क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी
क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी दशलक्षण पर्व का प्रारम्भ भी क्षमाधर्म से होता है और समापन भी क्षमाधर्म पर्व से किया जाता है। दस दिन धर्मों की पूजा करके, जाप्य करके जो परिणाम निर्मल किये जाते है और दश धर्मों का उपदेश श्रवण कर जो आत्म शोधन होता है उसी के फलस्वरूप सभी श्रावक-श्राविकायें किसी भी निमित्त परस्पर में होने वाली मनो-मलिनता को दूर कर आपस में क्षमा मांगते हैं, क्योंकि यह क्रोध कषाय प्रत्यक्ष में ही अग्नि के समान भयंकर है।क्रोध आते ही मनुष्य का चेहरा लाल हो जाता है, होंठ काँपने लगते हैं, मुखमुद्रा विकृत और भयंकर...
नागदा श्रीसंघ के आंगणिया में पधारे गुरूवर
चातुर्मासिक भव्य मंगल प्रवेश नागदा श्रीसंघ के आंगणिया में पधारे गुरूवर (Guruvar arrived in the courtyard of Nagda Srisangh)राजगढ़: श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन श्रीसंघ नागदा जं. के तत्वावधान में वर्ष २०२१ में होने वाले चातुर्मास केअंतर्गत प.पू. श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न एवं प.पू. श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्र सूरिश्वरजीम.सा. के आज्ञानुवर्ति मुनिराज श्री चन्द्रयशविजयजी म.सा. एवं मुनिश्री जिनभद्रविजयजी म.सा. का मंगल प्रवेशचंबल सागर मार्ग स्थित पुरानी नगर पालिका से रविवार को प्रातः ९ बजे प्रारम्भ हुआ, जिसकी अगवानी श्वेताम्बरमूर्तिपूजक जैन श्रीसंघ एवं आत्मोद्धारक चातुर्मास समिति २०२१ के सदस्यों द्वारा की गई।सर्वप्रथम बैण्ड की धुन पर हाथ में मंगल कलश लिये महिलाओं ने...
जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास
जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास जैन धर्म किसी एक धार्मिक पुस्तक या शास्त्र पर निर्भर नहीं है, इस धर्म में ‘विवेक’ ही धर्म है जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर, उचित-अनुचित, अच्छे-बुरे का निर्णय करना और धर्म का रास्ता तय करना आत्मा और जीव तथा शरीर अलग-अलग हैं, आत्मा बुरे कर्मों का क्षय कर शुद्ध-बुद्ध परमात्मा स्वरुप बन सकता है, यही जैन धर्म दर्शन का सार है, आधार है जैन दर्शन में प्रत्येक जीवन आत्मा को अपने-अपने कर्मफल...
आत्मिक-आध्यत्मिक उत्थान का अवसर चार्तुमास
आत्मिक-आध्यत्मिक उत्थान का अवसर चार्तुमास आत्मिक-आध्यत्मिक उत्थान का अवसर चार्तुमास (Chaturmas, the occasion of spiritual ) वर्षाकाल के चार महीनों को चार्तुमास के नाम से जाना जाता है। चार्तुमास का समय आषाढी पुनम से लेकर कार्तिक पूनम तक होता है। इसका प्रारंभ आषाढ़ी १४से हो जाता है। प्रत्येक तीन वर्षों के पश्चात् चार्तुमास चार महीनों की जगह पांच महीनों का हो जाता है। इस वर्ष चार्तुमास १८ जुलाई से आरंभ होने जा रहा है। बरसात के मौसम में अत्यधिक सुक्ष्म जीवों की उत्पति होती हैं और उससे सारी धरती आकीर्ण हो जाती है। आवागमन या विहार करने से उन जीवों...
पर्यावरण और जैन सिद्धांत
पर्यावरण और जैन सिद्धांत पर्यावरण और जैन सिद्धांत : पर्यावरण हमारे जीवन का महत्व पूर्ण तत्व है, ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की और मुक्त हाथों से हमें प्रकृतिक संपदाआें का खजाना प्रदान किया, लेकिन मनुष्य ने अपनी लालसा और लालच में आकर इन अमूल्य संपदाओं के साथ खिलवाड़ किया, यही वजह हैं कि हमें प्रकृतिक आपदाओं से निरंतर लड़ना पड़ रहा है। अति वर्षा, सुखा, भुकंप, भू संखलन, बर्फ का पिघलना, अतिगर्मी-सर्दी सुनामी आदि का सामना कर ना पड़ रहा है और हजारों मनुष्यों को एक साथ जान-माल से हाथ धोना पड़ रहा है। अगर हम आने वाली...