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Jinagam Magazine
जैन धर्म है अति प्राचीन धर्म

जैन धर्म है अति प्राचीन धर्म

वैदिक पुराणों के पन्नों सेजैन धर्म है अति प्राचीन धर्म हमारा यह संसार अनादिकाल से विद्यमान है, इस जगत का न कोई आदि है न कोई अन्त, जैसे यह संसार अनादि निदान है वैसे ही जैन धर्म भी अनादि निधन है, ऋग्वेद के पूर्वकाल में भी जैनधर्म विद्यमान था। इतिहास के विभिन्न काल खंडों में जैन धर्म को विभिन्न नामों से जाना जाता था, कभी यह श्रमण धर्म के नाम से, कभी व्रात्य के नाम से, कभी अर्हत के नाम से, तो कभी लोग इसे निर्ग्रन्थ धर्म के नाम से पहचानते थे, परन्तु महावीर युग से इसे जैन धर्म के...

भगवान पार्श्वनाथ जी का अतिशय क्षेत्र कमठाण

भगवान पर्श्वनाथ जी का अतिशय क्षेत्र कमठाण जैन धर्म भारत वर्ष का अत्यन्त प्राचीन धर्म माना जाता है, क्रिस्त के जन्म से चार सौ साल पहले मौर्य चक्रवर्ती चंद्रगुप्त को कर्नाटक प्रांत का श्रवणबेलगोला में मानसिक शुद्धि के लिए आश्रय देकर जीवन रक्षण किया था, जैन धर्म बाहर के ठाट-बाट से उपर उठकर भीतरी शुद्धि को महत्व देने वाला धर्म है, जैन धर्म ने उत्तर भारत में जन्म लेकर सारे संसार को अहिंसा का संदेश दिया, दक्षिण भारत के कर्नाटक में जैन धर्म का डंका बजा, कर्नाटक का इतिहास इसका गवाह है, जैन धर्म का मूल तत्व अहिंसा का पालन...

मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सुरेश नावंदर पुणे रत्न से सम्मानित

मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सुरेश नावंदर पुणे रत्न से सम्मानित (Suresh Navandar honored with Pune Ratna by main bharat hun family)श्री माहेश्वरी बालाजी मंदिर, कसबा पेठ, तथा महेश सेवा संघ पुणे के भूतपूर्व अध्यक्ष एवं विश्वस्त सुरेश नावंदर को मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उत्कृष्ठ सेवा के लिए पुणे रत्न सम्मान दिया गया।‘मैं भारत हूँ’ परिवार की ओर से जूम मिटींग पर ‘भारत को ‘भारत’ कहें वेबिनार में अध्यक्ष ज्येष्ठ पत्रकार बिजय कुमार जैन इस विषय में अपनी भूमिका बतायी। कार्यक्रम के दौरान पुणे रत्न पुरस्कार से २५ लोगों को जूम पर सन्मानित किया...
आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन का रहस्य

आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन का रहस्य

आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन का रहस्य अनेकांत का दृष्टिकोण : भाग्य मानूँ या नियति? सबसे पहली बात-मुझे जिन शासन मिला, जिन शासन का अर्थ – अनेकांत का दृष्टिकोण मिला, मैंने अनेकांत को जिया है, यदि अनेकांत का दृष्टिकोण नहीं होता तो शायद कहीं न कहीं दल-दल में पँâस जाता।मुझे प्रसंग याद है कि दिगम्बर समाज के प्रमुख विद्वान वैâलाशचंद्र शास्त्री आए, उस समय पूज्य गुरूदेव कानपुर में प्रवास कर रहे थे। मेरा ग्रंथ ‘जैन दर्शन, मनन और मीमांसा’ प्रकाशित हो चुका था, पंडित वैâलाशचंद्र शास्त्री ने कहा- मुनि नथमलजी ने श्वेताम्बर-दिगम्बर परंपरा के बारे में जो लिखना था, वह लिख...
आचार्य श्री महाप्रज्ञ का जीवन दर्शन: जन्म दिवस विशेष

आचार्य श्री महाप्रज्ञ का जीवन दर्शन: जन्म दिवस विशेष

जन्म दिवस के पावन अवसर पर आचार्य श्री महाप्रज्ञ का जीवन दर्शन प्रस्तुत जन्म : राजस्थान प्रान्त के झुँझुनुँ जिला, टमकोर (विष्णुगढ़) नामक गाँव, विक्रम संवत् १९७७, आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी (१४ जून १९२०) का दिन, गोधूली वेला, १७.०९ बजे, स्थानिक समय सायं लगभग १६.४० बजे, सोमवार, वृश्चिक राशि, कृत्तिका नक्षत्र में श्रीमती बालूजी ने खुले आकाश में एक पुत्ररत्न को जन्म दिया।चोर आ गया : जब बालक का जन्म हुआ, उसकी बुआ जड़ावबाई ने छत पर चढ़कर जोर से शोर मचाया- ‘चोर आ गया’, उनकी आवाज सुनकर चोरड़िया परिवार के पुरूष लाठी लेकर आ गए, जब घर में आए तो...