेमिचन्द्र कृत) पद्यानुवाद१९. योगसार (अपभ्रंश, आ. योगेन्द्रदेव कृत) पद्यानुवाद२०. समणसुत्तं (प्राकृत, संस्कृत, जिनेद्रवर्णी द्वारा संकलित) पद्यानुवाद२१. कल्याणमन्दिर स्तोत्र (संस्कृत, आ. कुमुदचन्द्र कृत) पद्यानुवाद२२. एकीभाव स्तोत्र (संस्कृत, आ. वादीराज कृत) पद्यानुवाद२३. जिनेन्द्र स्तुति (संस्कृत, पात्र केसरी कृत) पद्यानुवाद२४. आत्मानुशासन (संस्कृत, आ. गुणभद्र कृत) पद्यानुवाद२५. स्वरूप सम्बोधन (संस्कृत, आ. अकलंक कृत) पद्यानुवाद२) आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रेरणादायक युवप्रवर्तक महाकाव्य ‘मूकमाटी’ का सर्जन कर साहित्य जगत् में चमत्कार कर दिया है। जिसे साहित्यकार ‘फ्यूचर पोयॅट्री’ एवं श्रेष्ठ दिग्दर्शक के रूप में मानते हैं। विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र को सपाट बयानी, अज्ञेय का शब्द विन्यास, निराला की छन्दसिक छटा, पन्त का प्रकृति व्यवहार, महादेवी की मसृण गीतात्मकता, नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की पैंâटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह ‘मूकमाटी’ में देखी जा सकती है। सम्प्रति साहित्य जगत् ‘मूकमाटी’ महाकाव्य को नये युग का महाकाव्य के रूप में समादृत करता है, यही कारण है कि ‘मूकमाटी’ महाकाव्य के दो अंग्रेजी रूपान्तरण, दो मराठी रूपान्तरण, एक कन्नड़, एक बंगला, एक गुजराती रूपान्तरण हो चुका है एवं उर्दू व जापानी भाषा में अनुवाद का कार्य चल रहा है। प्राकृत महाकाव्य पर अनेकों स्वतन्त्र आलोचनात्मक ग्रन्थों के अतिरिक्त ४डी. लिट्, २२ पी.एच.डी., ७ एम.फिल के शोधप्रबन्ध तथा २ एम.एड. और ६ एम.ए. के लघु शोध प्रबन्ध लिखे जा चुके/रहे हैं। इस कालजयी कृति पर अब तक भारत के विख्यात ३०० से अधिक समालोचकों ने आलोचन-विलोचन किया है तथा उस अपूर्व साहित्यिक सम्पदा को प्रसिद्ध विद्वान डॉ. प्रभाकर माचवे एवं आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के सम्पादकत्व में ‘‘मूकमाटी मीमांसा’’ नामक ग्रन्थ के रूप में पृथक्-पृथक् तीन खण्डों में भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन ने प्रकाशित किए हैं। ३) आपने नीति-धर्म-दर्शन-अध्यात्म विषयों पर संस्कृत भाषा में ७ शतकों और हिन्दी भाषा में १२ शतकों का सर्जन किया है, जो पृथक्-पृथक् एवं संयुक्त रूप से प्रकाशित हुए हैं- संस्कृत शतकम्-१. श्रमण शतकम्, २. निरंजन शतकम्, ३. भावना शतकम्, ४. परीषहजय शतकम्, ५. सुनीति शतकम्, ६. चैतन्य चन्द्रोदय शतकम्, ७. धीवरोदय शतकम् हिन्दी शतक – १. निजानुभव शतक, २. मुक्तक शतक, ३. श्रमण शतक, ४. निरंजन शतक, ५. भावना शतक, ६. परीषहजय शतक, ७. सुनीति शतक, ८. दोहादोहन शतक,पूर्णोदय शतक, १०. सूर्योदय शतक, ११. सर्वोदय शतक१२. जिनस्तुति शतक ४) आपके शताधिक अमृत प्रवचनों के ५० संग्रह ग्रन्थ भी पाठकों के लिए उपलब्ध हैं एवं त्रिसहस्त्राधिक प्रवचनावली अप्रकाशित हैं।  आपके द्वारा विरचित हिन्दी भाषा में लघु कविताओं के चार संग्रह ग्रन्थ- ‘‘नर्मदा का नरम वंâकर, तोता क्यों रोता, डूबो मत लगाओ डुबकी, चेतना के गहराव में’’ ये प्रकाशित कृतियाँ साहित्य जगत् में काव्य सुषमा को विस्तारित कर रही हैं। ६) आपने संस्कृत, हिन्दी के अतिरिक्त कन्नड़, बंगला, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में भी काव्य रचनाओं का सर्जन किया है, साथ ही ‘‘आचार्य शान्तिसागर जी, आचार्य वीरसागर जी, आचार्य शिवसागर जी, आचार्य ज्ञानसागर जी’’ की परिचयात्मक स्तुतियों की रचना एवं संस्कृत, हिन्दी में शारदा स्तुति की रचना की है।७) आपने जापानी छन्द की छायानुसार सहस्त्राधिक हाईकू (क्षणिकाओं) का सर्जन कर साहित्य क्षेत्र में अपनी अनोखी प्रतिभा के प्रातिभ से परिचय कराया है। राष्ट्रीय विचार सम्प्रेरक और सम्पोषक के रूप में प्रसिद्ध आचार्य श्री जी ने अपने विचारों से, भारती संस्कृति के गौरव को बढ़ाया है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, गुजरात आदि प्रदेशों की लगभग ५० हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर राष्ट्रीयता एवं मानवता की पहरेदारी में कदम-दर-कदम आदर्श पदचिह्नों को स्थापित किया है। आपकी अनेकान्ती स्याद्वादमयी वाणी सम्प्रेरित करती है- (क) भारत में भारतीय शिक्षा पद्धति लागू हो। (ख) अंग्रेजी नहीं भारतीय भाषा में हो व्यवहार। (ग) छात्र-छात्राओं की शिक्षा पृथक्-पृथक् हो (घ) विदेशी गुलामी का प्रतीक ‘इण्डिया’ नहीं, हमें गौरव का प्रतीक ‘भारत’ नाम देश का चाहिए (ड) नौकरी नहीं व्यवसाय करो (च) चिकित्सा: व्यवसाय नहीं सेवा बनें (छ) स्वरोजगार को सम्बद्र्धित करो (ज) बैंकों के भ्रमजाल से बचो और बचाओ (झ) खेतीबाड़ी सर्वश्रेष्ट (ञ) हथकरघा स्वावलम्बी बनने का सोपान (ट) भारत की मर्यादा साड़ी (ठ) गौशालाएँ जीवित कारखाना (ड) माँस निर्यात देश पर कलंक (ढ़) शत-प्रतिशत मतदान हो (ण) भारतीय प्रतिभाओं का निर्यात रोका जाए, आदि। उपरोक्त ज्वलन्त प्रासंगिक विषयों पर जब आपकी दिव्य ओजस्वी वाणी प्रवचन सभा में शंखनाद करती है तब सहस्त्राधिक श्रोतागण करतल ध्वनि के साथ विस्तृत पाण्डाल को जयकारों से गुंजायमान कर पूर्ण समर्थन कर परिवर्तन चाहते हैं। अहिंसा के पुजारी आचार्य श्री का दयालु ह्य्दय तब सिसक-सिसक उठा जब उन्होंने देखा कृषि प्रधान अहिंसक देश में गौवंश आदि पशुधन को नष्ट कर माँस निर्यात किया जा रहा है तब उन्होंने हिंसा के ताण्डव के बीच अहिंसा का शंखनाद किया- गोदाम नहीं-गौधाम चाहिए। भारत अमर बने-अहिंसा नाम चाहिए। घी-दूध-मावा निर्यात करो। राष्ट्र की पहचान बने ऐसा काम चाहिए। जो हिंसा का विधान करे, वह सच्चा संविधान सार नहीं। जो गौवंश काट माँस निर्यात करे, वह सच्ची सरकार नहीं।। १) अहिंसा के विचारों को साकार रूप देने के लिए आपने प्रेरणा दी-आशीर्वाद प्रदान किया, फलस्वरूप भारत के पाँच राज्यों में ७२ गौशालाएँ संचालित जिनमें अद्यावधि एक लाख से अधिक गौवंश को कत्लखानों में कटने से बचाया गया। २) प्रदूषण के युग में बीमारियों का अम्बार और व्यावसायिक चिकित्सा के विकृत स्वरूप के कारण गरीब-मध्यम वर्ग चिकित्सा से वंचित रहने लगा तो इस अव्यावहारिक परिस्थिति से आहत-दयाद्र्र आचार्य श्री की पावन प्रेरणा से सागर (म.प्र.) में ‘‘भाग्योदय तीर्थ धर्मार्थ चिकित्सालय’’ की स्थापना हुई। ३) सुशासन-प्रशासन के लिए सर्वोदयी राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत आचार्य श्री जी की लोकमंगल दायी प्रेरणा से पिसनहारी मढ़ियारी जबलपुर एवं दिल्ली में ‘‘प्रशासनिक प्रशिक्षण केन्द्र’’ की स्थापना हुई। ४) बालिका शिक्षा ने जोर पकड़ा किन्तु व्यावसायिक संस्कार विहीन शिक्षण ने युवतियों को दिग्भ्रमित कर कुल-परिवार-समाज-संस्कृति के संस्कारों से रहित सा कर दिया, ऐसी दु:खदायी परिस्थिति को देख आचार्य श्री जी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से देश-समाज के समक्ष आधुनिक एवं संस्कारित शिक्षा के तीन आदर्श विद्यालय स्थापित किए गए- ‘‘प्रतिभा स्थली’’, जबलपुर (म.प्र.), डोंगरगढ़ (छ.ग.), रामटेक (महाराष्ट्र) इसके अतिरिक्त जगह-जगह छात्रावास स्थापित किए गए जिनमें जयपुर, आगरा, हैदराबाद, इन्दौर, जबलपुर आदि हैं। ५) गरीब एवं विधवाओं की तंगस्थिति देख करूणाशील आचार्य श्री जी की सुप्रेरणा से जबलपुर (म.प्र.) में लघु उद्योग ‘पूरी मैत्री’ संचालित किया गया। ६) विदेशी कम्पनियों के मकड़जाल ने स्वदेशी उद्योगों को समाप्त किया, फलितार्थ करोड़ों लोग बेरोजगार हुए और उनके समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हुआ। देश का जीवन विपत्तीग्रस्त अशांत, दु:खी देख, आचार्य श्री जी द्रवीभूत हो उठे और गाँधी जी के द्वारा सुझाये गये स्वदेशी अहिंसक आजीविका ‘हथकरघा’ की प्रेरणा दी जिससे समाज ने महाकवि पं. भूरामल सामाजिक सहकार न्यास हथकरघा प्रशिक्षण केन्द्र की अनेकों स्थानों पर शाखाएँ खोली गई जिनमें बीना बारह, कुण्डलपुर, मण्डला, अशोकनगर, भोपाल आदि प्रमुख हैं तथा आचार्य ज्ञानविद्या लोक कल्याण हथकरघा केन्द्र मुंगावली के अन्तर्गत-मुंगावली, गुना, आरोन आदि स्थानों पर हथकरघा शाखाएँ खोली गई । १. आचार्यश्री जी की दूरदर्शिता ने जैन संस्कृति को हजारों-हजार साल के लिए जीवित बनाए रखने हेतु प्राचीन मन्दिरों की पाषाण निर्मित शैली को ही अपनाने की बात कही। आचार्य भगवन् के ऐतिहासिक सांस्कृतिक चिंतन से प्रभावित होकर उनकी प्रेरणा से अनेक स्थानों की समाजों ने पाषाण से भव्य विशाल जिनालयों के निर्माण हेतु आचार्यश्री जी के ही पावन सानिध्य में शिलान्यास किए- १. गोपालगंज, जिला-सागर (म.प्र.) २. सिलवानी, जिला-रायसेन (म.प्र.) ३. टड़ा, जिला-सागर (म.प्र.) ४. नेमावर, जिला-देवास (म.प्र.) ५. हबीबगंज, भोपाल (म.प्र.) ६.तेंदूखेड़ा, जिला-दमोह (म.प्र.), ७. देवरी कलाँ, जिला-सागर (म.प्र., ८. रामटेक, जिला-नागपुर (महा.), ९. इतवारी, नागपुर (महा.), १०. विदिशा (म.प्र.), ११. नक्षत्र नगर, जबलपुर (म.प्र.), १२. डिंडौरी (म.प्र.) २. आवश्यकतानुसार समय की माँग को देखते हुए कई नए तीर्थों की परिकल्पना को आचार्यश्री जी ने मूर्तस्वरूप प्रदान करने हेतु प्रेरणा एवं आशीर्वाद प्रदान किया। फलस्वरूप नए तीर्थों का जन्म हुआ- १. सर्वोदय तीर्थ, अमरकंटक , जिला-शहडोल (म.प्र.) २. भाग्योदय तीर्थ, सागर (म.प्र.) ३. दयोदय तीर्थ, जबलपुर (म.प्र.) ४. सिद्धक्षेत्र सिद्धोदय, नेमावर, जिला-देवास (म.प्र.) ५. अतिशय क्षेत्र चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ (छ.ग.) ३. आचार्य भगवन् ने जिन तीर्थों पर चातुर्मास, ग्रीष्मकालीन या शीतकालीन प्रवास किया। वहाँ पर जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया- १. अतिशय तीर्थक्षेत्र कोनी जी, जिला-जबलपुर (म.प्र.) २. सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर, जिला-दमोह (म.प्र.) ३. अतिशय तीर्थक्षेत्र बीना जी बारहा, सागर (म.प्र.) ४. अतिशय तीर्थक्षेत्र पटनागंज, रहली, सागर (म.प्र.) आपकी दिव्य दया के अनेकों सत्कार्य समाज में प्रतिफलित हो रहे है।

भारत के जैन तीर्थ: राजस्थान

सवाई मोधापुर सवाई मोधापुर : सवाईमाधोपुर नगर में १० दिगम्बर जैन मंदिर है, इनमें नौ सौ से अधिक प्रतिमाएं हैं, अकेले दीवानजी के मंदिर में पांच सौ से अधिक प्रतिमाएं है। रणथंभौर: सवाईमाधोपुर से लगभग १० किमी पर रथथम्भौर का ऐतिहासिक किला है, इस किले में एक प्राचीन मंदिर है, जिसकी प्रतिमा को विक्रत संवत १० का बताया जाता है। शेरपुर: रणथम्भौर से ३-४ किमी की दूरी पर शेरपुर है। यहां जैन मंदिर है, इसमें मूलनायक प्रतिमा भगवान पाश्र्वनाथ की है, यह विक्रम संवत् १५ की बताई जाती है, यहां के अतिशयों की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। खंडार : शेरपुर से ८-९ किमी आगे खंडार है, यह भी एक अतिशय क्षेत्र है। पहाड़ पर प्राचीन जिन मंदिर है, यहां चट्टानों पर डेढ़ मीटर अवगाहना की चार प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, ये विक्रम संवत २० से ३० तक की बताई जाती है। श्री महावीरजी (चांदनपुर): यह अतिशय क्षेत्र है, पश्चिम रेलवे भरतपुर और गंगापुर स्टेशनों के बीच ‘श्री महावीरजी’ स्टेशन है, यहां प्राय: सभी गाड़ियां रुकती है, ग्राम का नाम चांदनपुर है और यहां के मंदिर की ओर से निशुल्क बस सेवा है, यहां विशाल दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसमें टीले से प्राप्त भगवान महावीर की दसवीं शताब्दी की मनोज्ञ प्रतिमा मूलनायक है और भी कई देवियां हैं। मूल मंदिर के नीचे ध्यान केन्द्र में हीरे-पन्ने आदि की लगभग २०० प्रतिमा दर्शनीय हैं, प्रतिमाओं का यह संग्रह बेजोड़ है, इस क्षेत्र की बड़ी मान्यता है, बड़ी संख्या में यात्री प्राय: वर्ष भर यहां दर्शन को आते हैं। जैनों के अलावा मीणा, गूजर, जाट आदि बड़ी संख्या में भगवान के दर्शन करने आते हैं, यहां ब्रह्यचारिणी कमलबाईजी द्वारा स्थापित महाविद्यालय है, जिसमें कक्षा एक से स्नातकोत्तर की शिक्षा दी जाती है, इस विद्यालय में समीपवर्ती सभी जातियों की लड़कियां शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को आदर्श जीवन बनाती हैं। छात्रावास में कांच के मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की अनुपम प्रतिमा है। प्राकृतिक चिकित्सालय के पास कृष्णबाई द्वारा स्थापित भव्य दिगम्बर जैन मंदिर और शिक्षण संस्था है। नदी के दूसरी ओर शांतिवीर नगर है जहां भगवान शांतिनाथ की लगभग ९ मीटर ऊंची प्रतिमा और तीर्थंकरों की मूर्तियां है, जैन गुरुकुल और कीर्तिस्तंभ भी हैं, मुख्य मंदिर के पीछे की ओर भगवान की चरण छतरी है, यहां से भगवान महावीर की वह मूर्ति निकली थी जो इस मंदिर में विराजमान है, इस मूर्ति की भव्यता अन्यात्र नहीं मिलती है, क्षेत्र पर सुविधायुक्त आवास और भोजन व्यवस्था उपलब्ध है। जयपुर: जयपुर राजस्थान की राजधानी है, यह गुलाबी शहर (पिंक सिटी) के रूप में प्रसिद्ध है। इस नगर का निर्माण महाराज सवाई जयसिंह ने कराया था। राजनैतिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक, व्यापारिक सभी दृष्टियों से जयपुर जैनों का प्रमुख वेंâद्र रहा है। नगर में ४५० से अधिक चैत्यालय और मंदिर हैं, इनमें पटौदी का मंदिर, चौबीस महाराज का मंदिर, कालडेरा और महावीर मंदिर बड़े मंदिर हैं। सिरमोरियों का मंदिर कलापूर्ण रचना के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर विख्यात विद्वान पं. टोडरमलजी, पं. दौलतरामजी, पं काशीलालजी, पं सदासुखजी, पं. जयचंद्र छावड़ा की नगरी रही है। भारत विभाजन के बाद मुल्तान के जैनबंधु अपने साथ बड़ी कठिनाई पूर्वक जैन मूर्तियां लाए थे, इन मंदिर का निर्माण कराकर उन्होंने वे ही मूर्तियां यहां प्रतिष्ठापित की हैं, जयपुर के निकट आमेर और सांगानेर में भी दर्शनीय दिगम्बर जैन मंदिर है। चूलगिरि : जयपुर नगर से लगभग ३ किमी दूर खानियां में राणाओं की नसियां के पास पहाड़ पर चूलगिरि पाश्र्वनाथ मंदिर है, यह जैनों का तीर्थ और अतिशय क्षेत्र है, मंदिर में अनेक टोंक और वेदियां हैं। मंदिर तक सड़क व सीढ़ियां बनी हैं। आवास की व्यवस्था है। पदमपुरा (वाड़ा) : जयपुर से खानिया-गोनेर होते हुए पदमपुरा २४ किमी की दूरी पर है। शिवदासपुरा रेलवे स्टेशन से क्षेत्र ६ किमी है। पदमपुरा (वाड़ा) अतिशय क्षेत्र है। कहा जाता है कि छोटे से गांव बाड़ा में एक व्यक्ति को भैरोंजी की सवारी आती थीं, बाड़ा में गंभीर जल संकट था, एक दिन उस व्यक्ति से लोगों ने पूछा कि गांव का जल संकट कब दूर होगा, जब भूगर्भ से बाबा की चमत्कारी मूर्ति निकलेगी उस व्यक्ति का उत्तर था।  

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