
श्री मदनमुनि म.सा. को श्रद्धांजलि
जिनागम परिवार की ओर से श्री मदनमुनि म.सा. के संथारा सहित देवलोकगमन पर भावभीनी श्रद्धांजलि गुरु अंबेश के सुशिश्य रत्न गुरु सौभाग्य के गुरु भ्राता मेवाड़ प्रवर्तक महाश्रमण मदन मुनि म.सा. का दिनांक ७ दिसंबर २०२१ मंगलवार को संथारा सहित देवलोकगमन हो गया। मंगलवार को उपप्रवर्तक कोमल मुनि म. सा. ने संथारे के प्रत्याख्यान ग्रहण करवाए जो कि लगभग ५.४५ घंटे का संथारा अहमदाबाद के निजी अस्पताल में किया गया। गुरुदेव के पार्थिव शरीर को घोड़ा घाटी नाथद्वारा लाया गया। अंतिम संस्कार ९ दिसम्बर को किया गया।हजारों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में गुरुदेव मदन मुनि जी की अंतिम महाप्रयाण यात्रा नेशनल...
सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व
सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्हंतों में से ही होते हैं। जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व।...
क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी
क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी दशलक्षण पर्व का प्रारम्भ भी क्षमाधर्म से होता है और समापन भी क्षमाधर्म पर्व से किया जाता है। दस दिन धर्मों की पूजा करके, जाप्य करके जो परिणाम निर्मल किये जाते है और दश धर्मों का उपदेश श्रवण कर जो आत्म शोधन होता है उसी के फलस्वरूप सभी श्रावक-श्राविकायें किसी भी निमित्त परस्पर में होने वाली मनो-मलिनता को दूर कर आपस में क्षमा मांगते हैं, क्योंकि यह क्रोध कषाय प्रत्यक्ष में ही अग्नि के समान भयंकर है।क्रोध आते ही मनुष्य का चेहरा लाल हो जाता है, होंठ काँपने लगते हैं, मुखमुद्रा विकृत और भयंकर...
नागदा श्रीसंघ के आंगणिया में पधारे गुरूवर
चातुर्मासिक भव्य मंगल प्रवेश नागदा श्रीसंघ के आंगणिया में पधारे गुरूवर (Guruvar arrived in the courtyard of Nagda Srisangh)राजगढ़: श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन श्रीसंघ नागदा जं. के तत्वावधान में वर्ष २०२१ में होने वाले चातुर्मास केअंतर्गत प.पू. श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न एवं प.पू. श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्र सूरिश्वरजीम.सा. के आज्ञानुवर्ति मुनिराज श्री चन्द्रयशविजयजी म.सा. एवं मुनिश्री जिनभद्रविजयजी म.सा. का मंगल प्रवेशचंबल सागर मार्ग स्थित पुरानी नगर पालिका से रविवार को प्रातः ९ बजे प्रारम्भ हुआ, जिसकी अगवानी श्वेताम्बरमूर्तिपूजक जैन श्रीसंघ एवं आत्मोद्धारक चातुर्मास समिति २०२१ के सदस्यों द्वारा की गई।सर्वप्रथम बैण्ड की धुन पर हाथ में मंगल कलश लिये महिलाओं ने...
जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास
जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास जैन धर्म किसी एक धार्मिक पुस्तक या शास्त्र पर निर्भर नहीं है, इस धर्म में ‘विवेक’ ही धर्म है जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर, उचित-अनुचित, अच्छे-बुरे का निर्णय करना और धर्म का रास्ता तय करना आत्मा और जीव तथा शरीर अलग-अलग हैं, आत्मा बुरे कर्मों का क्षय कर शुद्ध-बुद्ध परमात्मा स्वरुप बन सकता है, यही जैन धर्म दर्शन का सार है, आधार है जैन दर्शन में प्रत्येक जीवन आत्मा को अपने-अपने कर्मफल...